Atmadharma magazine - Ank 128
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २०१० : आत्मधर्म–१२८ : १५७ :
(पाना नं. १५६ थी चालु)
ज्ञानस्वभाव साथे एकमेक थई गया नथी, तारा भूतार्थ स्वभावमां ते रागादिभावो पेसी गया नथी पण जुदा
ज छे; एटले आत्माना भूतार्थस्वभावनी सन्मुख थईने अनुभव करतां राग अने बंधनरहित शुद्धआत्मानो
अनुभव थाय छे. ने शुद्धनयथी आवा आत्मानो अनुभव करवो तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे, ते ज धर्मनी
शरूआत छे. आ सिवाय शुभरागथी बीजुं गमे ते करे ते पुण्यबंधनुं कारण छे पण तेमां किंचित् धर्म नथी. धर्म
तो आवा भूतार्थस्वभावनी द्रष्टि ज थाय छे.
पोताना भूतार्थस्वभावने चूकीने अनादिथी परने अने विकारने पोतानुं मानीने तेने राखवा मांगे छे.
अनादिथी शरीरादिने पोतानुं मानीने राखवा मांगे छे परंतु एक रजकण पण आत्मानो थयो नथी, ते तो
त्रणेकाळ आत्माथी जुदा ज छे. तेमज पर्यायमां अनादिथी पुण्य–पापना भावो करतो आवे छे पण अंतरना
धु्रवस्वभाव साथे ते एकमेक थई गया नथी, ते विकारी भावो उपर ने उपर ज तरे छे पण स्वभावमां प्रवेशता
नथी. जेम पाणीमां तेल उपर ज तरे छे तेम चिदानंद स्वभावमां पुण्य–पापना भावो अंदर प्रवेशता नथी पण
बहार ज रहे छे. माटे अंतरना स्वभावनी सन्मुख थईने रागरहित स्वभावनो अनुभव थई शके छे. अज्ञानी
पुण्य–पापना भावमां ज एकपणुं मानीने तेनो ज अनुभव करे छे, तेथी पुण्य–पापरहित चिदानंद स्वभावनो
अनुभव तेने थतो नथी. धर्मीने पुण्य–पापना भावो थता होवा छतां, ते ज वखते पुण्य–पापथी पार
चिदानंदस्वभाव उपर तेनी द्रष्टि पडी छे, एटले भूतार्थस्वभावनी द्रष्टिमां ते पोताना आत्माने रागरहित
शुद्धपणे अनुभवे छे. आ रीते अंर्तमुख थईने शुद्धनय वडे शुद्धआत्मानो अनुभव थई शके छे. अने आवा
अनुभवथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
सुख अने दुःख शुं छे?
भाई रे! तारुं सुख तारा आत्माथी बहार न होय.
आत्मानो आनंद बहारमां नथी ने आत्मानुं दुःख पण
बहारमां नथी. परमां सुख छे एम जे माने छे तेने आत्माना
सुखनी श्रद्धा नथी. भाई! पहेलांं तुं प्रतीत कर के मारुं सुख
मारामां छे, संयोगमां मारुं सुख नथी.
आ देहथी भिन्न ज्ञान–आनंदस्वरूप आत्मा शुं चीज छे ते वात जीवोए अनंतकाळमां एक
क्षण पण जाणी नथी. जीव सुखने गोते छे, पण वास्तविक सुख क्यां छे तेनी तेने खबर नथी.
आत्माना स्वभावमां सुख छे तेने भूलीने बहारना संयोगमांथी सुख लेवा मांगे छे, पण संयोगमां
क्यांय आत्मानुं सुख नथी. आत्मानो स्वभाव पोते ज सुखथी भरेलो छे, पण तेने भूलीने पुण्य–
पापनी आकुळताने वेदे छे ते दुःख छे. पुण्य–पापथी पार मारुं ज्ञानानंद स्वरूप छे एम जो अंतर्मुख
थईने सम्यक्–प्रतीति करे तो ते क्षणे ज आत्माना अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव थाय छे. आ सुख
कहो के धर्म कहो, ते जुदी चीज नथी. धर्म अत्यारे करे अने सुख पछी मळे एम नथी. जे क्षणे
आत्माना स्वभावनी सम्यक् श्रद्धा–ज्ञानरूप धर्म करे ते क्षणे ज अपूर्व अतीन्द्रिय सुखनो अंश प्रगटे
छे. पुण्य–पापना विकारी भावो करे तेनी आकुळतानुं वेदन पण वर्तमानमां छे, अने
ज्ञानानंदस्वरूपनुं भान करीने तेमां जेटली एकाग्रता करे तेटली अनाकुळ शांतिनुं वेदन पण
वर्तमानमां ज छे; बहारना संयोगो तो जुदा छे, तेनुं वेदन आत्माने नथी.