Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १०२ : आत्मधर्म–१२५ : फागण : २०१० :
ज मारो आनंद छे ए वातनो विश्वास अज्ञानीने आवतो नथी. जेम कस्तूरीयामृगनी डूंटीमां
ज सुगंध पडी छे पण पोते पोतानो विश्वास करतो नथी तेथी बहारमां दोडे छे. तेम आत्मामां
ज परिपूर्ण आनंदनी ताकात पडी छे, पण तेनो विश्वास न करतां अज्ञानी जीव बहारमांथी
सुख ने आनंद शोधे छे; आत्मानी शांति तो आत्मामां छे, बहारमां आत्मानी शांति नथी.
बहारना संयोगथी आत्माने सुख के दुःख नथी.
बहारमां सधनता होवी ते कंई गुण नथी ने निर्धनता ते कांई दोष नथी; पण ‘हुं
सधन’ एवुं अभिमान करवुं अथवा ‘हुं निर्धन’ एवी दीनता करवी ते दोष छे; अने ‘हुं तो
ज्ञानस्वरूप छुं, सधनपणुं के निर्धनपणुं ते मारुं स्वरूप नथी’ –आवुं सम्यक् भान करवुं ते गुण
छे–ते धर्म छे. आत्मा शुं चीज छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. आत्मा पोतापणे छे ने परपणे नथी
एम अस्तित्व–नास्तित्वधर्म छे. पोताना ज्ञानआनंद स्वरूपे आत्मा अस्तिरूप छे, ने पररूपे
नथी एटले के नास्तिरूप छे. जेम बे आंगळीमांथी एक आंगळी ते बीजीपणे नथी, तेम आत्मा
परवस्तुपणे नथी. जगतमां दरेक चीज स्वपणे सत् छे ने परपणे असत् छे. परपणे आत्मा
नथी एटले परथी आत्माने सुख–दुःख थाय ए वात रहेती नथी.
सर्वज्ञभगवान सीमंधर परमात्मा अत्यारे महाविदेह क्षेत्रमां बिराजी रह्या छे, तेमने
हजी शरीरनो संयोग छे. दिव्यध्वनिथी सहज उपदेश नीकळे छे, पण ‘हुं उपदेश आपुं’ एवी
तेमने ईच्छा नथी; ईच्छानो तो नाश थईने केवळज्ञान प्रगटी गयुं छे. नीचली दशामां आत्माने
ईच्छा थाय, पण त्यां धर्मी जाणे छे के आ ईच्छा वडे कांई जडनुं कार्य थतुं नथी. अज्ञानी
ईच्छानो स्वामी थईने, ‘में परनुं कार्य कर्युं’ एम अभिमान करे छे. एकनो एक वहालो पुत्र
मरतो होय त्यां शुं तेने मरवा देवानी ईच्छा छे? तेने बचाववानी ईच्छा होवा छतां केम
बचावी शकतो नथी? ते वस्तु ज पर छे, तेमां जीवनी ईच्छा काम आवे नहि. संयोग अने
विकारथी पार ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छे एवुं भान करीने सम्यग्दर्शन करवुं ते अपूर्व सूक्ष्म
वस्तु छे. श्रेणिक राजाने व्रतादि न हता, राजपाट छोड्या न हता, हजी राग हतो पण अंतरमां
हुं शुद्ध चैतन्य आत्मा छुं–एवुं भान हतुं, तेना प्रतापे आवती चोवीसमां पहेलां तीर्थंकर थशे.
पहेलांं आत्मानी ओळखाण होय ने पछी व्रत–तप होय आवो धर्मनो क्रम छे. जेम शीरो करवो
होय तो तेनो क्रम जाणे छे के पहेलांं धीमां लोट सेकवो ने पछी तेमां गोळनुं पाणी नाखवुं. ते
क्रमने बदले घीनो बचाव करवा माटे पहेलांं गोळना पाणीमां लोट नाखे तो तेनो शीरो नहि
थाय पण लोपरी थशे. तेम आत्माना ज्ञानानंद स्वभावनी ओळखाण करीने पहेलांं
सम्यक्श्रद्धा करवी जोईए ने पछी व्रत–तप चारित्र होय आवो धर्मनो क्रम छे. तेने बदले
सम्यक्श्रद्धा कर्या वगर एम ने एम व्रत–तपना शुभरागथी धर्म मानी बेसे तेने धर्म न थाय
पण संसार ज थाय. चिदानंद–स्वरूप आत्मा पुण्य–पापरहित छे तेनी ओळखाण करवी ते
अपूर्व धर्म छे. चैतन्य–तत्त्वनी ओळखाण वगर कदी धर्मनी शरूआत थती नथी. माटे आ
मनुष्यभव पामीने सत्समागमे आत्मानी ओळखाणनो प्रयत्न करवो जोईए.
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