Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १४० : आत्मधर्म–१२७ : वैशाख : २०१० :
अने ध्वज वगेरेनी शुद्धिनी विधि थई हती. आ विधि जिनमंदिरमां घणा उल्लासपूर्वक थई हती. पू.
बेनश्रीबेनजीए घणी भक्तिथी हृदयना उमंगपूर्वक वेदीशुद्धि तेमज ध्वजशुद्धि करी हती. ए पवित्र आत्माओना
मंगल हस्ते भगवान धामनी शुद्धि थती देखीने भक्तोने घणो हर्ष थतो हतो. ईन्द्र–ईन्द्राणी तेमज देवीओए
पण शुद्धिनी क्रिया करी हती. भगवाननी बेठक उपर स्वस्तिक स्थापन वगेरे मंगलविधि पू. बेनश्रीबेनना
पवित्र हस्ते थई हती. कलामय ध्वजदंड अने कलश भव्य लागता हता.
चैत्र सुद ११ना रोज नेमिनाथ भगवानना जन्म कल्याणकनो महोत्सव घणा उत्साहथी सुंदर रीते थयो
हतो. सवारमां शिवादेवी मातानी कुंखे श्री नेमिनाथ भगवाननो जन्म थवानी मंगल–वधाई देवीओए आपी
हती. चारे बाजु वाजिंत्रोना मंगलनाद थता हता. ईन्द्रसभामां भगवानना जन्मनी खबर पडतां ज ईन्द्रोए
प्रभुजीने वंदन कर्युं अने तरत ज ऐरावत हाथी उपर बेसीने भगवाननो जन्मकल्याणक उत्सव ऊजववा
आव्या. माताना महेले आवीने ईन्द्राणीए घणा वात्सल्यभावपूर्वक भगवानने तेडीने ईन्द्रना हाथमां आप्या,
अने ईन्द्रे बहु हर्ष अने भक्तिपूर्वक हजार नेत्रोथी भगवानना दिव्यरूपने नीहाळ्‌युं. त्यारबाद हाथी उपर
बिराजमान करीने प्रभुजीने मेरुपर्वत उपर लई जवानुं भव्य जुलूस नीकळ्‌युं हतुं. शहेरना रस्ताओमां आ
जुलूस घणुं शोभतुं हतुं. अजमेरनी भजन मंडळी पण साथे होवाथी प्रसंग घणो उल्लासभर्यो हतो.
जन्माभिषेकना जुलूसमां पू. गुरुदेव पण साथे पधार्या हता. आ प्रसंगे सुशोभित मेरुपर्वतनी रचना करवामां
आवी हती. मेरूपर्वत पासे पहोंचतां त्यां हाथीए त्रण प्रदक्षिणा करीने पछी पांडुकशिला उपर प्रभुजीने
बिराजमान कर्या. सुप्रभातना प्रकाशमां मेरु उपर बिराजमान प्रभुजीनुं द्रश्य अत्यंत भव्य लागतुं हतुं. ए
वखते भगवानने नीरखतां एम थतुं हतुं के अहो, नाथ! धन्य आपनो अवतार! धन्य आपनो जन्म!! आ
अवतारमां ज आत्माना पूर्ण हितने साधीने आप तीर्थंकर थशो....ने जगतना अनेक भव्य जीवोनो उद्धार
करशो. आ आपनो छेल्लो अवतार छे. ए बालक–प्रभुजीने नीरखतां भक्तोने बहु आनंद थतो हतो. पछी
ईन्द्रोए तेमज अनेक भक्तजनोए अतिशय उल्लासपूर्वक नेमकुंवर भगवाननो जन्माभिषेक कर्यो.... ते प्रसंगे
चारे तरफ भक्तिभर्युं प्रसन्न वातावरण छवाई गयुं हतुं. अभिषेक बाद भगवानने दिव्य वस्त्राभूषण
पहेरावीने पाछा आवीने माताजीने सोंप्या हता अने त्यां ईन्द्र वगेरेए भक्तिपूर्वक तांडव–नृत्य कर्युं हतुं. सर्वे
भक्तजनो भगवानना जन्मनी खुशाली मनावता हता.
बपोरे भगवान श्री नेमकुंवरनुं पारणुं झुलाववानी क्रिया थई हती. अनेक भक्तजनो भक्तिपूर्वक
भगवाननुं पारणुं झुलावता हता. सुशोभित पारणामां भगवानने नीरखी नीरखीने पू. बेनश्रीबेन प्रसन्न थता
हता अने फरी फरीने भावपूर्वक पारणुं झुलावता हता, तथा चामर वगेरेथी विधविध प्रकारनी भावभरी भक्ति
करता हता. भगवान प्रत्येना तेमना भावो जोई जोईने भक्तोने घणो आनंद थतो हतो. अजमेरनी
भजनमंडळीना भाईओ पोतानी विशेष शैलीथी भगवाननुं पारणुं झुलावता हता अने भक्ति करावता हता.
रात्रे समुद्रविजय महाराजाना राजदरबारनो देखाव थयो हतो, तेमां श्रीकृष्ण–बळदेव वगेरे पण
उपस्थित हता अने यदुवंशमां नेमिनाथ तीर्थंकरनो जन्म थयो तेथी बधा हर्ष मनावता हता. पछी वसंतऋतुमां
राजकुमारो नेमिनाथकुमार साथे खेलवा गया छे, त्यां नेमिकुमार श्रीकृष्णना पटराणीने वस्त्र धोवानुं कहेतां ते
ना पाडे छे, अने नेमिकुमार जईने श्रीकृष्णनो शंख फूंके छे, तेनी नागशय्या उपर सूवे छे, ने तेना धनुष्यनो
टंकार करे छे ईत्यादि देखाव थयो हतो. नेमिकुमार बाल्यावस्था पूर्ण करीने युवावस्थामां वर्ते छे, तेमना
विवाहनी तैयारी उग्रसेन महाराजानी पुत्री राजीमती साथे थाय छे, देशोदेशना राजा–महाराजाओ भेट लईने
आवे छे, अने नेमिकुमारनी जान जुनागढ तरफ जाय छे. त्यां पशुओनो पोकार सांभळतां ज नेमिकुमार रथने
थंभावी दे छे. आ प्रसंगे रथना सारथी साथे बहु ज वैराग्यभर्यो संवाद थाय छे, अने छेवटे भगवान
परणवानो विचार बंध राखीने रथने पाछो वाळे छे. आ बधा द्रश्यो सुंदर रीते थया हता. बीजी तरफ–राजीमती
एकाएक रथने अद्रश्य थतो देखीने तेनी सखीने तेनुं कारण पूछे छे. आ प्रसंगे सखी साथे राजीमतीनो सुंदर
संवाद थाय छे. अने भगवानना वैराग्यनी खबर पडतां राजीमती पोते पण परणवानो विचार बंध राखीने,
भगवान जे पावन पंथे विचर्या ते पंथे विचरवानी भावना भावे छे–ए प्रसंग संवाद द्वारा बताववामां आव्यो
हतो. आ प्रसंग घणो ज वैराग्यप्रेरक हतो.