गवायुं हतुं. भगवानने वैराग्य थतां लौकांतिक देवो पोतानो नियोग बजाववा आवे छे, आवीने भगवाननी
स्तुति करे छे ने भगवानना वैराग्यनुं अनुमोदन करतां कहे छे के “अहो, वैराग्यमूर्ति नेमिनाथ भगवान!
विवाह समये वैराग्य धारण करीने आपश्री जगतने वीतरागतानो अक भव्य आदर्श आपी रह्या छो. आ
संसारना भोग खातर आपनो अवतार नथी पण आत्माना मोक्ष खातर आपनो अवतार छे. आ भव, तन
अने भोगथी विरक्त थईने आत्माना चिदानंद स्वभावमां पूर्णपणे समाई जवा माटे आप जे वैराग्य चिंतन
करी रह्या छो तेने अमारी भावभरी अनुमोदना छे.”
स्वयं दीक्षित थाय छे शहेरना बागमां भगवाननो दीक्षाप्रसंग अत्यंत शोभतो हतो. दीक्षाप्रसंगे भगवानना
केशलोचनी विधि पू. गुरुदेवना सुहस्ते थई हती. बहु ज भक्ति अने वैराग्यभावपूर्वक पू. गुरुदेवे प्रभुजीनो
केशलोच कर्यो हतो. त्यारबाद भगवान निर्विकल्प ध्यानमां लीन थया ने सातमुं गुणस्थान तथा मनःपर्ययज्ञान
थयुं; अने पछी भगवान तो वनविहार करी गया. दीक्षावनमां पू. गुरुदेवे अद्भुत वैराग्य प्रवचन द्वारा
भगवाननी दीक्षानुं स्वरूप बताव्युं हतुं, तथा ते धन्य अवसरनी भावना भावी हती. ए प्रवचन बाद वनमां
ज अजमेरनी संगीत मंडळीए मुनिराजनी भक्ति करी हती, तेमां “ऐसे मुनिवर देखे वनमें....जाके राग–द्वेष
नहि मनमें” ईत्यादि भजनो वडे भावभरी भक्ति थई हती; पछी भगवानना केशनुं समुद्रमां क्षेपण करवामां
आव्युं हतुं. बपोरे मुनिराज श्री नेमिनाथ प्रभुनी भक्ति थई हती, रात्रे सोनगढना मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–
महोत्सवनी फिल्म बताववामां आवी हती ते जोईने ए अद्भुत प्रतिष्ठा–महोत्सवना भक्ति भरेला प्रसंगोनुं
स्मरण थतुं हतुं.
उल्लासपूर्ण हती. लोको जागी जागीने प्रभात–फेरी नीरखवा बहार आवता हता. आ प्रभात–फेरी द्वारा महावीर
प्रभुना जन्मनो पावन संदेश शहेरमां फेलाई गयो हतो. सवारे पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद भगवान श्री नेमिनाथ
मुनिराजना आहारदाननी विधि थई हती. भगवानने पडगाहन करीने नवधाभक्तिपूर्वक भक्तजनो आहारदान
देता हता, ते द्रश्य दर्शनीय हतुं. आहारदान प्रसंग शेठ श्री छगनलाल भाईचंदने त्यां थयो हतो. आ प्रसंग घणो
उल्लासमय हतो, अने आहारदान पछी मुनिराज नेमिप्रभुनी घणी भक्ति थई हती.
अने जयनाद करता हता. श्री जिनेन्द्रदेव अने जिनेश्वरना लघुनंदननुं आवुं भक्तिभर्युं सुमिलन जोईने
मुमुक्षुओना हृदयमां भक्ति उल्लसती हती.
बिराजमान नेमिनाथ भगवान बहु शोभता हता. आ प्रसंगे भगवानना दिव्यध्वनिरूपे पू. गुरुदेवे अद्भुत
प्रवचन कर्युं हतुं. प्रवचन पछी समवसरणनी अद्भुत भक्ति थई हती. रात्रे सोनगढना मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–
महोत्सवनी फिल्म बताववामां आवी हती.
देवोए आवीने निर्वाण–कल्याणक ऊजव्यो. आ प्रसंगे गिरनारजी पर्वतनी घणी सुंदर रचना थई हती.
पंचकल्याणक बाद, प्रतिष्ठित थयेला वर्द्धमानादि जिनेन्द्रभगवंतो जिनमंदिरे पधार्या हता. भगवान पधार्या