Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २०१० : आत्मधर्म–१२६ : ११७ :
वाहजी... वाहनी धून लेतां लेतां उतरतां हता ए उल्लासभर्युं द्रश्य देखीने आनंद थतो हतो.
उतरतां उतरतां रस्तामां गिरनारनी मोटी–मोटी शिलाओ उपर ठेकाणे ठेकाणे देव–गुरु–धर्मना
जयकार लखेला नजरे पडता हतां... ते द्वारा जाणे के आखो गिरनार पर्वत देव–गुरु–धर्मना
जयकार–ध्वनि करतो होय, गिरनारना पत्थर पण भगवानने याद करीने तेमना जय ध्वनिना
रणकार करता होय! गिरनारवासी श्री नेमिनाथ भगवाननो जय हो... नेमप्रभुनी
कल्याणकभूमि गिरनारजीनी अपूर्व–यात्रा करावनारश्री कहानगुरुदेवनो जय हो...
भगवान श्री धरसेनाचार्यदेव गिरनार उपर जे चंद्रगुफामां रहीने ज्ञान–ध्यान करता हता,
अने ज्यां पुष्पदंत–भूतबलि मुनिवरोने दिव्यध्वनिनी परंपरानुं श्रुतज्ञान (षट्खंडागमनुं
ज्ञान) आप्युं हतुं, ते पवित्र स्थाननुं खास अवलोकन करवा माटे बपोरे पू. गुरुदेव पधार्या
हता. आ स्थान पहेली टूंके जिनमंदिर तेमज राजीमतीनी गुफाना पाछळना भागमां छे.
(ईतिहास–संशोधकोए निर्णय करीने तेनुं निश्चित स्थान शोधवानी जरूर छे.)
ए प्रमाणे महापवित्र गिरनारजी तीर्थनी अपूर्व यात्रा करीने बपोरे लगभग बे वागे पू.
गुरुदेव नीचे तळेटी तरफ पधार्या... अने भक्तजनो पण झडपभेर ऊतरवा लाग्या. उतरतां
उतरतां आखा रस्तामां भक्तजनो आनंदथी देव–गुरुना जयकार करता हतां. यात्रानो उल्लास
हैये समातो न हतो... पू. बेनश्रीबेन पण उमंगमां आवीने वारंवार “वाह वाह जी वाह” नी
नवी नवी धून बोलता हतां.
नीचे उतरीने तळेटीमां आव्या पछी त्यांनी धर्मशाळाना जिनमंदिरमां लगभग एक
कलाक सुधी भक्ति थई हती. अने रात्रे जाहेर धर्मशाळामां पू. गुरुदेव पासे तत्त्वचर्चा थई हती.
चर्चा वखते आ यात्राना उल्लासभर्या स्मरणोनी साथे साथे, चौद वर्ष पहेलांं (सं. १९९६मां)
करेली गिरनारयात्राना स्मरणो पण ताजां कर्या हतां. पहेली वखतनी यात्रानुं अद्भुत वर्णन
सांभळीने तेमज तेनां द्रश्यो जोईने घणा भक्तजनोने गुरुदेव साथे गिरनारजीनी यात्रा करवा
माटे तीव्र भावना हती. भक्तोनी ए भावना आजे पूरी थई तेथी सौने प्रसन्नता हती अने
परम कृपाळु गुरुदेव प्रत्ये लागणी उभराती हती.
पांचमी टूंके पूज्य गुरुदेवे सं. १९९६नी यात्राने याद करतां कह्युं हतुं के ते वखते बराबर
फागण सुद बीजे अहीं भक्ति करी हती, अने त्यारबाद बीजे ज वर्षे बराबर ते ज दिवसे (सं.
१९९७ना फागण सुद बीजे) सोनगढमां भगवाननी प्रतिष्ठा थई–एम कुदरती मेळ थई गयो.
आ वखतनी यात्रा पण पू. गुरुदेवना प्रतापे महान प्रभावनानुं कारण थशे.
रात्रे पू. गुरुदेव तेमज संघना माणसो तळेटीमां ज रह्या हता.
गिरनारनी पहेली टूंके आवेला दिगंबर जिनमंदिरना चोकमां मानस्तंभ कराववा माटेनो
सामान तळेटीनी धर्मशाळामां पड्यो छे, ते जोवा माटे पू. गुरुदेव पधार्या हतां. ते वखते एम थतुं
हतुं के गिरनार तो नेमिनाथ प्रभुनी खास भूमि छे एटले त्यां मानस्तंभ जरूर थवो जोईए.
[महा सुद तेरस]
महा सुद तेरसे सवामां तळेटीना जिनमंदिरमां खास भक्ति राखवामां आवी हती. तेमां
“हे जिनराज! तुमारा चरणकमळनी पूजना, हृदय उल्लसित थाय के भाग्य मानुं घणुं रे,” ए
जयमालानुं काव्य पू. गुरुदेव बहु भावथी–फेरवी–फेरवीने गवडाव्युं हतुं. तेमज–