Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १३६ : आत्मधर्म–१२७ : वैशाख : २०१० :
टळे? जो कर्म ज रखडावतुं होय तो तारे तो कांई छूटकारानो उपाय करवानुं रह्युं ज नहि. वळी जो कर्मना
वांकथी संसार होय तो जडकर्मने उपदेश देवो जोईए के हे जडकर्म! तुं हवे खसी जा. परंतु कदी कोई शास्त्रमां
जडने तो उपदेश कर्यो नथी, उपदेश तो जीवने माटे ज कर्यो छे. केमके पोताना दोषथी ज जीव रखडयो छे ने
पोताना दोष टाळीने ते मुक्तिनो उपाय करे छे. माटे हे जीव! तुं तारा आत्माने कर्मथी जुदो देख. कर्म मने
रखडावे छे एम जे माने छे तेणे हजी पोताना आत्माने कर्मथी भिन्न देख्यो नथी, तेथी तेओ मिथ्याद्रष्टि छे.
अहीं तो कहे छे के व्यवहारना अवलंबनथी जे लाभ माने छे तेणे पण कर्मथी भिन्न शुद्धआत्माने देख्यो नथी, ते
पण मिथ्याद्रष्टि ज छे. कर्मथी भिन्न भूतार्थ आत्मस्वभावने देखनाराओए व्यवहारनय अनुसरवा योग्य
नथी; भूतार्थस्वभावने अनुसरनाराओ ज सम्यग्द्रष्टि छे, माटे शुद्धनयना विषयभूत एवो भूतार्थस्वभाव ज
आश्रय करवा योग्य छे; भूतार्थ स्वभाव ते हुं–एवी अंर्त–द्रष्टिथी आत्माने देखवो ते सम्यक्दर्शन छे. ‘भूतार्थ
स्वभावनुं अवलंबन’ ते एक ज प्रकारे धर्म छे, तेमां ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग समाई जाय छे.
पछी व्यवहारथी तेने गमे ते प्रकारे समजावे, पण मूळ वस्तु तो आ छे. गुणस्थान वगेरेना अनेक प्रकारो छे
तथा तेना निमित्तो पण भिन्न भिन्न अनेक प्रकारना छे, पर्यायमां ते बधुं सत् छे, परंतु ते बधो
व्यवहारनयनो विषय छे, तेना अवलंबनथी सम्यग्दर्शनादि थता नथी. परमार्थनयना ध्येयरूप भूतार्थस्वभाव
एक ज प्रकारनो छे. तेथी शुद्धस्वभावनी द्रष्टिमां भेद नथी, ते स्वभावना अवलंबने ज सम्यग्दर्शनादि थाय छे,
ने भवभ्रमण टळे छे.
–माटे जेने धर्म करवो छे एवा जीवोए शुद्ध–आत्माने देखनारो शुद्धनय ज आश्रय करवा जेवो छे,
अशुद्ध आत्माने देखनारो व्यवहारनय आश्रय करवा जेवो नथी. आ प्रमाणे आचार्यदेवे अगियारमी गाथामां
शिष्यना प्रश्ननो उत्तर आप्यो. आ समजीने, ज्ञानने अंतरना भूतार्थस्वभाव तरफ वाळीने अनुभव करतां.
शुद्धआत्माना आनंदनो अपूर्व अनुभव अने सम्यग्दर्शन थाय छे, तेनुं नाम धर्म छे.
* * * * *
जोरावरनगरमां जिनमंदिर माटेनी जाहेरात
सौराष्ट्रमां मंगल विहार दरमियान परम पूज्य गुरुदेव चैत्र
वद ११ ना रोज जोरावरनगर पधार्या, ते प्रसंगे त्यांना मुमुक्षु
भाईओने घणो उत्साह हतो, अने जोरावरनगरमां जिनमंदिर
बंधाववा माटेनी उल्लासभरी जाहेरात पू. गुरुदेवनी मंगल छायामां
करी हती; ते माटे नीचे मुजब रकमो जाहेर करी हती.–
२५०१) – शेठ अमुलख लालचंदभाई
१००१) – शेठ अनुपचंद छगनलाल
२०१) – शेठ कस्तुरचंद प्राणजीवन.
आ उपरांत लगभग ९००) रूा. परचुरण रकमोमां थया हता.
जिनमंदिर कराववानी आ उल्लासभरी जाहेरात माटे त्यांना मुमुक्षु
भाईओ–खास करीने अमुलखभाई वगेरेने अभिनंदन घटे छे. परम
पूज्य गुरुदेव पगले पगले जैनधर्मनी महान प्रभावना करता जाय
छे, अने अमृतमय उपदेशधारा वडे अनेक भक्तजनो उपर उपकार
करता जाय छे.