“बोलो, भगवान नेमिनाथ प्रभुना त्रण कल्याणक थया ते द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनो...
बेने “हो नेमि जिनेश्वरजी! काहे कसूर पै चल दिये रथको मोर” –ईत्यादि काव्यो गवडावीने
भक्ति करावी हती. अने नेमिनाथ प्रभुना, तथा नेमप्रभुनो भेटो करावनार गुरुदेवना महान
जयकार पूर्वक पू. गुरुदेव तेमज सर्वे भक्तजनो जुनागढ शहेरनी धर्मशाळामां आव्या हता.
रस्तामां गुरुदेव खूब ज प्रसन्न हता, अने भक्तो पण गुरुदेवनी साथे होंशे होंशे भक्ति करता
चालता हता.
भक्तिना अंतिम भागमां “वाह वाह जी वाह”नी मोटी धुन द्वारा परम कृपाळु गुरुदेवे जात्रा
करावी तेनो उल्लास व्यक्त कर्यो हतो तेमज फरी फरीने आवी जात्रा कराववा अने
सम्मेदशिखरजी धाम देखाडवानी मागणी करी हती.
यात्रा करावी ते बदल सकल संघ तरफथी परम उपकार मानवमां आव्यो हतो, तेम ज पू.
बेनश्री बेने ठेरठेर उल्लासभरी भक्ति करावी तेथी तेमनो पण उपकार मानवामां आव्यो हतो.
बिराजमान जिनेन्द्र भगवाननो देखाव अद्भुत लागतो हतो, जाणे भगवाननी गंधकूटी ज
विहार करी रही होय एवुं लागतुं हतुं. साथे चामरनो मंडप हतो, ते मंडप नीचे पू. गुरुदेव
चालता हता. ए द्रश्य पण घणुं दर्शनीय हतुं. रथयात्रामां भक्तोने घणो ज उल्लास हतो. आवी
उल्लासभरी जात्रा, आवी उल्लासभरी रथयात्रा, अने आवी उल्लासभरी भक्ति–जुनागढमां
छेल्ला सेंकडो वर्षमां भाग्ये ज थई हशे. ज्यां ज्यां भक्ति थाय त्यां त्यां भक्तिनो उल्लास
जोईने लोको आश्चर्यमां पडी जता, अने मुनिमजी वगेरे कहेता हतां के ‘अहो! आवी अद्भूत
भक्ति अमे कदी जोई नथी... आवी भक्ति अमे पहेली ज वार जोई. ’
गुरुदेवे अद्भुत जात्रा करावी तेना प्रतापे, भक्तिनो सहज उमंग आवी जतां, पू. बेन–श्रीबेने
हाथमां चामर लईने भगवाननी अलौकिक भक्ति करी हती. अहो, जाणे के नेमनाथप्रभु साक्षात्
पधारीने सामे ज बिराजता होय अने तेमनी सन्मुख हृदयनी वीणा वगाडता होय ए