बीजा पदार्थोनी चिंता व्यर्थ छे. देहथी भिन्न मारुं चिदानंद–स्वरूप शुं छे तेनो हे जीव! तुं विचार कर.
अवतारमां अनंतवार रखडी चूक्यो छे. आत्मा नवो नथी पण अनादिनो छे, छे ने छे. तेने कोईए बताव्यो नथी ने
तेनो कदी नाश थतो नथी. तो अत्यार सुधी आत्मा क्यां रह्यो? के स्वर्ग–नरकना तेमज ढोर अने मनुष्यना
अवतारमां अत्यार सुधी जीव रखडयो छे. तीव्र दंभ–कुटिलता अने वक्रता करे ते तिर्यंच थाय छे, तेनुं शरीर आडुं
होय छे. महा तीव्र पापो करे ते मरीने नरकमां जाय छे. कांईक सरलता वगेरे पुण्य परिणामथी मनुष्य थाय छे, ने
दयादिना विशेष शुभ परिणामथी देवलोकमां जाय छे. पण मारुं ज्ञानस्वरूप शुं छे, देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्वनुं स्वरूप
शुं छे तेना भान वगर भवभ्रमण मटतुं नथी. तेथी अहीं आत्मानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते समजावे छे.
कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
हतुं. पछी सोळ वर्षनी उंमरे ‘मोक्षमाळा’ बनावी, तेमां १०८ पाठ छे; तेमां ‘अमूल्य तत्त्वविचार’ना पाठमां
पांच कडी छे. तेनी आ एक कडी छे; तेमां कहे छे के–
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो र्क्यां,
तो सर्व आत्मिकज्ञानना सिद्धांततत्त्वो अनुभव्यां.’
भान करीने आत्माना साम्राज्यनी प्राप्ति करवी ते ज साचुं राज्य छे, तेमां ज आत्मानी शोभा अने हित छे.
अंतरमां विचार करे तो पूर्वभवनुं पण ज्ञान थई शके छे. आ देहनो संयोग तो हमणां थयो, त्यार पहेलांं पण
आत्मा क्यांक बीजे हतो. देह तो नवा नवा बदले छे ने आत्मा अनादिनो एनो ए ज छे, तो तेनुं वास्तविक
स्वरूप शुं छे? आवो स्वरूपनो विचार अने निर्णय कदी एक सेकंड पण कर्यो नथी.
आवा स्वरूपनो विचार तो कर. भाई, बीजी लौकिक केळवणी भण्यो तेमां कांई तारुं हित नथी; पण आत्मानुं
स्वरूप शुं छे तेनो अंर्तविचार करीने तेनी केळवणी ले, तेनी ओळखाण कर, तो आत्मानुं हित थाय ने भव–
भ्रमणथी छूटकारो थाय. एक नाना गामडामां पटेल पूछता हता के ‘महाराज! आ भवना अवतारनो क्यांय
अंत खरो? आ दुःखनो क्यांय आरो खरो?’ त्यारे थयुं के :