: ८२ : आत्मधर्म–१२४ : महा : २०१० :
‘शुं निमित्त विना
कार्य थाय छे?’
–एवी दलीलनुं स्पष्टीकरण
नैमित्तिक कार्य अने निमित्त ए बंने स्वतंत्र छे–एवी स्वतंत्रतानी वात चालती होय
त्यारे निमित्ताधीन द्रष्टिवाळा जीवो एम कहे छे के ‘शुं निमित्त विना कार्य थाय छे?’ आ
संबंधमां रात्रिचर्चामां आवेली स्पष्टता नीचे प्रमाणे छे–
(१) प्रथम तो ज्यारे अहीं निमित्तनो काळ छे ते ज समये सामा नैमित्तिक पदार्थमां
पण तेनी अवस्था थाय ज छे. निमित्तना काळ वखते शुं नैमित्तिकनो काळ नथी? दरेक समये
जगतना बधाय पदार्थोमां नैमित्तिक पर्याय थई ज रही छे. एटले ‘निमित्त विना न थाय’
ए प्रश्न ज तेमां नथी रहेतो. एवो एक पण समय खाली नथी के जगतना पदार्थोमां
पोतपोतानी नैमित्तिक पर्याय न थती होय.
(२) अहीं नैमित्तिक अवस्था थवानी होय ने सामे निमित्त जगतमां न होय–एम
तो कदी बनतुं नथी. ज्यारे नैमित्तिक कार्य थाय छे त्यारे निमित्तपणानी योग्यतावाळा पदार्थो
जगतमां होय ज छे. निमित्त क्या समये नथी?
(३) “आ निमित्त छे” एम जे कहेवामां आवे छे ते ज एम सूचवे छे के ते ज वखते
सामे नैमित्तिक कार्यनी हयाती छे. जो नैमित्तिक कार्य छे तो परचीजने तेनुं निमित्त कहेवामां
आवे छे. नैमितिक कार्य थया वगर तो पर चीजने निमित्त पण कहेवातुं नथी; केमके नैमित्तिक
वगर निमित्त कोनुं? माटे ‘निमित्त’ ज त्यारे कहेवायुं के ज्यारे नैमित्तिक कार्य छे. नैमित्तिक
कार्य थया पहेलांं बीजी चीजने निमित्त कहेवातुं ज नथी; अने ज्यारे ‘निमित्त’ कहेवाय छे
त्यारे तो अहीं नैमित्तिक कार्य विद्यमान छे, एटले ‘निमित्त विना न थाय’ ए वातने
अवकाश रहेतो नथी.
* जगतना दरेक पदार्थमां समये समये पोतानी नैमित्तिक पर्याय थई ज रही छे.
* नैमित्तिक पर्याय वखते सामे निमित्त होय ज छे.
* ज्यारे अहीं निमित्तनी पर्याय थवानो समय छे त्यारे सामी चीजमां पण पोतानी
नैमित्तिक पर्याय थवानो समय छे.
* नैमित्तिक कार्य थया वगर बीजी चीजने निमित्त कहेवातुं नथी.
* नैमित्तिक कार्य थयुं छे त्यारे ज परचीजने निमित्त कहेवाय छे. आ रीते नैमित्तिक
कार्यनी अने निमित्तनी स्वतंत्रता छे.
ए वात ध्यानमां राखवी के शास्त्रोमां ‘निमित्त विना कार्य न थाय’ –एवी ज्यां
दलील करवामां आवे छे त्यां तो, जे जीव छ द्रव्योने स्वीकारतो ज नथी, आत्मा सिवाय पर
चीजनुं अस्तित्व ज मानतो नथी तेने समजाववा माटे छे; निमित्तनुं अस्तित्व सिद्ध करवा
माटे ते दलील छे. परंतु जेओ जगतमां छ द्रव्योने स्वीकारे छे, नैमित्तिक तेमज पर निमित्त
ए बंनेनुं अस्तित्व स्वीकारे ज छे अने तेमनी स्वतंत्रता माने छे, तेमनी सामे पण एम
दलील करवी के ‘शुं निमित्त विना कार्य थाय छे?’ –ते तो मात्र निमित्ताधीन द्रष्टिनो आग्रह
छे, स्वतंत्रतानी वात तेने रुचती नथी.
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