Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 21

background image
: ९० : आत्मधर्म–१२५ : फागण : २०१० :
ज्ञान सामर्थ्यथी महान एवा
चैतन्यतत्त्वने ओळखो.
समकीति धर्मात्मा कहे छे के “अहो! चैतन्यस्वरूप भगवान
आत्मा मारा ज्ञानमंदिरमां सदा बिराजी रहो....” ज्यां
आत्मानुं भान थयुं त्यां धर्मीजीवने आत्मामांथी भणकार आवी
जाय छे के “मारा चिदानंद स्वभावना आश्रये हवे अल्पकाळमां
मारा जन्म–मरणनो अंत आवी जशे, ने हुं केवळज्ञान प्रगट
करीने सिद्धपद पामीश...” सत्समागमे आत्मानी ओळखाण
करीने आवो भाव पोतामां प्रगट करवो ते धर्म छे.
[जुनागढथी विहार करीने महा सुद १४ ना रोज पू. गुरुदेव वंथली गामे पधार्या; त्यांनुं प्रवचन.]

आ आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप तत्त्व छे; पोताना स्वरूपनी साची समजण वगर ते अनादिथी
संसारनी चार गतिमां रखडे छे. तीव्र हिंसा वगेरे पापभाव करीने अनंतवार नरकमां गयो, तेमज दया
वगेरेना पुण्यभाव करीने स्वर्गमां पण अनंतवार गयो, पण पुण्य–पापरहित हुं ज्ञानस्वरूप छुं ए वात पूर्वे
एक सेकंड पण समज्यो नथी.
आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप छे, तेनुं ज्ञान सामर्थ्य एवुं महान छे के एक क्षणमां त्रणकाळ त्रणलोक
तेमां जणाई जाय छे; आवुं अचिंत्य ज्ञान सामर्थ्य होवाने लीधे आत्मा स्थूळ छे; अने ईन्द्रियोथी के रागथी
आत्मा जणातो नथी ज्ञानना स्वसंवेदनथी ज जणाय छे, तेथी आत्मा सूक्ष्म छे. आ रीते आत्मा स्थूळ पण छे
ने सूक्ष्म पण छे. आवा आत्मतत्त्वने जाण्या विना जीव अनादिथी चार गतिमां रखडे छे. आ शरीर देखाय छे
ते तो जड छे, आत्मा तेनाथी भिन्न अरूपी चैतन्यतत्त्व छे, ते देहनी साथे कदी एकमेक थयो नथी. जेवा अनंत
सिद्ध परमात्मा देहरहित पूर्ण ज्ञानानंदस्वरूपे बिराजमान छे तेवो ज आ आत्मानो स्वभाव छे; पण तेने
भूलीने ‘शरीर मारुं अने पुण्य–पाप थाय तेटलो हुं’ एम मानीने जीव संसारमां रखडे छे. जे जीवो स्वभावने
भूलीने तीव्र पापभावो करे छे ते जीवो नीचे नरकमां जाय छे. नीचे सात नरक छे, त्यां पापना फळमां जीव घणुं
दुःख भोगवे छे. सातमी नरकमां तेत्रीस सागरोपमनुं आयुष्य छे, तेमां असंख्य अबजो वर्ष वीती जाय छे.
आवा नरकना भव पण जीवे अज्ञानभावे अनंतवार कर्या छे. अज्ञानभावे शुभभाव करीने मोटो देव अने
राजा पण अनंतवार थयो छे, परंतु आत्माना ज्ञान वगर जरापण कल्याण थयुं नहि. शरीर–मन–वाणी मारुं
स्वरूप नथी, तेमज पुण्य पापनी क्षणिक लागणी थाय ते पण मारुं कायमी स्वरूप नथी, हुं तो अनादिअनंत
ज्ञान–आनंद स्वरूप आत्मा छुं, आवी ओळखाण अने प्रतीत जीवे कदी करी नयी; जो सत्समागमे एकवार
पण एवी ओळखाण अने प्रतीत करे तो अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहि.
आ भगवान आत्मा देहरहित अरूपी ज्ञानस्वरूप छे, अतीन्द्रिय होवाथी ते सूक्ष्म छे; पण
ज्ञानसामर्थ्यमां ते एवो स्थूळ (एटले के महान) छे के एक क्षणमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये. आत्मानी
चैतन्यशक्ति आवी महान छे. जेम लींडीपीपरमां चोसठपोरी तीखाशनी ताकात छे ते ज प्रगटे छे, ते तीखाश
बहारथी नथी आवती पण अंदरमां भरी छे ते ज प्रगटे छे; तेम एकेक आत्मामां अनंत केवळज्ञान प्रगटवानी
ताकात भरी छे, तेनो विश्वास करीने तेमां एकाग्रता वडे ते व्यक्त थाय छे. शरीरनी क्रिया के राग ईत्यादि कोई
बहारना कारणोथी