भाव तारा आत्मामां जो प्रगट न कर तो तें आ मनुष्य अवतार
पामीने शुं कर्युं? आत्माना भान वगर पुण्य–पाप तो अनंत काळथी
करतो ज आव्यो छे, ते कांई नवुं नथी.
शुद्ध स्वभावनुं अवलंबन लईने तेना ध्यानवडे भगवानने पूर्ण शुद्धदशा प्रगटी. आत्मानी शुद्धतामां रागनुं के
निमित्तोनुं अवलंबन नथी, पण पोताना शुद्ध स्वभावनुं ज अवलंबन छे. आ प्रमाणे ओळखीने भगवाननी
जेम पोते पोताना आत्माना अवलंबने अंशे शुद्धपणुं जे प्रगट करे तेणे परमार्थे भगवानने पोताना आत्मामां
स्थाप्या छे. अने व्यवहारथी भगवान प्रत्ये बहुमाननो भाव आवतां बहारमां भगवाननी स्थापना करे छे,
तेमां शुभभाव छे.
जनयति हेम्नो हैमं लोहाल्लोहं नरः कटकम् ।।१८।।
अशुद्धता थाय छे.
ध्यान करे छे एटले के तेनाथी लाभ माने छे तेने अशुद्धतानी प्राप्ति थाय छे. जेम सोनामांथी सोनाना
दागीनानी उत्पत्ति थाय छे, अने लोढामांथी लोढाना दागीनानी उत्पत्ति थाय छे, तेम शुद्धताना ध्यानथी
शुद्धभावोनी उत्पत्ति थाय छे ने अशुद्धताना ध्यानथी अशुद्धतानी उत्पत्ति थाय छे. जीव अनादिकाळथी ध्यान तो
करी रह्यो छे; ध्यान एटले एकाग्रता; आत्मानो ज्ञानानंद स्वभाव छे तेने भूलीने, रागथी मने लाभ थाय,
शरीरनी क्रियाथी मने लाभ थाय, अनुकूळ संयोगमां मारुं सुख छे एम मानीने तेमां एकाग्रता करे छे ते ऊंधुंं
ध्यान छे ने तेनुं फळ संसार छे. पण हुं तो देहथी पार, ने पुण्य–पापना विकारथी पण पार, शुद्ध ज्ञानानंद
स्वरूप छुं एम शुद्ध आत्माने ओळखीने तेनी प्रीति अने एकाग्रता करवी ते शुद्धआत्मानुं ध्यान छे अने ते
मुक्तिनुं कारण छे. जेने जेनी प्रीति होय तेने तेमां एकाग्रता थया विना रहे नहि. जेने शुद्ध आत्मानी प्रीति छे
तेने तेमां एकाग्रतारूपी ध्यान थाय छे, अने जेने रागनी ने संयोगनी प्रीति छे तेने विकारमां