छे. आत्मानी आदि नथी एटले कोईए तेने बनाव्यो नथी तेमज तेनो कदी नाश थई जतो
नथी. आत्मा पोताना स्वरूपने भूलीने अनादिथी संसारनी चार गतिमां रखडे छे.
अज्ञानभावे पुण्य करीने स्वर्गमां पण जीव अनंत वार गयो छे ने तीव्र पापभाव करीने
नरकमां पण अनंतवार गयो छे, तेमज तिर्यंच अने मनुष्य पण अनंतवार थयो छे. जे जीव
तीव्र मान–कपट–कुटिलता ने दंभना परिणाम करे छे ते मरीने तिर्यंच थाय छे. तेणे पूर्वे घणी
आडोडाई करी तेथी शरीर पण आडां मळ्यां छे. मंदकषाय वगेरेना परिणामथी मनुष्यपणुं पण
अनंतवार मळ्युं छे, परंतु ज्ञानस्वरूप आत्मा शुं चीज छे तेनी ओळखाण कदी एक क्षण पण
करी नथी.
अनादि अनंत सच्चिदानंद स्वरूप छे; जेम चणामां मीठाश भरी छे तेम आत्मामां आनंद भर्यो
छे, पण तेनी प्रतीत करीने तेमां एकाग्रता करतां ते प्रगटे छे. काचा चणामां मीठाश तो भरी छे
पण कचासने लीधे ते तूरो लागे छे ने वावो तो उगे छे; तेने सेकतां मीठाश प्रगटे छे ने वावो
तो उगतो नथी. तेम आत्माना स्वभावमां आनंद भर्यो छे. पण ते स्वभावने भूलीने ‘शरीर
ते हुं, ने पुण्य–पाप जेटलो ज हुं’ एम ते माने छे, ते अज्ञानरूपी कचासने लीधे तेने पोताना
आनंदनो अनुभव थतो नथी, ने ते चोरासीना अवतारमां रखडे छे; जो सत्समागमे यथार्थ
समजण करीने आत्माना स्वभावनी प्रतीति करे तो आनंदनो व्यक्त अनुभव थाय छे ने
जन्म–मरण थता नथी. सर्वज्ञ परमात्माए जेवो आत्मा कह्यो छे तेवा आत्माने श्रद्धा–ज्ञानमां
लेवो तेनुं नाम धर्म छे.
लईने ठारे छे; तेम आत्मानो चिदानंद स्वभाव शांत–अनाकुळ–ठंडो छे, पुण्य–पापनी आकुळता
वर्तमानमां होवा छतां ते आत्मानुं मूळ स्वरूप नथी, मूळस्वरूप तो शांत–अनाकुळ छे, क्षणिक
पुण्य–पाप वखते पण मूळ स्वभावनो नाश थई गयो नथी; जेवा सर्वज्ञपरमात्मा छे तेवो ज
आ आत्मानो स्वभाव छे, आवा स्वभावने लक्षमां लईने एकाग्र थतां निर्मळ शांति प्रगटे छे
ने मलिनता टळी जाय छे. सत्समागमे आवा