जिनेन्द्र शासनना परम प्रभावक पू. गुरुदेवना पुनित प्रतापे सौराष्ट्रना भक्त जनोने ठेरठेर
प्राप्त थाय छे. जिनेन्द्र भगवाननुं यथार्थ स्वरूप बतावीने तेमज जिनेन्द्रदेवे कहेला धर्मनुं स्वरूप समजावीने पू.
गुरुदेव भक्तजनो उपर परम उपकार करी रह्या छे.
सवारमां मृत्तिकानयन तथा अंकुरारोपण विधि थई हती. तेमज परम पूज्य गुरुदेव वांकानेर पधर्या हता त्यारे
मुमुक्षु मंडळे तेमज शहेरना भक्तजनोए अत्यंत उल्लासथी पू. गुरुदेवनुं भव्य स्वागत कर्युं हतुं. सांजे वीस
विहरमान तीर्थंकरोनुं पूजन पूर्ण थयुं हतुं अने जिनेन्द्रदेवनो अभिषेक थयो हतो.
प्रतिष्ठा–महोत्सव माटे आज्ञा मागी हती. पू. गुरुदेवे ते माटे आज्ञा आपीने मांगळिक संभळाव्युं हतुं. तरत ज
ईन्द्रप्रतिष्ठा थई हती; अने पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद ईन्द्रप्रतिष्ठानुं जुलूस शहेरमां फर्युं हतुं. हंमेशा सवार–
बपोर पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थतुं हतुं, हजारो मुमुक्षुओनी भव्यसभा पू. गुरुदेवनी अध्यात्म–वाणी सांभळीने
स्तब्ध थई जती हती.
थयुं हतुं. तेमां प्रथम, नेमिनाथ भगवाननो जीव पूर्वभवे देवलोकमां बिराजे छे ने त्यां तेनुं आयुष्य छ महिना
बाकी रह्युं छे ते भाव बताववामां आव्यो हतो. त्यारबाद सौधर्म स्वर्गनी सभानो देखाव थयो हतो. तेमां
सौधर्मईन्द्र अवधिज्ञानथी जाणे छे के छ महिना बाद नेमिनाथ भगवान शिवादेवी मातानी कुंखे आववाना छे,
तेथी शौरीपुरने शणगारवानी तेमज समुद्रविजय महाराजाने त्यां पंदर मास सुधी रत्नवृष्टि करवानी कुबेरने
आज्ञा आपे छे, तेमज आठ देवीओने शिवादेवी मातानी सेवा माटे मोकले छे–ए बधा भावो बताववामां
आव्या हता. ईन्द्रादिक देवो आवीने भगवानना माता–पितानुं बहुमान करे छे ने वस्त्राभूषणनी भेट धरे छे;
तथा आठ देवीओ माताजीनी सेवा करे छे. माताजी सोळ मंगल स्वप्नो देखे छे ईत्यादि सुंदर द्रश्यो थया हता.
समुद्र–महाराजा ते स्वप्नना उत्तम फळ तरीके तीर्थंकरभगवानना गर्भावतरणनुं वर्णन करे छे. त्यारबाद आठ
देवीओ भगवाननी माता साथे आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा करे छे अने विधविध प्रश्नो पूछे छे, माताजी विद्धत्तापूर्वक
जवाब आपे छे–ए बधा भावोना द्रश््यो थया हता (भगवानना माता–पिता तरीके शेठ श्री खीमचंद जेठालाल
तथा तेमना धर्मपत्नी जयाकुंवरबेन हता)