Atmadharma magazine - Ank 129
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 21

background image
: १८० : आत्मधर्म–१२९ : अषाढ : २०१० :
* भवनो अभाव केम थाय? *
[उमराळा नगरीमां जेठ सुद चोथना रोज
भगवाननी प्रतिष्ठा प्रसंगे परम पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन]
भवनो अभाव केम थाय तेनी आ वात छे. भाई! आवो
मनुष्य अवतार मळ्‌यो तेमां हवे भवनो अभाव थई जाय एवो अपूर्व
भाव तारा आत्मामां जो प्रगट न कर तो तें आ मनुष्य अवतार
पामीने शुं कर्युं? आत्माना भान वगर पुण्य–पाप तो अनंत काळथी
करतो ज आव्यो छे, ते कांई नवुं नथी.
आजे अहीं सीमंधर परमात्मानी प्रतिष्ठानो दिवस छे. भगवानने एक समयमां परिपूर्ण ज्ञान अने
आनंदरूप शुद्ध दशा प्रगटी, ते शुद्धता क्यांथी प्रगटी? आत्मानो स्वभाव शुद्ध ज्ञानानंद स्वरूप त्रिकाळ छे, ते
शुद्ध स्वभावनुं अवलंबन लईने तेना ध्यानवडे भगवानने पूर्ण शुद्धदशा प्रगटी. आत्मानी शुद्धतामां रागनुं के
निमित्तोनुं अवलंबन नथी, पण पोताना शुद्ध स्वभावनुं ज अवलंबन छे. आ प्रमाणे ओळखीने भगवाननी
जेम पोते पोताना आत्माना अवलंबने अंशे शुद्धपणुं जे प्रगट करे तेणे परमार्थे भगवानने पोताना आत्मामां
स्थाप्या छे. अने व्यवहारथी भगवान प्रत्ये बहुमाननो भाव आवतां बहारमां भगवाननी स्थापना करे छे,
तेमां शुभभाव छे.
अनंतकाळथी आत्मा चार गतिमां परिभ्रमण करी रह्यो छे तेनुं कारण शुं अने ते केम टळे तेनी आ वात
छे––
शुद्धात्शुद्धमशुद्धं ध्यायन्नाप्नोत्यशुद्धमेव स्वम्।
जनयति हेम्नो हैमं लोहाल्लोहं नरः कटकम् ।।१८।।
जगतमां जेम सोनामांथी सोनाना दागीना थाय छे ने लोढामांथी लोढाना दागीना थाय छे; तेम जे जीव
पोताना आत्माने शुद्धस्वभावपणे ध्यावे छे तेने शुद्धता प्रगटे छे, अने जे जीव अशुद्ध आत्माने ध्यावे छे तेने
अशुद्धता थाय छे.
आत्मानो स्वभाव शुद्धज्ञानानंद स्वरूप छे, ने पुण्य–पापना विकार थाय ते अशुद्धभावो छे. तेमां जे
शुद्धात्मानुं लक्ष करीने तेनुं ध्यान करे तेने शुद्धतानी प्राप्ति थाय छे, अने जे जीव पुण्य–पाप वगेरे अशुद्धतानुं
ध्यान करे छे एटले के तेनाथी लाभ माने छे तेने अशुद्धतानी प्राप्ति थाय छे. जेम सोनामांथी सोनाना
दागीनानी उत्पत्ति थाय छे, अने लोढामांथी लोढाना दागीनानी उत्पत्ति थाय छे, तेम शुद्धताना ध्यानथी
शुद्धभावोनी उत्पत्ति थाय छे ने अशुद्धताना ध्यानथी अशुद्धतानी उत्पत्ति थाय छे. जीव अनादिकाळथी ध्यान तो
करी रह्यो छे; ध्यान एटले एकाग्रता; आत्मानो ज्ञानानंद स्वभाव छे तेने भूलीने, रागथी मने लाभ थाय,
शरीरनी क्रियाथी मने लाभ थाय, अनुकूळ संयोगमां मारुं सुख छे एम मानीने तेमां एकाग्रता करे छे ते ऊंधुंं
ध्यान छे ने तेनुं फळ संसार छे. पण हुं तो देहथी पार, ने पुण्य–पापना विकारथी पण पार, शुद्ध ज्ञानानंद
स्वरूप छुं एम शुद्ध आत्माने ओळखीने तेनी प्रीति अने एकाग्रता करवी ते शुद्धआत्मानुं ध्यान छे अने ते
मुक्तिनुं कारण छे. जेने जेनी प्रीति होय तेने तेमां एकाग्रता थया विना रहे नहि. जेने शुद्ध आत्मानी प्रीति छे
तेने तेमां एकाग्रतारूपी ध्यान थाय छे, अने जेने रागनी ने संयोगनी प्रीति छे तेने विकारमां