जन्म!! आ अवतारमां ज आत्माना पूर्णहितने साधीने आप तीर्थंकर थशो....ने जगतना
अनेक भव्यजीवोनो उद्धार करशो. आ आपनो छेल्लो अवतार छे...ए बालक प्रभुजीने
नीरखतां भक्तोने बहु आनंद थतो हतो...पछी ईन्द्रोए तेमज अनेक भक्तजनोए अतिशय
उल्लासपूर्वक वीर–कुंवर भगवाननो जन्माभिषेक कर्यो...ते प्रसंगे चारे तरफ भक्तिभर्युं प्रसन्न
वातावरण छवाई गयुं हतुं. अभिषेक बाद भगवानने दिव्य वस्त्राभूषण पहेरावीने पाछा
आवीने माताजीने सोंप्या हता. अने त्यां ईन्द्र वगेरेए भक्तिपूर्वक तांडवनृत्य कर्यु हतुं. सर्वे
भक्तजनो भगवानना जन्मनी खुशाली मनावता हता.
नीरखीने पू. बेनश्रीबेन हरखाता हता अने फरी फरीने भावपूर्वक पारणुं झुलावता हता, तथा
चामर वगेरेथी विधविध प्रकारनी भावभरी भक्ति करता हता. भगवान प्रत्येना तेमना
भावो जोई–जोईने भक्तोने घणो आनंद थतो हतो. अजमेरनी भजन–मंडळीना भाईओ
पोतानी विशेष शैलीथी भगवाननुं पारणुं झुलावता हता अने भक्ति करावता हता.
प्रसंग ऊजववा देशोदेशना राजाओने आमंत्रण आपीने खास राजदरबार भरायो छे.
देशोदेशना राजा–महाराजाओ आवीने भक्तिपूर्वक भगवानने भेट धरे छे.
महावीर कुमारने देखतां ज तेमनी आशंकाओनुं निवारण थई जाय छे, तेथी प्रसन्न थईने
तेओ श्लोक बोले छे अने महावीर भगवानने “सन्मतिनाथ” एवुं खास नाम आपे छे. आ
प्रसंग सुंदर अने भाववाही हतो; तेमां पण उपर आकाशमांथी बे मुनिवरो नीचे उतरी रह्या
छे ए देखाव तो बहु ज अद्भुत हतो.
कुमार समक्ष सूचन मूके छे. ‘पण अल्पकाळमां मारे महान आत्मकार्य करवानुं छे’ एम
विचारी भगवान वैराग्य पामे छे, भगवानने जातिस्मरण थाय छे, अने परणवानी ना
पाडीने दीक्षा माटे तैयार थाय छे... त्रिशलामाताने भगवाननी आ वात सांभळतां प्रथम तो
आघात थाय छे पण पछी महावीर भगवान वैराग्यपूर्वक समजावे छे तेथी प्रसन्नतापूर्वक
भगवानने दीक्षा लेवानी रजा आपे छे...आ बधा द्रश्योना भाव बताववामां आव्या हता.
भगवानना वैराग्यनुं अनुमोदन करतां कहे छे के “अहो, वैराग्यमूर्ति महावीर भगवान! आ
भव तन अने भोगने अनित्य विचारीने, आत्माना चिदानंद स्वरूपमां पूर्णपणे समाई जवा
माटे आपश्री जे वैराग्यभावना भावी रह्या छो तेने अमारी