Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ११४ : आत्मधर्म–१२६ : चैत्र : २०१० :
गुरुदेवे बहु ज भक्तिपूर्वक नीचेनुं स्तवन गवडाव्युं हतुं–
गीरी नगरना वासी नेम जिणंदजी...
थया प्रभुना कल्याणक त्रण (अहीं) गिरनार जो
तुज दरशनथी मारुं मन प्रसन्न थयुं...
पुरो प्रभुजी शिवपुरनी मुज आश जो...
ईत्यादि, स्तवन पूरुं थतां गुरुदेवे पोते नेमिनाथ भगवाननी जय बोलावी हती.
पू. बेनश्रीबेने अहीं “प्रभुनां पुनित पगलां आज...” ए नवुं काव्य गवडाव्युं हतुं.
आजे गिरनारजीनी यात्रा थई तेनी खुशालीमां पूज्य गुरुदेवे बधा ज भक्तजनोने
आहारदाननो लाभ आप्यो हतो.
बपोरे सकल संघ सहित पू. गुरुदेव नेमिनाथ प्रभुनी दीक्षा कल्याणक भूमि सहेसावननी
यात्राए पधार्या हतां. त्यां भगवाननी वैराग्यभूमि देखतां ज वैराग्यभीना चित्ते गुरुदेवे भक्ति
करावी हती. पहेलां “गिरनार गीरीना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम...” ईत्यादि स्तवन गवडाव्युं
हतुं, अने पछी बीजुं स्तवन नीचेनुं गवडाव्युं हतुं–
मारा नेम पिया गिरनारी चाल्या, मत कोई
रोक लगाजो... हां मत कोई रोक लगाजो.
लार लार संयम में लेशुं मत्त कोई प्रीत बढाजो... हां
पू. गुरुदेवे अद्भूत वैराग्य रसभरेली भक्ति करावी तेथी भक्तोने घणो उल्लास थयो हतो.
त्यारबाद “बाल ब्रह्मचारी जिणंदपद धारी, सेवे सुरनर चंदारे, गिरनार गीरी पर नेम जिणंदा भेंटत
टळे भव फंदारे...” ए काव्य द्वारा भक्ति थई हती, तेमज भाईश्री हिंमतलालभाईए “ते गुरु मेरे
मन बसो” ए स्तुति करी हती; तेनी छेल्ली कडी पू. गुरुदेवे पोते होंशथी गवडावी हती.
भक्ति बाद गुरुदेवे नेमिनाथ भगवानना पवित्र चरणकमळनुं स्पर्शन कर्युं हतुं, अने अंतरनी
भावना व्यक्त करतां जणाव्युं हतुं के अहो! वैराग्य पामीने नेमिनाथ भगवाने दीक्षा लीधी ते आ भूमि
छे. अहीं भगवाने चारित्रभावना भावी हती. त्रण कषायोना नाशथी बाह्यअभ्यंतर निर्ग्रंथ
दिगंबरदशा प्रगट करीने भावलिंगी मुनिदशामां भगवान आत्माना निर्विकल्प आनंदनो अपूर्व
अनुभव आ भूमिमां करता हतां. ईन्द्रोए अहीं आवीने भगवाननो दीक्षा कल्याणक ऊजव्यो हतो अने
बळदेव–वासुदेव भगवाननो चरणस्पर्श करता हता. मुनिदशा प्रगट कर्या पछी आत्माना आनंदमां
झुलतां झुलतां केळवज्ञान पण भगवान आ सहेसावनमां ज पाम्या हता. अहो! आ भूमिमां भगवान
केवळज्ञान पाम्या अने ईन्द्रोए आवीने समवसरणनी रचना करी! अत्यारे आपणे बेठा छीए ते भूमि
दीक्षा अने केवळज्ञाननी छे; काले आपणे पांचमी टूंके जवानुं छे, त्यां भगवाननी निर्वाणभूमि छे, त्यांथी
भगवान सिद्धदशा पाम्या छे. अत्यारे भगवान ते पांचमी टूंकनी उपर समश्रणीए सिद्धालयमां बिराजे
छे. आपणे काले त्यां जवानुं छे तेथी ते महान मांगळिक दिवस छे.”
छेवटे पू. गुरुदेवे नेमिनाथ भगवाननो जयकार बोलाव्यो हतो. हजी पण भक्तिनो
उल्लास समातो न हतो तेथी भक्तोए भगवानना चरण–पादुकाने प्रदक्षिणा करतां करतां घणी
भक्ति करी हती. गिरनारनी पहेली टूंके ज रात्रिचर्चा राखी हती. गिरनार उपर भरायेली हजारेक
माणसोनी ए धर्मसभा घणी भव्य लागती हती. चर्चामां पू. गुरुदेवे नेमिनाथ भगवाननुं पवित्र
जीवन