Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २०१० : आत्मधर्म–१२६ : १११ :
प्रभुना श्रीमुखेथी नमस्कार मंत्र सांभळीने जे नाग–नागणी धरणेन्द्र अने पद्मावतीदेवी थया
हता तेमनुं सिंहासन चलायमान थतां ते आवीने भगवानना उपर फेण धरीने उपसर्गनुं
निवारण करे छे ए द्रश्य पण बहु भावभर्युं हतुं. उपसर्ग निवारण बाद ए परम वीतरागी
मुनिराजनी बहु ज भावपूर्वक भक्ति थई हती.
फागण सुद बीजना रोज सवारना प्रवचन बाद भगवान श्री पार्श्वनाथ मुनिराजना
आहार–दाननी विधि थई हती. भगवानने पडगाहन करीने नवधाभक्ति पूर्वक भक्तजनो
आहारदान देता हता ते द्रश्य दर्शनीय हतुं. आहारदान शेठ श्री नेमिदासभाईने त्यां ज थयो
हतो. आहारदान बाद घणी उल्लासमय भक्ति थई हती.
बपोरे परमपूज्य सद्गुरुदेवना परम पावन हस्ते सर्वे जिनबिंबो उपर अंकन्यास विधि
थई हती. पू. गुरुदेवे घणा भावपूर्वक सर्वे जिनबिंबो उपर अंकन्यास विधि करी हती, ते
जोईने भक्तो घणा आनंदथी भक्ति अने जयनाद करता हता. बपोरे भगवाननो केवळज्ञान
कल्याणक थयो हतो, अने समवसरणनी रचना थई हती. बादमां भगवानना दिव्यध्वनिरूपे
पू. गुरुदेवे अद्भुत प्रवचन कर्युं हतुं. रात्रे मानस्तंभना प्रतिष्ठा–महोत्सवनी फिल्म
बताववामां आवी हती. आजे सोनगढना जिनमंदिरमां सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठानो मंगल
दिवस हतो अने बराबर आ ज दिवसे उमराळाना सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठा पू. गुरुदेवना
मंगल हस्ते थई.
[फागण सुद: ३]
सवारमां भगवानना निर्वाणकल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं. श्री पार्श्वनाथ भगवान शाश्वत
तीर्थधाम सम्मेदशिखरजीनी सौथी ऊंची टूंक उपरथी निर्वाणपद पाम्या, ते सम्मेदशिखरजीनी
रचना थई हती. त्यारबाद निर्वाणकल्याणकनुं पूजन अने भक्ति थई हती. पछी प्रतिष्ठित
थयेला जिनेन्द्रभगवंतो जिनमंदिरे पधार्या हता, ने त्यां परमपूज्य गुरुदेवश्रीना पावन हस्ते
वेदी उपर जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठा थई हती. मूळनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान अने तेमनी
आजुबाजुमां शांतिनाथ प्रभु तथा नेमिनाथ प्रभु बिराजमान छे. तथा उपरना भागमां श्री
पार्श्वनाथप्रभु बिराजमान छे. आ उपरांत जिनमंदिरमां एक कबाटमां नियमसारजी शास्त्रनी
स्थापना पण परम पूज्य गुरुदेवना पवित्र हस्ते करवामां आवी हती. बपोरे जिनमंदिरमां
भक्ति थई हती, तेमां पू. गुरुदेवे एक स्तवन गवडाव्युं हतुं. त्यारबाद बपोरे पू. गुरुदेवना
प्रवचन पछी जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी हती. भगवाननी गंधकुटी, हाथी,
भजनमंडळी, रथ, ईन्द्रध्वज, चमर–मंडप नीचे पू. गुरुदेव ईत्यादि द्रश्योथी रथयात्रा घणी ज
प्रभावक हती. चैत्र सुद चोथना रोज सवारमां शांतियज्ञ थयो हतो, अने चैत्र सुद छठ्ठना रोज
पू. गुरुदेव पोरबंदरथी विहार करीने जामनगर तरफ पधार्या हता.
पोरबंदरमां शेठ श्री नेमीदासभाईए घणा उल्लासथी दि. जिनमंदिर बंधाव्युं ए तेमां
जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक महोत्सव कराव्यो ते बदल तेमने अनेक
धन्यवाद घटे छे. परम प्रतापी गुरुदेवनो महान प्रभावना उदय जयवंत वर्तो के जेना प्रतापे
सौराष्ट्रना भक्तजनोने ठेर ठेर जिनेन्द्र भगवाननो भेटो थाय छे ने आखुं सौराष्ट्र
तीर्थधाम बनी गयुं छे.