Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २०१० : आत्मधर्म–१२६ : ११५ :
अने गिरनारजी तीर्थनो महिमा संभळाव्यो हतो, ते सांभळतां भगवानना पवित्र जीवनमांथी
घणी प्रेरणाओ मळती हती. ते उपरांत पू. गुरुदेवे कह्युं हतुं के : भगवानना त्रण कल्याणकनी तो
आ भूमि छे, अने वळी दिव्यध्वनिमां आवेला श्रुतज्ञाननी परंपरा जळवाई रहेवानुं स्थान पण
आ गिरनारजी ज छे. श्री धरसेनाचार्यदेव आ गिरनारनी गुफामां रहेता हता ने अहीं ज तेमणे
पुष्पदंत तथा भुतबलि मुनिवरोने दिव्य ध्वनिनी परंपराथी चाल्युं आवतुं ज्ञान आप्युं हतुं, तेमांथी
ज षट्खंडागमनी रचना थई छे. आ रीते देव गुरु अने शास्त्र त्रणेना योगथी आ भूमि पवित्र छे.
आजे महा सुद ११नी राते पू. गुरुदेव तेमज संघना बधा माणसो गिनारजीनी पहेली टूंक
उपर ज रह्या हतां.
* पांचमी टूंकनी जात्रा *
(महा सुद १२)
महा सुद १२ ना रोज सवारे पू. गुरुदेव संघसहित पांचमी टूंके पधार्या. गुरुदेवना पगले
पगले पांचमी टूंके जतां भक्तोने घणो ज उमंग थतो हतो. दूर रस्तामांथी पांचमी टूंकनुं द्रश्य
बहु आकर्षक अने भव्य देखातुं हतुं. पांचमी टूंकथी भगवान मोक्ष पधार्या तेथी जाणे के ते
शिखर गौरव लेतुं होय अने भव्योने पोकारतुं होय के हे भव्यो! अहीं आवो... आवो...
भगवाननी सिद्धिनुं धाम जोवा माटे अहीं आवो... ! अने खरेखर आजे तो पांचमी टूंके
भक्तोनो मेळो जाम्यो हतो, पांचमी टूंकना शिखर उपर ज्यां लगभग १०० माणसोना
समावेशनी जग्या छे, त्यां २५०–३०० माणसो बेठा हता, पांचमी टूंके नेमनाथ प्रभुना चरणो
छे तेमज एक शिलामां भगवानना प्रतिमानी आकृत्ति कोतरेली छे. भगवाननुं पूजन कर्या बाद
प्रथम पू. बेनश्रीबेने निर्वाणोत्सवना काव्य द्वारा भक्ति करावी हती–
आवो आवो जी... हां... हां... आवो आवो जी
जैन जन सारे, प्रभु निर्वाण गये...
गुण गावोजी सकल नरनारी प्रभु शिवथान गये...
गिरनार की पंचम टूंक पर चरण प्रभुका सोहे...
दूरदूरसे हम सब (यात्री) आकर देख प्रभु मन
मोहे... आवो आवो जी...
त्यार पछी परम पूज्य गुरुदेवे समयसारनी ३८मी गाथानी अध्यात्म भरी धुन गवडावी हती–
“हुं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञान दर्शनमय खरे,
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणुमात्र नथी अरे.”
गुरुदेव एकाकार लीनताथी ज्यारे ए धुन बोलता हता त्यारे, ‘भगवान केवी
अध्यात्मभावनाथी मोक्ष पाम्या’ तेनो तादश चितार द्रष्टि समक्ष तरवरतो हतो.
ए अध्यात्मनी धुन पछी पू. गुरुदेवे कह्युं के, भगवान नेमिनाथ प्रभु अहींथी मोक्ष पाम्या
छे... आ ठेकाणेथी भगवानने अनादि संसारनो अंत अने अपूर्व सिद्धदशानी शरूआत थई छे.
भगवानना आत्माए अहींथी समश्रेणीए ऊर्ध्वगमन कर्युं अने एक समयमां लोकाग्रे
बिराजमान थया. हाथ ऊंचो करीने पू. गुरुदेवे बताव्युं के : जुओ, अहींथी बराबर उपर–
समश्रेणीए–सिद्धालयमां भगवाननो आत्मा अत्यारे पुर्णानंदमां बिराजी रह्यो छे. (आ वखते
पू. गुरुदेव अने बधा भक्तजनो बहु ज भावथी ऊंचे सिद्धालय तरफ जोता हता.) अहो, धन्य
आ निर्वाण भूमि! अहीं भगवानना असंख्य प्रदेशो शुद्ध थया... अहीं भगवान मुक्ति पाम्या!
धन्य छे ते आत्मद्रव्यने, धन्य छे आ क्षेत्रने, धन्य छे ते