Atmadharma magazine - Ank 128
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १५२ : आत्मधर्म–१२८ : जेठ : २०१० :
आत्माना शुद्धस्वरूपनी समजण
प्रभो! बहारना जुदा जुदा साधनमां तुं आनंद माने छे ते
भ्रम छे, तारा आनंदनुं स्थान बहारमां नथी पण तारा असंख्य
चैतन्यप्रदेशमां ज तारो अखंड आनंद भर्यो छे; तेने प्रतीतमां
लईने अंतर्मुख द्रष्टि कर तो तने तारा अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
अनुभवमां आवे, अने भवभ्रमणना दुःखनो अंत आवे.
[वांकानेरमां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे परम पूज्य सद्गुरुदेवनुं प्रवचन]
(वीर सं. २४८०, चैत्र सुद ९)
आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, तेनुं भान करीने, तेमां एकाग्रता वडे आत्मस्वभावने साधीने जेओ सर्वज्ञ
थया, एवा सर्वज्ञभगवाने आत्मानो स्वभाव जेवो जोयो अने दिव्यध्वनिमां कह्या तेवो आत्माने ओळखे तो
सम्यग्ज्ञान थाय; सर्वज्ञ थवानी ताकात आत्मामां पडी छे तेमांथी ज सर्वज्ञता व्यक्त थाय छे. जो वस्तुमां
पोतामां ताकात न होय तो ते क्यांयथी आवे नहि अने अंतरशक्तिमां ज जे ताकात भरी छे ते कोई बहारना
कारणथी प्रगटती नथी. जेम लींडीपीपरना एकेक दाणामां चोसठपोरी तीखाश थवानी ताकात छे. तेम एकेक
आत्मामां परिपूर्ण सर्वज्ञता थवानी ताकात छे, आत्मामां ज सर्वज्ञ थवानी ताकात छे ए वात जीवे कदी
यथार्थपणे सांभळी नथी. खरेखर सांभळी क्यारे कहेवाय? के सर्वज्ञभगवाने अने संतोए जे कह्युं तेनो आशय
पोते समजे तो सांभळ्‌युं कहेवाय.
अहीं जिज्ञासु शिष्य ज्ञानी संतगुरु पासे जईने झंखनाथी पूछे छे के प्रभो! मने आत्मानुं ज्ञान केम
थाय? आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद कई रीते आवे? जेने आत्मानुं ज्ञान थयुं छे, आत्माना आनंदनो अनुभव
थयो छे एवा गुरु पासे जईने शिष्य प्रश्न पूछे छे : प्रभो! शुद्धआत्मानुं स्वरूप शुं छे के जेने जाणवाथी
आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद अनुभवमां आवे, अने भवभ्रमणना दुःखथी छूटकारो थाय?
त्यारे श्रीगुरु तेने उत्तर आपतां कहे छे के– हे भाई! शुद्धनयथी आत्माना शुद्धस्वरूपने जाणतां तेना
आनंदनो अनुभव थाय छे ने भवभ्रमणनो अंत आवी जाय छे. पर्यायमां क्षणिक अशुद्धता होवा छतां
अंर्तद्रष्टिथी शुद्धनय वडे आत्मस्वभावने जोतां विकाररहित शुद्धआत्मानो अनुभव थाय छे. विकार अने
बंधन वगरनो आत्मस्वभाव त्रिकाळ छे तेनी सन्मुख द्रष्टिथी सम्यग्दर्शन थाय छे.
अबद्धस्पृष्ट अनन्य ने जे नियत देखे आत्मने
अविशेष अणसंयुक्त तेने शुद्धनय तुं जाणजे. १४.
शिष्यने शुद्ध आत्मा जाणवानी जिज्ञासा थई तेथी तेणे प्रश्न पूछयो के प्रभो! आप कहो छो तेवा
शुद्धआत्मानो अनुभव कई रीते थाय? पर्यायमां विकार होवा छतां शुद्ध आत्मा कई रीते अनुभवमां आवे?
तेना उत्तरमां आचार्यभगवान समजावे छे के हे भाई! विकारी भावो अभूतार्थ छे ते आत्मानो मूळभूत
स्वभाव नथी, तेथी आत्माना भूतार्थ स्वभावनी सन्मुख थईने अनुभव करतां ते विकाररहित शुद्धपणे आत्मा
अनुभवाय छे.
भगवान! तारा आत्माना शुद्धस्वरूपने जाणवानो यथार्थ प्रयत्न तें कदी कर्यो नथी. तेने जाणवानो
उपाय