Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ९४ : आत्मधर्म–१२५ : फागण : २०१० :
व्यवहारनयना आश्रये कल्याण केम नथी?
[मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव दरमियान सोनगढमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन]
–वीर सं. २४७९ चैत्र सुद पांचम–
[गतांकथी चालु]
‘अहो! आ परथी भिन्न मारा ज्ञायकतत्त्वनी वात
छे, मारा ज्ञायकतत्त्वनी प्रतीत करवामां कोई रागनुं
अवलंबन छे ज नहि’ आवा लक्षपूर्वक एटले के
स्वभावना उत्साहपूर्वक एकवार पण जे जीव आ वात
सांभळे ते भव्य जीव जरूर अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे.
आ एम ने एम सांभळी लेवानी वात नथी पण
सांभळनार उपर निर्णय करवानी जवाबदारी छे.
अज्ञानी लोको कहे छे के व्यवहार करतां करतां धर्म थई जशे, पण ते मूढता छे. अरे
भाई! राग अने भेदने व्यवहार पण त्यारे कहेवाय के ज्यारे ते राग अने भेदथी पार एवा
भूतार्थ आत्मस्वभावती द्रष्टि होय. जेने आवी द्रष्टि तो थई नथी अने राग तथा भेदना
आश्रयथी धर्म थवानुं माने छे ते तो एकला अधर्मनुं ज पोषण करे छे –एवा जीवे धर्मनी कथा
(शुद्धआत्मानी वार्ता) खरेखर कदी सांभळी ज नथी पण बंधनी कथा ज सांभळी छे,
भगवाननी वाणी सांभळतो होय त्यारे पण खरेखर तो ते बंध कथा ज सांभळी रह्यो छे,
केमके तेनी रुचिनुं जोर बंधभाव उपर छे पण अबंध आत्मस्वभाव तरफ तेनी रुचिनुं जोर
नथी. भले समवसरणमां बेठो होय अने साक्षात् तीर्थंकर भगवाननी वाणी काने पडती होय,
परंतु ते वखते जे जीवनी मान्यतामां एम छे के ‘आवी सरस वाणी आवी तेने लीधे मने
ज्ञान थयुं, अथवा आ श्रवणना शुभरागथी मने ज्ञान थयुं’ तो ते जीव खरेखर भगवाननी
वाणी नथी सांभळतो, पण बंध कथा ज सांभळे छे; भगवाननी वाणीनो अभिप्राय ते
समज्यो ज नथी. अनंतवार समवसरणमां जईने अज्ञानीए शुं कर्युं? के बंध कथा ज सांभळी.
‘निमित्तथी मारुं ज्ञान थतुं नथी, रागथी पण मारुं ज्ञान थतुं नथी तेमज मारो ज्ञानस्वभाव
रागने करतो नथी, हुं ज्ञानस्वभाव छुं, ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज मारुं ज्ञान थाय छे’
आवी ज्ञानस्वभावनी रुचि अने सन्मुखतापूर्वक जेणे एकवार पण शुद्धआत्मानी कथा ज्ञानी
पासेथी सांभळी ते जीव अल्पकाळमां मुक्ति पाम्या वगर रहे नहि. श्री पद्मनंदि मुनिराज कहे
छे के–
तत्प्रति प्रीतिचितेन येन वातापि हि श्रुता।
निश्चितं स भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम्।।
रागनी प्रीति नहि, व्यवहारनी प्रीति नहि पण शुद्धचैतन्यस्वरूप आत्मानी प्रीति करीने.... ते
प्रत्येना उल्लासथी तेनी वार्ता जे जीवे सांभळी छे ते जीव जरूर मुक्ति पामे छे. ‘अहो! आ परथी भिन्न
मारा ज्ञायकतत्त्वनी वात छे, मारा ज्ञायकतत्त्वनी प्रतीत करवामां कोई रागनुं अवलंबन