Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ११६ : आत्मधर्म–१२६ : चैत्र : २०१० :
काळने अने धन्य छे ए पवित्र भावने! अहो, अहीं तेनुं स्मरण थाय छे. भगवान तो उपर
बिराजे छे. ते कांई नीचे न आवे, पण भगवाननुं जेने भान होय तेने पोताना ज्ञानमां तेना
स्मरण माटे आ भूमि निमित्त थाय छे.
ईत्यादि प्रकारे, पांचमी टूंके पू. गुरुदेव ज्यारे भगवाननुं स्मरण करीने भावभर्युं वर्णन
करता हता त्यारे सौ भक्तजनो आनंदथी गदगद थई जता हतां; अहो, ए वखतनुं वातावरण
भक्तोना हृदयपटमां कोतराई गयुं छे. गुरुदेवनी साथे पांचमी टूंके बेठा त्यारे जाणे के
सिद्धभगवंतोनी पाडोशमां ज बेठा होईए एम भक्तोने कृतकृत्यता लागती हती.
ए प्रमाणे पवित्र निर्वाण–भूमिमां सिद्ध भगवाननुं स्मरण करीने तथा तेनो महिमा
करीने; पछी भगवान जे सिद्धपदने पाम्या ते सिद्धपद प्राप्तिनी भावना माटे पू. गुरुदेवे “अपूर्व
अवसर” नी नीचेनी कडीओ गवडावी हती–
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे...
क्यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो...
सर्व संबंधनुं बंधन तीक्षण छेदीने,
विचरशुं कव महत्पुरुषने पंथ जो...
मन वचन कायाने कर्मनी वर्गणा...
छूटे जहां सकल पुद्गल संबंध जो,
छूटया आंही सकल पुद्गल संबंध जो...
एवुं अयोगी गुणस्थानक अहीं वर्ततुं
महा भाग्य सुखदायक पूर्ण अबंध जो...
अपूर्वअवसर एवो क्यारे आवशे...
एक परमाणु मात्रनी मळे न स्पर्शता,
पूर्ण कलंक रहित अडोल स्वरूप जो...
शुद्ध निरंजन चैतन्मूर्ति अनन्यमय,
अगुरुलघु अमूर्त सहज पद रूप जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे...
पूर्व प्रयोगादि कारणना योगथी,
ऊर्ध्वगमन सिद्धालय प्राप्त सुस्थित जो.
(भगवाननो आत्मा अत्यारे उपर सिद्धालयमां बिराजे छे.)
सादि अनंत, अनंत समाधि सुखमां
अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो...
(अहो! भगवान जे अपूर्व आनंददशा पाम्या ते काळथी
पण अनंत छे, ने भावथी पण अनंत छे.)
–अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे.
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठुं ज्ञानमां,
कही शक्या नहि ते पण श्री भगवान जो...
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे?
अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे.
एह परम पद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में...
गजा वगर ने हाल मनोरथ रूप जो...
तोपण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो
प्रभु आज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो...
अपूर्व अवसर एवो अमने आवशे.
अहो, धन्य ए भावना... धन्य ए पवित्र धाममां गुरुजी साथे थयेली यात्रा...
ए भावना पछी थोडीवार बधा शांत बेठा हता... आ अपूर्व उल्लास भरी यात्राना
आनंदनी प्रसन्नता सर्वत्र देखाई आवती हती. छेवटे भगवानश्री नेमिनाथ प्रभुना चरणे
नमस्कार करीने अने चरणस्पर्श करीने गुरुदेव पहेली टूंके पधार्या हता. उतरतां उतरतां गुरु
वारंवार यात्राना उल्लासनी वात करतां कहेता के “आ वखतनी यात्रा तो एवी थई के लोकोने
एनो रस रही जशे.” त्यारे भक्तो पण सामे उल्लासथी कहेता के : “साहेब! हवे
सम्मेदशिखरजीनी आवी जात्रा करावो...”
पाछळ रहेला घणा भक्तजनो “गुरुजीए गिरनारनी अपूर्व यात्रा करावी तेनी वाह...