Atmadharma magazine - Ank 129
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १८२ : आत्मधर्म–१२९ : अषाढ : २०१० :
पू. गुरुदेवना जन्मधाम उमराळा नगरीमां
जिनबिंब वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव


जैन शासनना महान प्रभावक परम पूज्य गुरुदेवना सौराष्ट्रमां विहार दरमियान अनेक गामोमां
जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठाना महोत्सवो ऊजवाया; तेमां भगवाननी वेदी प्रतिष्ठानो छेल्लो उत्सव गुरुदेवनी
जन्मभूमि उमराळा नगरीमां ऊजवायो. जेठ सुद बीजथी चोथ सुधी आ उत्सव घणा उल्लासपूर्वक भव्य रीते
ऊजवायो हतो. जे घरमां पू. गुरुदेवनो जन्म थयो हतो. ते घरना उपरना भागमां आसरनुं नानुं सुंदर
चैत्यालय थयुं छे, ते घणुं सुशोभित कारीगरीवाळुं अने आकर्षक छे; अने तेमां बिराजमान थयेला सीमंधर
भगवानना प्रतिमाजी पण अतिशय सुंदर, प्रशांतमुद्राधारक छे, ते जोनार भक्तोनां हैयाने पोताना तरफ
आकर्षी ले छे.
जेठ सुद बीजथी वेदी प्रतिष्ठा महोत्सवनी शरूआत थई; जन्मधामना नीचेना चोकमां वेदी प्रतिष्ठा
माटेनो खास मंडप करवामां आव्यो हतो. प्रथम रथयात्रा काढीने श्री जिनेन्द्रभगवानने वेदीमंडपमां
बिराजमान कर्या हता अने झंडारोपण थयुं हतुं, तेमज वीसविहरमान पूजननो प्रारंभ थयो हतो. पूज्य गुरुदेव
पण आ दिवसे ज उमराळामां पधार्या हता, गुरुदेवनुं स्वागत करवा माटे भक्तोनो उमंग समातो न हतो.
सांजे वीसविहरमान पूजननी पूर्णाहूति बाद जिनेन्द्र अभिषेक थयो हतो.
जेठ सुद त्रीजना रोज वेदी प्रतिष्ठा माटे आचार्यअनुज्ञा विधि थई; तेमां उमराळाना भक्तजनोए
वेदीप्रतिष्ठा उत्सव माटे पू. गुरुदेवनी आज्ञा लीधी हती, तेमज गुरुदेवना परम प्रतापे उमराळाना आंगणे
जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो आवो सुअवसर प्राप्त थयो ते माटे उल्लास व्यक्त कर्यो हतो; त्यार पछी
ईन्द्रप्रतिष्ठा थया बाद पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं, गुरुदेवनुं प्रवचन सांभळवामां उमराळानी ग्राम्यजनता
पण उमळकाभेर रस लेती हती. उमराळाना खेडूत लोको पण गुरुदेव पासे आवी आवीने पोतानो आनंद
व्यक्त करता हता. प्रवचन बाद जलयात्रा नीकळी हती. बपोरे यागमंडलविधान पूजा थई, आ पूजनमां
केटलोक वखत पू. गुरुदेव पण पधार्या हता, तेथी भक्तोने घणो हर्ष थयो हतो. सांजे जिनमंदिर–वेदी–कलश
तथा ध्वजनी शुद्धि पू. बेनश्रीबेनजीना पवित्र हस्ते थई हती. पू. बेनश्रीबेने शुद्धिनी क्रिया घणा उमंग अने
भक्तिभावपूर्वक करी हती; ए द्रश्य जोईने भक्तोने पण घणो आनंद थयो हतो.
परम पू. गुरुदेवना मंगल जन्मथी जे स्थान पावन थयुं छे ते स्थानमां एक घणुं भव्य सुशोभित
गुलाबी अखंड पाषाणनुं कमळ स्थापित करवामां आव्युं छे, ते कमळ उपर मंगलकारी स्वस्तिक कोतरेल छे.
उपरनी वेदीशुद्धि बाद, पू. बेनश्रीबेने पोताना पवित्र करकमळथी आ कमळ तथा स्वस्तिकनी पण शुद्धि घणा
उल्लासपूर्वक करी हती.
जेठ सुद चोथना रोज सवारे परम पूज्य गुरुदेवना मंगळ करकमळथी, जन्मधामना चैत्यालयमां
जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठा थई. आ प्रसंगे भक्तजनोने घणो ज आनंद अने उल्लास थतो हतो. एक तो
गुरुदेवनुं जन्मधाम, अने तेमां सीमंधरनाथनी पधरामणी! सीमंधरनाथना लाडकवाया लघुनंदन कहानगुरुदेव
अत्यंत भक्तिपूर्वक भगवानने पोताना आंगणे पधरावता हता. अहो! भक्तना घरे भगवान पधार्या...
गुरुदेवना आंगणे भगवान पधार्या... ए प्रसंगना उल्लासनुं शुं कहेवुं? भक्तजनो रत्नवृष्टि करीने भगवानने
वधावता हता. (रत्नवृष्टि करवा माटे श्री. महेन्द्रकुमारजी झवेरी मुंबईथी रत्नो वगेरे पोतानी साथे लाव्या
हता.) गुरुदेवे पण भक्तिनां उल्लासपूर्वक हाथमां रत्नो लईने, हैयाना हार प्रभुजीने भावपूर्वक वधाव्या
हता... आ भक्तिभर्युं द्रश्य जोईने भक्तोना हैयां भक्तिथी उल्लासी जतां हतां. ए रीते घणा ज