Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २०१० : आत्मधर्म–१२५ : ८७ :
जीवने संसार–परिभ्रमण केम थयुं?
अने
हवे ते परिभ्रमण केम टळे?
उत्तम अने निर्दोष कर्तव्य शुं?
दरेक आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ताकात पडी छे.
अंतरनी चैतन्यशक्तिना अवलंबने ज संसारनो नाश
थईने मोक्षदशा प्रगटे छे. चैतन्यशक्तिना अविश्वासने
लीधे ज जीवने अत्यार सुधी संसार–परिभ्रमण थयुं
छे. अंतरना चैतन्यस्वभावनी ओळखाण–प्रतीत अने
विश्वास करवो ते ज आ जगतमां उत्तम अने निर्दोष
कर्तव्य छे.
आ आत्माना धर्मनी वात चाले छे. आत्म–धर्म एटले शुं? आत्मा अनादि अनंत चैतन्य स्वरूप
वस्तु छे, देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा छे तेने कोईए बनाव्यो नथी ने तेनो कदी नाश थतो नथी;
आवा आत्माने जाण्या विना कदी धर्म थाय नहि. अहीं शास्त्रकार कहे छे के शुद्ध चिद्रूप निर्दोष आत्मा छे
तेनी ओळखाण करवी ते ज आ जगतमां उत्तम अने निर्दोष कर्तव्य छे. पूर्वे कदी आवा आत्मस्वरूपने न
जाण्युं तेथी ज जीवने संसारपरिभ्रमण थयुं छे. एकवार पण आत्माना यथार्थस्वरूपने ओळखे तो जीवनी
मुक्ति थया विना रहे नहि.
आ देह देवळमां रहेलो दरेक आत्मा शक्ति स्वभावे तो शुद्ध निर्मळानंद छे, पण वर्तमान हालतमां
अनादिथी ते पोताना स्वरूपने भूलेलो छे, ते भूलना फळमां आ संसारभ्रमण छे. “चैतन्यस्वभाव हुं छुं”
एम न ओळखतां, ‘शरीर अने शरीरनी क्रिया ते ज हुं’ एम मानीने भ्रमणाथी चारे गतिमां अनंत
अनंत अवतार करतो आव्यो छे. देहथी भिन्न मारुं चैतन्यस्वरूप शुं छे तेनुं ज्ञान अनंतकाळमां जीवे कदी
कर्युं नथी; अने ‘मारे पर चीज वगर न चाले’ एम माने छे, तेनो अर्थ ए थयो के आत्मा पराधीन छे;
पोतामां स्वाधीन सुख छे तेने न मानतां परने लीधे सुख मान्युं. तेणे आत्माने पराधीन मान्यो छे, ए
पराधीनपणानी मान्यताने लीधे ज ते संसारमां रखडी रह्यो छे. “पराधीनतामां स्वप्नेय सुख नथी”
एम लोको बोले छे पण तेनो वास्तविक अर्थ शुं छे ते समजता नथी. आत्माने पोताना सुखने माटे
परचीजनी जरूर पडे ए मान्यता ज मोटी पराधीनता छे. भाई! तारुं सुख परमां एम तें क्यांथी
मान्युं? तारुं सुख तारामां होय के परमां होय? पर चीज तो ताराथी जुदी छे, तो ताराथी जुदी चीजमां
तारुं सुख केम होय? अंतरना चैतन्यस्वभावमां ज सुख छे तेने भूलीने परमां सुख मानी रह्यो छे ते
मान्यता दोषरूप छे. सुख तो आत्मानो स्वभाव छे. जेम चणाने सेकतां तेमां जे मीठाश आवे छे ते
क्यांथी आवी? शुं कडायामांथी के रेतीमांथी आवी? ना; ते चणामां ज मीठाशनो स्वभाव भर्यो छे ते ज
प्रगट थयो छे. तेम आत्माना स्वभावमां ज सुख भर्युं छे, पण तेने भूलीने परमां सुख माने तेथी तेने
पोताना सुखनो व्यक्त अनुभव थयो नथी. आत्माना