पूज्य गुरुदेवना पावन हस्ते वेदी उपर जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठा थई हती. वांकानेरनुं जिनमंदिर घणुं भव्य
अने सुंदर छे, लगभग ५५ हजार रूा
शांतिनाथ भगवान अने श्री नेमिनाथ भगवान बिराजमान छे. अने उपरना भागमां महाविदेही श्री सीमंधर
भगवान बिराजमान छे. आ उपरांत जिनमंदिरमां श्री समयसारजी शास्त्रनी स्थापना पण पू. गुरुदेवना
पवित्र करकमळथी थई हती. जिनमंदिरमां बिराजमान भगवंतोनी परम शांत मुद्रा देखी देखीने भक्तजनोना
हैयां भक्तिथी नाची ऊठता हता. भगवाननी प्रतिष्ठा बाद जिनमंदिर उपर सुंदर कलश अने अने ध्वज
चढाववामां आव्या हता. बपोरे जिनमंदिरमां भक्ति थई हती, तेमां पू. गुरुदेवश्रीए महावीर भगवाननुं
स्तवन गवडावीने बहु उल्लासभरी भक्तिनी शरूआत करी हती. पू. गुरुदेवनी भक्ति सांभळीने बधाने घणो
हर्ष थयो हतो.
खास भक्ति, चामर–छात्र–तोरण–स्वप्नो वगेरेनो सुंदर शणगार, रथ, ईन्द्रध्वज, वगेरेथी रथयात्रा शोभती
हती, तेमां पण हाथी उपर पू. बेनश्रीबेन हाथमां धर्मध्वज लईने बिराजता हता ए द्रश्यथी रथयात्रानी शोभा
अनेकगणी वधी गई हती. आवी प्रभावशाळी रथयात्रा जोईने भक्तोने घणो आनंद थयो हतो, रथयात्रा
शहेरना मुख्य रस्ताओ उपर फरीने जिनमंदिर आवी हती, ने त्यां अद्भुत भक्ति थई हती.
बेडी पहेरावीने कोटडीमां पूरी दीधी छे, ने भगवानने आहारदान माटेनी भावना भावतां भावतां तेनी बेडी
तूटी जाय छे ईत्यादि देखावो घणा सुंदर रीते थया हता.
भक्तिपूर्वक गुरुदेवनो परम उपकार व्यक्त कर्यो हतो.
अपार उपकारोनुं वर्णन थई शके तेम नथी. सौराष्ट्रना लोकोने दि. जैनधर्म शुं छे तेनी थोडा वर्षो पहेलांं खबर
पण न हती, तेने बदले पू. गुरुदेवना अलौकिक धर्मप्रभावथी आजे सौराष्ट्रमां ठेरठेर दि. जैनधर्मना ऊंडा मूळ
रोपाया छे अने जैनशासननी मंगल प्रभावना दिनदिन वृद्धिगत थई रही छे. परम प्रतापी गुरुदेवनो महान
प्रभावना उदय जयवंत वर्तो के जेना प्रतापे सौराष्ट्रना भक्तजनोने ठेरठेर जिनेन्द्रभगवाननो भेटो थाय छे ने
आखुं सौराष्ट्र तीर्थधाम बनी गयुं छे. जिनेन्द्रभगवाननी प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक महोत्सव उल्लासपूर्वक
कराववा माटे वांकानेर दि. जैन संघना मुमुक्षु भाईओने अनेक धन्यवाद घटे छे. आ प्रतिष्ठा–महोत्सवमां विधि
कराववा माटे इंदोरना प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री नाथुलालजी शास्त्री आव्या हता अने तेमणे सुंदर रीते बधी विधि
करावी हती, ते माटे तेमनो आभार मानवामां आवे छे. प्रतिष्ठा–महोत्सव बाद, चैत्र सुद १४ ना रोज
सवारमां वांकानेर जिनमंदिरमां वर्द्धमान भगवाननी मंगल स्तुति करावीने पू. गुरुदेवे वढवाण तरफ विहार
कर्यो हतो.