Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ११८ : आत्मधर्म–१२६ : चैत्र : २०१० :
“जब चले गये भरतार मेरे गिरनार
हे मेरी सहेली, में किस विध रहुं अकेली.”
–ए वैराग्यभर्युं काव्य गवडाव्युं हतुं. अने पछी–
“बोलो, भगवान नेमिनाथ प्रभुना त्रण कल्याणक थया ते द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनो...
जय हो...” ए प्रमाणे गुरुदेवे पोते उल्लासथी जयकार बोलाव्यो हतो. त्यारपछी, पू. बेनश्री
बेने “हो नेमि जिनेश्वरजी! काहे कसूर पै चल दिये रथको मोर” –ईत्यादि काव्यो गवडावीने
भक्ति करावी हती. अने नेमिनाथ प्रभुना, तथा नेमप्रभुनो भेटो करावनार गुरुदेवना महान
जयकार पूर्वक पू. गुरुदेव तेमज सर्वे भक्तजनो जुनागढ शहेरनी धर्मशाळामां आव्या हता.
रस्तामां गुरुदेव खूब ज प्रसन्न हता, अने भक्तो पण गुरुदेवनी साथे होंशे होंशे भक्ति करता
चालता हता.
धर्मशाळामां आव्या बाद घणा वखत सुधी पू. बेनश्रीबेने अत्यंत उल्लासभरी भक्ति
करावी हती.
जुनागढ शहेरमां अद्भुत भक्ति अने अपूर्व रथयात्रा
महा सुद १३ना रोज बपोरे जुनागढ शहेरना जिनमंदिरमां अद्भूत भक्ति थई हती.
प्रथम पू. गुरुदेवे एक स्तवन गवडाव्युं हतुं. त्यारबाद पू. बेनश्रीबेने भक्ति करावी हती.
भक्तिना अंतिम भागमां “वाह वाह जी वाह”नी मोटी धुन द्वारा परम कृपाळु गुरुदेवे जात्रा
करावी तेनो उल्लास व्यक्त कर्यो हतो तेमज फरी फरीने आवी जात्रा कराववा अने
सम्मेदशिखरजी धाम देखाडवानी मागणी करी हती.
त्यारबाद पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन थयुं हतुं. जुनागढ शहेरनां अनेक अग्रगण्य माणसोए
गुरुदेवना प्रवचननो लाभ लीधो हतो. प्रवचन बाद, परम पू. गुरुदेवे सकल संघने जे अपूर्व
यात्रा करावी ते बदल सकल संघ तरफथी परम उपकार मानवमां आव्यो हतो, तेम ज पू.
बेनश्री बेने ठेरठेर उल्लासभरी भक्ति करावी तेथी तेमनो पण उपकार मानवामां आव्यो हतो.
छेवटे, आ अपूर्व यात्रा थई तेनी होंशमां श्री जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा काढवामां आवी
हती. आ रथयात्रा घणी ज शोभती अने प्रभावक हती. रथयात्रानी वच्चे ऊंचे ऊंचे
बिराजमान जिनेन्द्र भगवाननो देखाव अद्भुत लागतो हतो, जाणे भगवाननी गंधकूटी ज
विहार करी रही होय एवुं लागतुं हतुं. साथे चामरनो मंडप हतो, ते मंडप नीचे पू. गुरुदेव
चालता हता. ए द्रश्य पण घणुं दर्शनीय हतुं. रथयात्रामां भक्तोने घणो ज उल्लास हतो. आवी
उल्लासभरी जात्रा, आवी उल्लासभरी रथयात्रा, अने आवी उल्लासभरी भक्ति–जुनागढमां
छेल्ला सेंकडो वर्षमां भाग्ये ज थई हशे. ज्यां ज्यां भक्ति थाय त्यां त्यां भक्तिनो उल्लास
जोईने लोको आश्चर्यमां पडी जता, अने मुनिमजी वगेरे कहेता हतां के ‘अहो! आवी अद्भूत
भक्ति अमे कदी जोई नथी... आवी भक्ति अमे पहेली ज वार जोई. ’
भगवाननी रथयात्रा जुनागढ शहेरना मुख्य रस्ताओ उपर फरीने जिनमंदिरे पाछी आव्या
बाद त्यां खास भक्ति करवामां आवी हती. कोईक विरल पळे ज जोवा मळे एवी ए भक्ति हती.
गुरुदेवे अद्भुत जात्रा करावी तेना प्रतापे, भक्तिनो सहज उमंग आवी जतां, पू. बेन–श्रीबेने
हाथमां चामर लईने भगवाननी अलौकिक भक्ति करी हती. अहो, जाणे के नेमनाथप्रभु साक्षात्
पधारीने सामे ज बिराजता होय अने तेमनी सन्मुख हृदयनी वीणा वगाडता होय ए