जीव आ वात सांभळे ते भव्यजीव जरूर अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे. जुओ, आ एम ने
एम सांभळी लेवानी वात नथी, पण सांभळनार उपर निर्णय करवानी भेगी जवाबदारी
छे. अनादिथी जे मान्युं हतुं तेमां अने आ वातमां मूळभूत फेर क्यां पडे छे ते बराबर
समजीने नक्क्ी करवुं जोईए. अत्यार सुधी पोतानी मान्यतामां भूल क्यां हती अने हवे
आ वात सांभळ्या पछी तेमां फेर क्यां पड्यो–तेनो भेद पाड्या वगर एम ने एम
सांभळी जाय– तो तेथी आत्माने सत्यनो कांई लाभ थाय नहि. एकला शब्दो तो पूर्वे
अनंतवार सांभळ्या, पण तत्त्वनिर्णय वगर तेने आचार्यदेव श्रवण तरीके गणता नथी,
तेथी समयसारमां कह्युं के जीवोए शुद्धआत्मानी वात पूर्वे कदी सांभळी नथी.
शुद्धआत्मानां शब्दो तो सांभळ्या पण पोते अंतर्मुख थईने शुद्धआत्मानो निर्णय न कर्यो
माटे तेणे खरेखर शुद्धआत्मानी वात सांभळी ज नथी. जुओ, श्रवणनुं खरुं तात्पर्य शुं ते
वात पण आमां आवी गई. श्रवणमां परलक्षे जे शुभराग थाय छे ते खरेखर तात्पर्य
नथी पण तत्त्वनो निर्णय करीने अंदर शुद्ध–आत्मानो अनुभव करवो ते ज खरुं तात्पर्य
छे. अहो! ज्यारे जुओ त्यारे एक समयमां परिपूर्ण तत्त्व अंदर पड्युं छे, भगवान
आत्मा पोताना स्वभावनी परिपूर्ण शक्तिने संघरीने बेठो छे, तेना स्वभावसामर्थ्यनो
एक अंश पण ओछो थयो नथी, अने त्रण काळमां एक समय पण ते स्वभावनो विरह
नथी, पोते जागीने अंदरमां द्रष्टि करे एटली ज वार छे; जेमां द्रष्टि करतां ज न्याल थई
जवाय एवो ए स्वभाव छे. ‘हुं परिपूर्ण छुं’ ईत्यादि रागरूप विकल्प पण तेनामां नथी,
परंतु उपदेशमां समजाववुं कई रीते? उपदेशमां तेनुं कथन करवा जतां स्थूळता थई जाय
छे तेथी खरेखर ते उपदेशनो विषय नथी पण अंर्तद्रष्टिनो अने अंर्तअनुभवनो विषय
छे. उपदेश तो निमित्त–मात्र छे, पोते जाते अंर्तद्रष्टि करीने समजे तो ज समजाय तेवो
अचिंत्यस्वभाव छे.
सम्यग्दर्शननुं ऊंडुं रहस्य खोल्युं छे. जेम उपादानमां ‘पर्यायनी लायकात’ एवो एक ज
प्रकार छे तेम सम्यग्दर्शनमां ‘आत्माना अभेद स्वभावनो आश्रय’ एवो एक ज प्रकार
छे. सम्यग्दर्शनना ध्येयरूप अभेद स्वभाव एक ज प्रकारनो छे, तेनी द्रष्टि थया पछी
भेदना विकल्पने व्यवहार कहेवाय छे. एने बदले व्यवहार पहेलो अने तेनाथी निश्चय
पमाय एम जे माने ते व्यवहारमूढ छे, जैनधर्मना सिद्धांतनी तेने खबर नथी. अंतरमां
‘हुं एक ज्ञानस्वभाव ज छुं, राग के निमित्त हुं नथी, ज्ञानस्वभावमां ज मारुं सर्वस्व छे’
आवुं लक्ष थया विना निश्चय व्यवहारनी के उपादान–निमित्तनी अनादिनी भूल टळे नहि,
अने ते भूल टळ्या विना बीजा गमे तेटला उपाय करे तोपण कल्याण थाय नहि. माटे
जेने आत्मानुं कल्याण करवुं होय–धर्मी थवुं होय तेणे आ वात बराबर समजीने नक्की
करवा जेवी छे.