Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 21

background image
: वैशाख : २०१० : आत्मधर्म–१२७ : १३३ :
आत्मानी साची
शांति केम थाय?
वांकानेरमां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा–महोत्सव दरमियान
परम पूज्य सद्गुरु देवनुं प्रवचन
[वीर सं. २४८०, चैत्र सुद ९]
शिष्य पूछे छे के प्रभो! आत्मानी शांति केम मळे? आत्मानी शांतिनो उपाय शुं छे?
अनादिकाळथी संसारनी चार गतिमां रझळतां क्यांय साची शांति थई नथी. नरकमां ने स्वर्गमां,
तिर्यंचमां ने मनुष्यमां अनादिकाळथी अवतार धारण कर्या, अने तेना कारणरूप पाप तेमज
पुण्यभावो अनंतवार कर्या छे पण तेमां क्यांय आत्मानी शांति पाम्यो नथी. आत्मानी शांतिनी
जिज्ञासाथी हवे शिष्य पूछे छे के प्रभो! मने मारा आत्मानुं भान थाय अने शांति थाय एनो
उपाय शुं छे? आवुं पूछनारने आत्मानी आस्था छे, जेनी पासे पूछे छे एवा ज्ञानी गुरुनी
आस्था पण थई छे अने आत्मानुं स्वरूप समजवानी जिज्ञासा थई छे, एवा शिष्यने
आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई! देहादिनो संयोग तेमज अवस्थानो क्षणिक विकार देखाय छे ते
तारा आत्माना स्वभाव साथे एकमेक थई गया नथी; क्षणिक संयोग अने विकारनी द्रष्टि
छोडीने, आत्माना भूतार्थ स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां भगवान आत्मा कर्मथी बंधायेलो नथी
तेमज विकार पण तेनी साथे एकमेक थई गयेल नथी. आवा भूतार्थ स्वभावनी द्रष्टिथी आत्मा
शुद्धस्वभावपणे अनुभवाय छे; ने तेमां अतीन्द्रिय शांतिनो अनुभव थाय छे; आ सम्यग्दर्शननी
रीत छे.
लक्ष्मी वगेरेनो राग घटाडीने धर्मप्रभावना माटे प्रतिष्ठा–महोत्सव वगेरे कार्योमां लक्ष्मी
वापरवानो शुभभाव धर्मीने पण आवे, छतां ते वखते धर्मी जाणे छे के आ राग तो संयोगना
लक्षे थाय छे ने मारो स्वभाव तो असंयुक्त छे, रागथी पण मारो स्वभाव असंयुक्त छे. हे
भाई! जो तारे अनंतकाळनी भूख भांगवी होय ने धर्मनी शरूआत करवी होय, अपूर्व
आत्मशांति जोईती होय तो अंतरमां शुद्ध ज्ञानानंद स्वभावनुं अवलंबन कर. देव–गुरु–धर्म
प्रत्ये भक्तिनो आह्लाद आवे, भगवाननो जन्म थतां ईन्द्रोना आसन कंपायमान थाय ने
ईन्द्रो आवीने भक्तिथी नाची ऊठे. तीर्थंकरना जन्म पहेलांं पंदर मास अगाउ ईन्द्रो आवीने
भगवानना माता–पितानी सेवा करे, उपरथी रत्नोनी वर्षा करे छे. माता पासे आवीने कहे छे
के हे देवी! छ महिना पछी आपनी कुंखे त्रिलोकनाथ तीर्थंकरनो आत्मा आववानो छे. हे
माता! आप भगवानना ज नहि पण त्रणलोकना माता छो! हे रत्नकुंखधारिणी माता! आप
त्रिलोकनाथ तीर्थंकरने जन्म देनारा छो. आवो भक्तिनो भाव आवे, छतां ते वखते ते रागथी
पार चिदानंद स्वभाव उपर धर्मीनी द्रष्टि पडी छे. चिदानंद स्वरूप आत्माने केम प्राप्त करवो
तेनी आ वात छे. भगवान
(अनुसंधान माटे जुओ : पाना नं. १४३ उपर)