Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: ११० : आत्मधर्म–१२६ : चैत्र : २०१० :
[अनुसंधान पान १०८ थी चालु]
जे कल्याणनुं कारण थशे!! ” अभिषेक बाद भगवानने वस्त्राभूषण पहेरावीने पाछा आवीने
माताने सोंप्या हतां; अने ईन्द्र–ईन्द्राणीए भक्तिपूर्वक तांडव नृत्य कर्युं हतुं. सर्वे नगरजनो
भगवानना जन्म खुशाली मनावता हता.
बपोरे भगवाननुं पारणुं झुलाववानी क्रिया थई हती. अनेक भक्तजनो भक्तिपूर्वक
भगवाननुं पारणुं झुलावता हतां. पू. बेनश्री बेन भगवानने नीरखी नीरखीने हरखाता हता.
अने फरी फरीने पारणुं झुलावता हता. भगवान प्रत्येना तेमना भावो जोई जोईने भक्तोने
घणो आनंद थतो हतो. अजमेरनी भजनमंडळीना भाईओ पोतानी विशेष शैलीथी
भगवाननुं पारणुं झुलावता हता.
रात्रे, भगवान वन–विहार करवा नीकळ्‌या छे अने कमठ तापस तप करे छे, ते वखते
अग्निमां जे लाकडा बळे छे तेमां नाग–नागणी होवानुं भगवान जणावे छे, अने लाकडुं फाडतां
तेमांथी नाग–नागणी नीकळे छे, तेनी अंतिम अवस्थामां भगवान तेने नमोकार मंत्र
संभळावे छे, अने पछी कमठ तापसने खूब ज वैराग्यभर्युं संबोधन करे छे–ए द्रश्य थयुं हतुं.
त्यारबाद विश्वसेन महाराजाना राजदरबारमां युवराजपदे पार्श्वनाथ भगवान बिराजे छे अने
देशोदेशना राजाओ आवीने भगवानने भेट धरे छे ते द्रश्य थया हता.
(महा वद अमासनो क्षय हतो)
फागण सुद १ ना रोज सवारमां विश्वसेन महाराजाना दरबारमां अयोध्या नगरीना दूत
आवीने भेट धरे छे; श्री पार्श्वकुमार तेमने अयोध्यापुरीना समाचार पूछे छे के अरे दूत!
अत्यार पहेलांं मारा जेवा अनंत तीर्थंकरोए जे नगरीमां जन्म लीधो ते नगरी केवी छे?
दूतना मुखेथी अयोध्या नगरीनुं वर्णन सांभळतां भगवानने जातिस्मरण ज्ञान थाय छे, अने
वैराग्य थाय छे. भगवानने वैराग्य थतां लौकांतिक देवो आवीने भगवाननी स्तुति करे छे ने
तेमना वैराग्यनी अनुमोदना करे छे. त्यारबाद ईन्द्रो पालखी लईने दीक्षा–कल्याणक उत्सव
मनाववा आवे छे. प्रथम राजवीओ, पछी विद्याधरो ने पछी देवो भगवाननी पालखी लईने
वनमां जाय छे, ने वनमां भगवान स्वयं दीक्षित थाय छे. दीक्षाप्रसंगे भगवानना केशलोचनी
विधि पू. गुरुदेवे पोताना हस्ते बहु ज वैराग्यभावना पूर्वक करी हती. त्यारबाद भगवान
निर्विकल्प ध्यानमां लीन थया ने सातमुं गुणस्थान तथा मनःपर्ययज्ञान थयुं. अने पछी
भगवान तो वनविहार करी गया. त्यारबाद पू. गुरुदेवे अद्भुत वैराग्य प्रवचन द्वारा
भगवानना महा आनंदनुं स्वरूप बताव्युं हतुं अने तेनी उग्र भावना व्यक्त करी हती.
पछी भगवानना केशनुं क्षीरसमुद्रमां क्षेपण करवामां आव्युं हतुं, अने मुनिराज पार्श्वप्रभुनी
पूजा करवामां आवी हती; बपोरे अजमेर भजनमंडळीए भक्ति करी हती. रात्रे, पार्श्वप्रभु
मुनिराज ध्यानदशामां स्थित छे त्यां उपरथी संवरदेव (कमठना जीव) नुं विमान पसार थतां अटकी
जाय छे, तेथी गुस्से थई पूर्वनुं वेर याद करीने संवरदेव पार्श्वप्रभु उपर घोर उपसर्ग करे छे–
पत्थरोनो वरसाद वरसावे छे, भयंकर अग्नि वरसावे छे, अने पाणीनो वरसाद वरसावे छे. छतां
धीरवीर भगवान तो आत्माना आनंदमां एवा लीन छे के घोर उपसर्गमां पण रंचमात्र
चलायमान थता नथी. आ द्रश्य जोतां भक्तजनो स्तब्ध बनी गया हता, अने ए परम वीतरागी
दिगंबर मुनिराज प्रत्ये भक्तिथी शिर नमी पडतुं हतुं. छेवटे पूर्वभवमां मृत्यु वखते पार्श्वनाथ