Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १०० : आत्मधर्म–१२५ : फागण : २०१० :
आत्मानी ओळखाण
माणावदरमां महा सुद पुनमना रोज परम पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन
आत्मतत्त्वनी वात छे. आत्मा आनंदस्वरूप तत्त्व छे; सर्वज्ञ परमात्माए
केवळज्ञानथी त्रणकाळ त्रणलोक जोया, तेमां आत्माने अनादि अनंत ज्ञान–आनंदस्वरूप जोयो
छे. आत्मानी आदि नथी एटले कोईए तेने बनाव्यो नथी तेमज तेनो कदी नाश थई जतो
नथी. आत्मा पोताना स्वरूपने भूलीने अनादिथी संसारनी चार गतिमां रखडे छे.
अज्ञानभावे पुण्य करीने स्वर्गमां पण जीव अनंत वार गयो छे ने तीव्र पापभाव करीने
नरकमां पण अनंतवार गयो छे, तेमज तिर्यंच अने मनुष्य पण अनंतवार थयो छे. जे जीव
तीव्र मान–कपट–कुटिलता ने दंभना परिणाम करे छे ते मरीने तिर्यंच थाय छे. तेणे पूर्वे घणी
आडोडाई करी तेथी शरीर पण आडां मळ्‌यां छे. मंदकषाय वगेरेना परिणामथी मनुष्यपणुं पण
अनंतवार मळ्‌युं छे, परंतु ज्ञानस्वरूप आत्मा शुं चीज छे तेनी ओळखाण कदी एक क्षण पण
करी नथी.
आत्मा देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्व छे, ते पोते आनंदस्वरूप छे; पण पोताना स्वरूपने
भूलीने बहारमां सुख माने छे तेथी पोताना आनंदनो अनुभव तेने थतो नथी. आत्मा
अनादि अनंत सच्चिदानंद स्वरूप छे; जेम चणामां मीठाश भरी छे तेम आत्मामां आनंद भर्यो
छे, पण तेनी प्रतीत करीने तेमां एकाग्रता करतां ते प्रगटे छे. काचा चणामां मीठाश तो भरी छे
पण कचासने लीधे ते तूरो लागे छे ने वावो तो उगे छे; तेने सेकतां मीठाश प्रगटे छे ने वावो
तो उगतो नथी. तेम आत्माना स्वभावमां आनंद भर्यो छे. पण ते स्वभावने भूलीने ‘शरीर
ते हुं, ने पुण्य–पाप जेटलो ज हुं’ एम ते माने छे, ते अज्ञानरूपी कचासने लीधे तेने पोताना
आनंदनो अनुभव थतो नथी, ने ते चोरासीना अवतारमां रखडे छे; जो सत्समागमे यथार्थ
समजण करीने आत्माना स्वभावनी प्रतीति करे तो आनंदनो व्यक्त अनुभव थाय छे ने
जन्म–मरण थता नथी. सर्वज्ञ परमात्माए जेवो आत्मा कह्यो छे तेवा आत्माने श्रद्धा–ज्ञानमां
लेवो तेनुं नाम धर्म छे.
जेम पाणीनो मूळ स्वभाव ठंडो छे, अग्निना संयोगे ते वर्तमानमां उनुं थवा छतां तेनो
ठंडो स्वभाव नाश पामी गयो नथी, एटले उना पाणीने ठारवाथी ते ठंडु थशे एम लक्षमां
लईने ठारे छे; तेम आत्मानो चिदानंद स्वभाव शांत–अनाकुळ–ठंडो छे, पुण्य–पापनी आकुळता
वर्तमानमां होवा छतां ते आत्मानुं मूळ स्वरूप नथी, मूळस्वरूप तो शांत–अनाकुळ छे, क्षणिक
पुण्य–पाप वखते पण मूळ स्वभावनो नाश थई गयो नथी; जेवा सर्वज्ञपरमात्मा छे तेवो ज
आ आत्मानो स्वभाव छे, आवा स्वभावने लक्षमां लईने एकाग्र थतां निर्मळ शांति प्रगटे छे
ने मलिनता टळी जाय छे. सत्समागमे आवा