Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २०१० : आत्मधर्म–१२४ : ८१ :
‘कई पण चज
नकामी नथी’
(चर्चामांथी)
* जगतमां कोई पण चीज ‘नकामी.’ नथी.
* जगतमां जे कोई जड के चेतन पदार्थो छे ते सौ पोतपोताना कार्य सहित ज
छे, कार्य वगरनो कोई पण पदार्थ नथी. माटे जगतमां कोई पण चीज नकामी नथी.
* ‘कोई पण चीज नकामी नथी’ –एनो अर्थ एम न समजवो के आत्माने
माटे ते चीज कामनी छे! बधी परवस्तुओ आत्माने माटे तो नकामी (एटले के
अकिंचित्कर ज) छे, कोई पण एक द्रव्य बीजा द्रव्यने माटे अकार्यकारी ज छे. परंतु
पोतपोताना कार्यने दरेक चीज करे ज छे, पोताना कार्य वगरनी कोई पण चीज
जगतमां नथी; समये समये परिणमीने पोतानी अवस्थारूप कार्यने न करती होय
एवी कोई पण चीज जगतमां नथी, माटे जगतमां कोईपण चीज कार्य वगरनी नथी.
* ‘संघर्यो साप पण काम आवे’ एवी आ वात नथी. परंतु दरेक वस्तु
स्वतंत्रपणे पोतपोताना कार्यने करे छे एवी स्वतंत्रतानी आ वात छे.
* जगतनी कोई पण चीज पोताना कार्यथी खाली नथी अने परनुं कार्य करती
नथी. कोई पदार्थ एवो पराधीन नथी के पोताना कार्यने माटे बीजा पदार्थनी तेने
जरूर पडे.
* ‘लाकडुं पण नकामुं नथी अथवा विष्टा पण नकामी नथी’ –एनो अर्थ एम
नथी के ते चीजो आत्माने कोईवार काम आवे छे! परंतु ते लाकडुं वगेरे वस्तुना
रजकणो पण समये समये परिवर्तन पामीने पोतानुं कार्य करी रह्या छे. पोताना
स्पर्श–रस वगेरेना फेरफाररूपी कार्य तेमां पण थई ज रह्युं छे, माटे ते नकामा
(एटले के पोताना कार्य वगरना) नथी. जगतनी दरेक चीज पोतपोताना कार्य
सहित छे.
* आत्मा पण समये समये पोताना कार्यने करे ज छे. ‘हुं परना कार्यने करुं
अने पर चीज मने काम आवे’ आवी अज्ञानबुद्धिने लीधे मिथ्याद्रष्टि जीव समये
समये पोताना ऊंधा भावरूपी कार्यने करे छे; ने ज्ञानी ‘परनुं कार्य मारामां नथी ने
मारुं कार्य परमां नथी’ एम यथार्थ भेदज्ञान करीने, पोताना स्वभावना आश्रये
निर्मळदशारूपी कार्यने करे छे.
* जगतमां दरेक चीज पोतपोताना कामने ज करे छे आवुं वस्तुस्वरूप
जाणीने, कोईपण परचीजना कर्तापणानी मिथ्याबुद्धि छोडवी अने पोताना
आत्मकार्यनी संभाळ करवी ते हितनो उपाय छे.
–पू. गुरुदेव.