बिराजे छे. ते कांई नीचे न आवे, पण भगवाननुं जेने भान होय तेने पोताना ज्ञानमां तेना
स्मरण माटे आ भूमि निमित्त थाय छे.
भक्तोना हृदयपटमां कोतराई गयुं छे. गुरुदेवनी साथे पांचमी टूंके बेठा त्यारे जाणे के
सिद्धभगवंतोनी पाडोशमां ज बेठा होईए एम भक्तोने कृतकृत्यता लागती हती.
अवसर” नी नीचेनी कडीओ गवडावी हती–
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे...
क्यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो...
सर्व संबंधनुं बंधन तीक्षण छेदीने,
विचरशुं कव महत्पुरुषने पंथ जो...
मन वचन कायाने कर्मनी वर्गणा...
छूटे जहां सकल पुद्गल संबंध जो,
छूटया आंही सकल पुद्गल संबंध जो...
एवुं अयोगी गुणस्थानक अहीं वर्ततुं
महा भाग्य सुखदायक पूर्ण अबंध जो...
अपूर्वअवसर एवो क्यारे आवशे...
एक परमाणु मात्रनी मळे न स्पर्शता,
पूर्ण कलंक रहित अडोल स्वरूप जो...
शुद्ध निरंजन चैतन्मूर्ति अनन्यमय,
अगुरुलघु अमूर्त सहज पद रूप जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे...
पूर्व प्रयोगादि कारणना योगथी,
अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो...
पण अनंत छे, ने भावथी पण अनंत छे.)
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठुं ज्ञानमां,
कही शक्या नहि ते पण श्री भगवान जो...
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे?
अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे.
एह परम पद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में...
गजा वगर ने हाल मनोरथ रूप जो...
तोपण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो
प्रभु आज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो...
अपूर्व अवसर एवो अमने आवशे.
ए भावना पछी थोडीवार बधा शांत बेठा हता... आ अपूर्व उल्लास भरी यात्राना
नमस्कार करीने अने चरणस्पर्श करीने गुरुदेव पहेली टूंके पधार्या हता. उतरतां उतरतां गुरु
वारंवार यात्राना उल्लासनी वात करतां कहेता के “आ वखतनी यात्रा तो एवी थई के लोकोने
एनो रस रही जशे.” त्यारे भक्तो पण सामे उल्लासथी कहेता के : “साहेब! हवे
सम्मेदशिखरजीनी आवी जात्रा करावो...”