महोत्सवोनुं महान सौभाग्य प्राप्त थाय छे. जिनेन्द्र भगवाननुं यथार्थ स्वरूप बतावीने तेमज
जिनेन्द्रदेवे कहेला धर्मनुं स्वरूप समजावीने पू. गुरुदेव भक्तजनो उपर परम उपकार करी रह्या
छे.
छायामां उजवायो.
पूजनविधान शरू थयुं हतुं. फागण वद ११ ना रोज सवारमां जलयात्रा विधि थई हती.
जलयात्राना जुलूसमां पू. बेनश्रीबेन सुवर्णकलशो लईने चालतां हतां ते द्रश्य घणुं शोभतुं
हतुं. सांजे वीस विहरमान तीर्थंकरोनुं पूजन पूर्ण थयुं हतुं, अने जिनेन्द्रदेवनो अभिषेक थयो
हतो.
गुरुदेव समक्ष आचार्य–अनुज्ञाविधि थई हती; तेमां मोरबीना मुमुक्षु संघे परम पूज्य
गुरुदेवनी स्तुति करीने, जिनेन्द्र भगवाननो पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा महोत्सव माटे आज्ञा मागी
हती. पू. गुरुदेवे ते माटे आज्ञा आपीने मांगळिक संभळाव्युं हतुं. तरत ज ईन्द्रप्रतिष्ठा थई
हती, अने त्यारबाद पू. गुरुदेवना स्वागतनुं तेमज ईन्द्र–प्रतिष्ठानुं संयुक्त जुलूस शहेरमां फर्युं
हतुं. शहेरमां फरीने महावीरनगरमां आव्या बाद पू. गुरुदेवे मांगळिक संभळावीने तेना
अपूर्व भावो समजाव्या हता. बपोरे पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. हजारो मुमुक्षुओनी
भव्यसभा पू. गुरुदेवनी अध्यात्मवाणी सांभळीने स्तब्ध थई जती हती.
कल्याणकनी पूर्वक्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं. तेमां प्रथम, महावीर भगवाननो जीव पूर्व भवे
पुष्पोत्तर विमानमां बिराजे छे ने त्यां तेनुं आयुष्य छ महिना बाकी रह्युं छे ते भाव
बताववामां आव्यो हतो. त्यारबाद सौधर्म स्वर्गनी सभानो देखाव थयो हतो, तेमां सौधर्म
ईन्द्र अवधिज्ञानथी जाणे छे के छ महिना बाद महावीर भगवान त्रिशलामातानी कूंखे
आववाना छे; तेथी कुंडलपुरीने शणगारवानी तेमज सिद्धार्थराजाने त्यां पंदर महिना सुधी
रत्नवृष्टि करवानी कुबेरने आज्ञा आपे छे, तेमज