एम शुद्ध आत्मानी प्रीति करीने तेमां एकाग्र थवाथी ज सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र प्रगटे छे. आ सिवाय
बहारमां बीजुं करतां करतां धर्म थशे एम अज्ञानी लोको माने छे, पण अंतरमां आनंदकंद आत्मा छे
तेनी प्रीति करीने तेमां एकाग्रता करवी ते सिवाय बहारमां बीजो कोई हितनो उपाय नथी. जेम दूधमांथी
मावो थाय छे ते क्यांथी आव्यो? अंदर दूधमां ज मावो थवानी ताकात पडी छे. तेम आत्मामां पूर्ण ज्ञान–
आनंदरूप परमात्मदशा प्रगटे छे ते क्यांथी आवे छे? आत्मामां ज परमात्मा थवानी ताकात भरी छे; ते
परमात्मस्वभावनो महिमा लावीने तेनुं ध्यान करतां करतां तेमांथी ज परमात्मदशा प्रगटी जाय छे.
दुनियाना अज्ञानी जीवो अनादिथी पोताना स्वभावना महिमाने भूलीने, संयोगनो ने रागनो महिमा करे
छे ने विकारमां लीन थईने संसारमां रखडे छे.
अनंतकाळथी जीव रखडी रह्यो छे. चिदानंद स्वभावना भान वगर भवनो भाव टळे नहि, ने चारे गतिनुं
परिभ्रमण मटे नहि. जेने पुण्यनी रुचि छे तेने भवनी रुचि छे. अने जेने भवनी रुचि छे तेने नरकना
अवतारनो भाव पण पड्यो ज छे. भवनो अभाव केम थाय तेनी आ वात छे. भाई! आवो मनुष्य अवतार
मळ्यो, तेमां हवे भवनो अभाव थई जाय एवो अपूर्व भाव तारा आत्मामां जो प्रगट न कर तो तें आ मनुष्य
अवतार पामीने शुं कर्युं? आत्माना भान वगर पुण्य–पाप तो अनंतकाळथी करतो ज आव्यो छे, ते कांई नवुं
नथी. श्रीमद् राजचंद्रजीए पण कह्युं छे के––
पुनि त्याग विराग अथाग लयो;
वनवास रह्यो मुख–मौन रह्यो,
द्रढ आसन पद्म लगाय दीयो.
तदपि कछू हाथ हजु न पर्यो;
अब कयों न विचारत है मनमें
कछू ओर रहा उन साधनसे.
कर्या ते बधा उपायो फोगट गया ने तारुं भवभ्रमण तो ऊभुं ज रह्युं. भवभ्रमणनो नाश थाय एवो शुं उपाय
बाकी रही गयो तेनो पत्तो मेळव. अनंता जीवो सर्वज्ञ परमात्मा थई गया तेओ कया साधनथी थया?
बहारना साधनथी के रागना साधनथी तेओ परमात्मा नथी थया, पण अंतरनी स्वभावशक्तिने ध्यावी–
ध्यावीने तेमांथी ज परमात्मपणुं प्रगट कर्युं छे. आवी परमात्मशक्ति तारामां पण पडी छे; तेनी प्रतीत विना
पूर्वे तें जे उपायो कर्या ते बधा निष्फळ गया छे. अंतरमां मारो आत्मा ज परमात्मा थवानी ताकातवाळो छे
एम स्वभाव शक्तिनो विश्वास करीने तेनुं अवलंबन कर तो भवनो अभाव थईने परमात्मदशा प्रगट थया
विना रहे नहि.