Atmadharma magazine - Ank 129
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २०१० : आत्मधर्म–१२९ : १७९ :
आत्माना स्वभावने भिन्नपणुं छे. ए वात समजावतां ७२ मी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के––
अशुचिपणुं, विपरीतता ए आस्रवोनां जाणीने, वळी जाणीने दुःख कारणो, एथी निवर्तन जीव करे.
आ गाथानी टीकामां आचार्यदेवे त्रणवार आत्माने भगवान कह्यो छे. भगवान आत्मा पवित्र छे.
भगवान आत्मा चेतक छे, भगवान आत्मा दुःखनुं अकारण छे. आवो भगवान आत्मा छे तेनी ओळखाण
जीवे कदी करी नथी. अरे, पहेलांं आ वात सांभळीने तेनो पक्ष तो करो, सत्यनो पक्ष पण जे न करे ते तेनुं लक्ष
करीने अनुभव क्यारे करशे? आ कोनी वात छे? जे भगवान थई गया तेमनी आ वात नथी, पण एकेक
आत्मामां भगवान थवानी ताकात छे, तेनी आ वात छे. पहेली ज गाथामां आचार्यदेव कहे छे के हुं सिद्ध छुं ने
तुं सिद्ध छो, एम आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने हुं आ वात कहुं छुं; तो हे श्रोताजनो! तमे पण तमारा आत्मामां
सिद्धपणुं स्थापीने, एटले के आत्मानो स्वभाव पण सिद्ध समान छे एवुं अंर्तलक्ष करीने आ वातनी हा
पाडजो. जुओ, आ नवतत्त्वमां जीवतत्त्वनी ओळखाण! आ वात सांभळवामां सरळता होवी जोईए,
मध्यस्थता होवी जोईए, सत्य शुं छे ते समजीने मारे मारा आत्मानुं हित करवुं छे एम सरळता जोईए; अने
जीतेन्द्रियपणुं होवुं जोईए, एटले आत्माना स्वभाव सिवाय ईन्द्रियविषयोमांथी सुखबुद्धि छूटी जवी जोईए,
मारा अतीन्द्रिय आत्मा सिवाय बहारना कोई ईन्द्रियविषयोमां मारुं सुख नथी एवुं लक्ष थतां विषयोनी तीव्र
लोलुपता रहेती नथी; अने विशाळबुद्धि, एटले के आत्मानो जेवो स्वभाव ज्ञानी संभळावे छे ते समजवा
जेटली ज्ञानमां विशाळता होय; आवी पात्रता वगर सत् समजाय नहि.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के अहो, भूतार्थद्रष्टिथी जोतां नवे तत्त्वोमां एक भगवान आत्मा ज प्रकाशमान
छे. राग वखते ज्ञानी पोताना ज्ञानस्वभावनी ज अधिकताने देखे छे, तेने ज्ञानस्वभावनी द्रष्टि छूटती नथी ने
रागनी अधिकता थती नथी. ए रीते स्व–परप्रकाशक ज्ञानमां नवे तत्त्वोने ज्ञानी जाणे छे, पण तेमां क्यांय
रागादिनी अधिकता थती नथी, पोताना स्वभावनी ज अधिकता वर्ते छे, माटे ज्ञानीने नवे तत्त्वोनुं ज्ञान करतां
एक भगवान आत्मा ज प्रकाशमान छे. ज्ञाननुं स्व–परप्रकाशक सामर्थ्य खील्युं तेमां नवे तत्त्वोने जाणवा छतां
ज्ञानीने चिदानंद स्वभावनुं एकनुं ज अवलंबन मुख्य वर्ते छे. आवी स्व–परप्रकाशक चैतन्य सत्तानी संभाळ
जीवे पूर्वे कदी करी नथी; व्रत–महाव्रत पाळ्‌यां, साधु ने आचार्यपदनुं नाम धराव्युं, पण अंतरमां हुं ज्ञानस्वभाव
छुं एवी ओळखाण न करी––तेनी रुचि पण न करी, तेथी संसारमां ज रखडयो. अरे भाई! आ तारी वात छे,
प्रभु! सांभळ तो खरो, धीरो थईने अंतरमां विचार तो कर, के तारुं वास्तविक स्वरूप शुं छे? आ वात
समज्या विना तारा आरा आवे तेम नथी. जुओ, ज्ञानीनी रमत पण जुदी होय छे. रामचंद्रजीने ते भवे मोक्ष
जवुं छे, ते नानकडा बाळक हता त्यारे रमतमां एकवार एवो विचार जाग्यो के उपर सोळ कळानो चंद्र प्रकाशे
छे, ते उतारीने गजवामां नाखुं. दिवानजी तेना विचार समजी गया, एटले हाथमां दर्पण आपीने तेमां चंद्र
बताव्यो. चंद्र जोईने रामचंद्रजीए ते खिस्सामां नांख्यो. तेम उपर लोकाग्रे अशरीरी सिद्ध भगवंतो बिराजे छे;
धर्मीने सिद्ध थवुं छे एटले कहे छे के हुं मारा आत्मामां सिद्ध भगवंतोने स्थापुं छुं. सिद्धभगवंतो उपरथी नीचे
आवे तेम नथी, पण सिद्ध भगवान जेवा पोताना आत्माने द्रष्टिमां लईने पोते पोताना आत्मानी सिद्ध दशाने
साधे छे, ने अल्पकाळमां मुक्ति पामे छे. आ रीते आत्माना ज्ञानानंद स्वरूपने लक्षमां लईने तेनुं बहुमान करवुं
अने रागरहित अनुभव करवो ते मोक्षनुं कारण छे.
[सुरेन्द्रनगरमां वेदी प्रतिष्ठा उत्सव प्रसंगे वैशाख सुदी त्रीजना मंगलदिने पू. गुरुदेवनुं प्रवचन]
* ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा *
सौराष्ट्रमां मंगल विहार दरमियान पूज्य
गुरुदेव वींछीया मुकामे पधार्या त्यारे वैशाख वद
तेरसना रोज त्यांना भाईश्री जीवराज जेचंद वोरा
तथा तेमना धर्मपत्नी अंबाबेन––ए बंनेए सजोडे
आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे; ते माटे
तेमने धन्यवाद.