Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २०१० : आत्मधर्म–१२७ : १३१ :
थयो हतो. भगवानने केवळज्ञान थतां समवसरणनी रचना थई हती. विधविध शणगारथी
रचायेला समवसरणनी मध्यमां गंधकुटी उपर बिराजमान महावीर भगवान बहु शोभता
हता. आ प्रसंगे भगवानना दिव्यध्वनिरूपे पू. गुरुदेवे अद्भुत प्रवचन कर्युं हतुं. रात्रे
सोनगढना मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सवनी फिल्म बताववामां आवी हती.
चैत्र सुद बीजना रोज सवारमां पावापुरीमां भगवान बिराजमान छे, ने पछी
योगनिरोध करीने भगवान अपूर्व निर्वाणदशाने पाम्या, ए निर्वाण–कल्याणक थयो हतो. आ
वखते पावापुरीनुं सुंदर द्रश्य रचवामां आव्युं हतुं. आ रीते श्री महावीर जिनेन्द्र भगवानना
पंचकल्याणक पूर्ण थया हता.
पंचकल्याणक बाद, प्रतिष्ठित थयेला महावीरादि जिनेन्द्रभगवंतो जिनमंदिरे पधार्या
हता. भगवान पधार्या त्यारे भक्तोने घणो ज उल्लास हतो, अने चारे बाजु आनंदमय
वातावरण छवाई गयुं हतुं. परम कृपाळु पू. गुरुदेवना पावन हस्ते वेदी उपर
जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठा थई हती. मोरबीनुं जिनमंदिर घणुं भव्य अने सुंदर छे, लगभग
६० हजार रूा
. ना खर्चे ते तैयार थयुं छे. तेमां मूळनायक श्री महावीर भगवान अने तेमनी
आजुबाजुमां श्री मल्लिनाथ भगवान, तथा श्री पार्श्वनाथभगवान बिराजमान छे. आ
उपरांत श्री नेमिनाथ भगवान, वासुपूज्य भगवान (स्फटिकना) अने महावीर भगवान
(विधिनायक) बिराजमान छे, अने उपरना भागमां महाविदेही श्री सीमंधर भगवान, श्री
बाहुभगवान अने श्री चंद्रबाहु भगवान बिराजमान छे. उपरांत जिनमंदिरमां श्री समयसारजी
शास्त्रनी स्थापना पण पू. गुरुदेवना पवित्र करकमळथी थई हती. जिनमंदिरमां बिराजमान
भगवंतोनी परम शांत मुद्रा देखी देखीने भक्तजनोना हैयां भक्तिथी नाची ऊठता हता.
भगवाननी प्रतिष्ठा बाद जिनमंदिर उपर सुंदर कलश अने ध्वज चढाववामां आव्या हता.
सांजे : पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद भगवान श्री जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी
हती. आ रथयात्रा घणी ज प्रभावक हती. भगवान सन्मुख अजमेरनी संगीत मंडळीनी खास
भक्ति, चांदीना रथमां शास्त्रजी, ईन्द्रध्वज वगेरेथी रथयात्रा शोभती हती, अने तेमां पण
हाथी उपर पू. बेनश्रीबेन हाथमां धर्मध्वज लईने बिराजता हता, ए द्रश्यथी रथयात्रानी
शोभा अनेकगणी वधी गई हती. आवी प्रभावशाळी रथयात्रा जोईने भक्तोने घणो आनंद
थयो हतो. रथयात्रा शहेरना मुख्य रस्ताओ उपर फरीने जिनमंदिर आवी हती ने त्यां अद्भुत
भक्ति थई हती.
रात्रे बालिकाओए “महाराणी चेलणा, श्रेणिक अने अभयकुमार”नो सुंदर संवाद कर्यो
हतो; आ संवादमां जैनधर्मनो महान प्रभाव जोईने हजारो माणसो प्रभावित थया हता.
महाराणी चेलणाने श्रेणिकना राज्यमां जैनधर्म वगर बधुं सुनकार लागे छे, तेने क्यांय चेन
पडतुं नथी. छेवटे धैर्यपूर्वक ते महाराजा पासेथी जैनधर्म माटे बधुं करवानी छूट मेळवे छे.
अभयकुमार अने चेलणा सम्यग्दर्शनादि संबंधी तत्त्वचर्चा करे छे, चेलणा राणी बौद्धगुरुओनी
परीक्षा करे छे, श्रेणिक राजा दिगंबर मुनिराज उपर घोर उपसर्ग करे छे, ते प्रसंगे चेलणा
आघातथी मूर्छित थई जाय छे–ए द्रश्य जोतां लोकोना हृदय थंभी जता हता. तरत ज चेलणा
अने अभयकुमार जंगलमां जईने मुनिराजनो उपसर्ग दूर करे छे. श्रेणिक पण साथे जाय छे. ते
पोताना घोर पापनी क्षमा मांगे छे, ने मुनिराजथी प्रभावित थईने जैनधर्म अंगीकार करे छे. आ