Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १२८ : आत्मधर्म–१२७ : वैशाख : २०१० :
आठ देवीओने त्रिशलामातानी सेवा माटे मोकले छे –ए बधा भावो बताववामां आव्या हता.
ईन्द्रादिक देवो आवीने भगवानना माता–पितानुं बहुमान करे छे ने वस्त्राभूषणनी भेट धरे
छे; तथा आठ देवीओ माताजीनी सेवा करे छे. माताजी सोळ मंगल–स्वप्नो देखे छे–ईत्यादि
सुंदर द्रश्यो थया हता. आ उपरांत महावीर भगवानना पूर्व भवो (भील, सिंह वगेरे)नुं द्रश्य
बतावीने इंदोरना प्रतिष्ठाचार्य पं. नाथुलालजी शास्त्रीए तेनी समजण आपी हती.
फागण वद १३ ना रोज सवारमां गर्भकल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं. तेमां देवीओ त्रिशला–
मातानी सेवा करे छे, माताजी सवारमां ऊठीने मंगल स्तुति करे छे, अने पछी राजसभामां
जईने १६ स्वप्नोनुं वर्णन करे छे. सिद्धार्थ महाराजा ते स्वप्नना उत्तम फळ तरीके तीर्थंकर
भगवानना गर्भावतरणनुं वर्णन करे छे. त्यारबाद आठ देवीओ भगवाननी माता साथे
आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा करे छे अने विधविध प्रश्नो पूछे छे. माताजी विद्वत्तापूर्ण जवाब आपे छे
ए बधा भावोना द्रश्यो थया हता. (भगवानना माता–पिता तरीके शेठ श्री मोहनलाल
काळीदास तथा तेमना धर्मपत्नी शिवकुंवर बेन हता.)
बपोरे पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद, जिनमंदिरशुद्धि, वेदीशुद्धि, ध्वजशुद्धि तेमज
कलशशुद्धिनी विधि थई हती. आ विधि जिनमंदिरमां घणा उल्लासपूर्वक थई हती. पू. बेनश्री
बेनजीए घणी भक्तिथी हृदयना उमंगपूर्वक वेदीशुद्धि तेमज कळश–ध्वजशुद्धि करी हती. ए
पवित्र आत्माओना मंगल हस्ते भगवानना धामनी शुद्धि थती देखीने भक्तोने घणो हर्ष
थतो हतो. ईन्द्र–ईन्द्राणी तेमज देवीओए पण शुद्धिनी क्रिया करी हती. भगवाननी बेठक उपर
स्वस्तिक स्थापन वगेरे मंगलविधि पू. बेनश्रीबेनना पवित्र हस्ते थई हती. कलामय ध्वजदंड
अने सुर्वणकलश भव्य लागता हता. सांजे परम पू. गुरुदेव जिनमंदिरे पधार्या त्यारे
तेओश्रीना परमपावन हस्ते ध्वज अने कलश उपर मंगल स्वस्तिक कराव्या हता. परमकृपाळु
गुरुदेवे पोताना मंगल–हस्ते स्वस्तिक कर्यो ते द्रश्य जोईने भक्तो घणा प्रसन्न थया हता. रात्रे
सोनगढना मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सवनी फिल्मनो केटलोक भाग बताववामां आव्यो हतो,
ते जोईने ए अद्भुत प्रतिष्ठा–महोत्सवना भक्ति भरेला प्रसंगोनुं स्मरण थतुं हतुं.
फागण वद १४ ना रोज महावीर भगवानना जन्मकल्याणकनो महोत्सव घणा उत्साहथी
सुंदर रीते थयो हतो. सवारमां त्रिशलामातानी कुंखे श्री महावीर भगवाननो जन्म थवानी
मंगल वधाई देवीओए आपी हती. चारे बाजु वाजिंत्रोना मंगलनाद थता हता. ईन्द्रसभामां
भगवानना जन्मनी खबर पडतां ज ईन्द्रोए प्रभुजीने वंदन कर्युं अने तरत ज ऐरावत हाथी
उपर बेसीने भगवानना जन्मधामनी त्रण प्रदक्षिणा करी हती. प्रदक्षिणा बाद ईन्द्राणीए
बाल–प्रभुजीने तेडीने हर्षपूर्वक ईन्द्रना हाथमां आप्या हता; पछी हाथी उपर बिराजमान
करीने प्रभुजीने मेरुपर्वत उपर लई जवानुं भव्य जुलूस नीकळ्‌युं हतुं. शहेरना रस्ताओमां आ
जुलूस घणुं शोभतुं हतुं. अजमेरनी भजनमंडळी पण साथे होवाथी प्रसंग घणो उल्लासभर्यो
हतो. जन्माभिषेकना जुलूसमां पू. गुरुदेव पण साथे पधार्या हता. आ प्रसंगे नदीकिनारे
सुशोभित मेरु पर्वतनी रचना करवामां आवी हती. मेरु पर्वत पासे पहोंचतां त्यां हाथीए
त्रण प्रदक्षिणा करी ने पछी पांडुक शिला उपर प्रभुजीने बिराजमान कर्या. सुप्रभातना प्रकाशमां
मेरु उपर बिराजमान प्रभुजीनुं द्रश्य अत्यंत भव्य लागतुं हतुं. ए वखते