Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २०१० : आत्मधर्म : ६७ :
उमराळा नगरीमां
‘मगल – प्रवचन’
[विहार दरमियान पू. गुरुदेवनुं आ पहेलुं ज प्रवचन छे.
पोष वद त्रीजे सोनगढथी विहार करीने पू. गुरुदेव उमराळा पधार्या
अने उमराळामां ‘श्री कहानगुरु जन्मधाम’नुं तथा ‘उजमबा–जैन
स्वाध्याय गृह’नुं –उद्घाटन थयुं. ते दिवसनुं आ प्रवचन छे.
चैतन्यतत्त्वनी वात ग्राम्यजनता पण कांईक समजी शके ए रीते
पोतानी विशिष्ट अने सरळ शैलीथी पू. गुरुदेवे आ प्रवचनमां
समजाव्युं छे.)
आजे आ उमराळामां तत्त्वज्ञान तरंगिणीना वांचननी शरूआत थाय छे. आजे विहारनो पहेलो दिवस
छे तेथी आ नवा शास्त्रनी शरूआत थाय छे. तेमां सौथी पहेला श्लोकमां मंगलाचरण तरीके शुद्ध चैतन्यस्वरूप
आत्माने नमस्कार करे छे–
प्रणम्य शुद्धचिद्रूपं सानन्दं जगदुत्तमं।
तल्लक्षणादिकं वच्मि तदर्थि तस्य लब्धये।।१।।
आ शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा छे ते आनंदसहित छे, अने जगतमां उत्तम छे, एवा आत्माने ज अहीं
नमस्कार कर्या छे. शास्त्रकार कहे छे के हुं आत्मानो अर्थी छुं तेथी तेनी प्राप्ति माटे हुं तेने नमस्कार करुं छुं.
जेम मोटी नदीमां पाणीना तरंग ऊठे तेम आत्मामां तत्त्वज्ञानना तरंग ऊठे–एवी आ वात छे. ज्यां
पाणी भर्युं होय त्यां तरंग ऊठे, तेम आत्मामां ज्ञान अने आनंद भर्यां छे, तेमां एकाग्र थतां ज्ञान–आनंदना
तरंग ऊठे छे.
आ देहदेवळमां रहेल आत्मा शुं चीज छे ते अनंतकाळमां जीवोए कदी जाण्युं नथी. आत्मा अनादि–
अनंत वस्तु छे, ते नवो थयो नथी, ने तेनो कदी नाश थतो नथी. आत्माने कोई ईश्वरे बनाव्यो नथी, माताना
पेटमां आव्यो त्यारे कांई आत्मा नवो थयो नथी पण अनादिनो, देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप छे. जीवे अनादि
काळमां आवा चैतन्यतत्त्वनी समजण एक सेकंड पण करी नथी. अनादिथी आत्मा क्यां रह्यो? के पोताना
चैतन्यस्वरूपने चूकीने ‘देह ते ज हुं छुं’ एवी मान्यताथी संसारनी चार गतिमां भव करी करीने रखडयो. देहमां
रहेलो आत्मा पोते चैतन्यस्वरूप भगवान छे, सर्वज्ञ परमात्मा थवानुं सामर्थ्य तेनामां छे. जीवे मंदकषायथी
त्याग–वैराग्य वगेरेना शुभभाव अनंतवार कर्या अने तेमां ज धर्म मान्यो, पण अंतरमां चैतन्यतत्त्वनी रिद्धि–
समृद्धि केवी छे ते वात कदी समज्यो नहि तेथी तेने धर्म थयो नहि.
जीवने धर्म केम थाय तेनी आ वात छे. शुभ–अशुभभाव जुदी चीज छे ने धर्म तेनाथी जुदी चीज छे.
चैतन्यतत्त्वने चूकीने शुभ–अशुभ परिणामथी चार गतिमां जीव अनादिथी रखडे छे. तीव्र हिंसा,
मांसभक्षण वगेरेना पापभाव करीने नरकमां जीव अनंतवार गयो, दया–दान वगेरेना पुण्यभाव करीने
स्वर्गमां पण अनंतवार गयो, तेमज मनुष्य तथा तिर्यंचना पण अनंतवार कर्या, पण देहथी जुदुं अने पुण्य–
पापथी पण जुदुं एवुं ज्ञानतत्त्व शुं छे ते कदी जाण्युं