आदिनाथभगवानना प्रतिमाजी बिराजमान छे.
बिराजमान जिनेन्द्रदेव अने उपर आकाशमां विमान फरतुं हतुं––ए अद्भुत द्रश्य जोईने भक्तोने घणो आनंद
थतो हतो. पू. गुरुदेव पण रथयात्रामां साथे पधार्या हता. सांजे खास भक्ति करवामां आवी हती. “उजमबा
स्वाध्याय गृह” मां भगवानने पधरावीने त्यां प्रथम मांगळिक रूपे गुरुदेवे भक्ति करावी हती. त्यारबाद पू.
बेनश्रीबेने घणी उल्लास भरी भक्ति करावी हती. आ भक्ति बाद जन्मभूमिस्थानमां पण पू. बेनश्रीबेने
अद्भुत भक्ति करी हती सांजे शांतियज्ञ पण थयो हतो. जेठ सुद पांचमना रोज श्रुत पंचमी निमित्ते श्रुतपूजन
थयुं हतुं.
वगेरेने धन्यवाद घटे छे.
आ विहारनी पूर्णता थई.
सम्यक्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान एक सेकंड पण कर्युं नथी. जो
एक सेकंड पण आत्मानुं सम्यक्दर्शन करे तो आ संसार
परिभ्रमणनो नाश थया विना रहे नहि. भगवान! तें तारा
चैतन्यनी जातने जाण्या विना, धर्मीपणानुं अभिमान कर्युं छे,
पुण्य परिणाम करीने में धर्म कर्यो एम तें मान्युं छे ने जडनी
क्रिया माराथी थाय छे एवुं परनुं अभिमान कर्युं छे, पण
जडथी भिन्न ने पुण्य–पापथी भिन्न तारुं ज्ञानानंदस्वरूप शुं
छे तेने तें कदी ओळख्युं नथी. ते चैतन्य तत्त्वनी ओळखाण
वगर सम्यग्दर्शन थाय नहि ने सम्यग्दर्शन वगर भवभ्रमण
मटे नहि. माटे ज्ञानानंद स्वरूप आत्माने जाणीने सम्यग्दर्शन
केम थाय तेनो उपाय करवो जोईए.