महान यात्रा, त्रण ठेकाणे पंचकल्याण प्रतिष्ठा, पांच ठेकाणे वेदी प्रतिष्ठा, तेमज अनेक स्थळे नूतन जिनमंदिरना
निर्माणनी जाहेरात थई, ते उपरांत गामे गामे हजारो लोकोनी सभामां वीतरागी धर्मनी अमृतवर्षा थई. आम
गुरुदेवना पुनित प्रतापे टूंका वखतमां घणी महान प्रभावना थई. ठेर ठेर जिनेन्द्र भगवंतोनी स्थापना अने
अद्भुत धर्म प्रभावनाना मंगलकार्यो करीने जेठ सुद छठ्ठना रोज पू. गुरुदेव तीर्थधाम सोनगढ पधार्या त्यारे
भक्तजनोए घणा ज उल्लासथी अंतरना उमळका पूर्वक भव्य स्वागत कर्युं हतुं. आ स्वागत–महोत्सवमां भाग
लेवा माटे गामेगामथी भक्तजनो आव्या हता, अने सुवर्णनगरीने खूब शणगारी हती. गुरुदेव पधारतां
आखी नगरीनी शोभा पलटी गई हती ने चारे कोर प्रसन्नतानुं वातावरण छवाई गयुं हतुं. गुरुदेव पधारतां
ज भक्तजनोए चारे बाजुथी पुष्पवृष्टि करीने गुरुदेवने भक्तिथी वधाव्या हता, स्वागत दरमियान आखे रस्ते
हाथी उपरथी भक्तजनो पुष्पवृष्टि करता हता. दूरथी मानस्तंभनां दर्शन थतां ज गुरुदेवे भावपूर्वक वंदन कर्या
हता; पछी सीमंधरनाथ भगवानने भेटतां गुरुदेवे भक्तिपूर्वक रत्नवृष्टिथी भगवानने वधाव्या हता. सीमंधर
भगवान अने तेमना लघुनंदन गुरुदेवना मिलननुं आवुं भक्ति भर्युं द्रश्य जोईने चारे बाजुथी आनंदना
हर्षनादपूर्वक भक्तजनो वधावता हता. त्यारबाद पूज्य गुरुदेवे स्वाध्याय मंदिरमां पुनीत प्रवेश कर्यो त्यारे
भक्तजनोए घणा उल्लासपूर्वक रत्नवृष्टि करीने गुरुदेवने वधाव्या हता. गुरुदेव पधारतां आजे स्वाध्याय
मंदिरनी शोभा कोई जुदी ज जातनी लागती हती. आ प्रसंगे पू. गुरुदेवना स्वागतनी हैयानी उर्मिओ व्यक्त
करतां समस्त भक्तजनोनी वती भाई श्री. हिंमतलालभाईए कह्युं हतुं के : हे परम कृपाळु गुरुदेव! सौराष्ट्रमां
विहार दरमियान ठेकाणे ठेकाणे जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठा अने जैनधर्मनी महा प्रभावना करीने आप पुन:
सोनगढ पधारो छो, आपना पुनित पगलांथी सोनगढ भूमि फरी गई छे, आखुं वातावरण फरी गयुं छे, अमे
सौ हृदयनी उर्मिथी आपनुं स्वागत करीए छीए, अने भक्तिपूर्वक आपने वधावीए छीए. हे गुरुदेव! हवे
आप शाश्वतपणे अहीं बिराजो अने अम मुमुक्षुओनां हृदयमंदिरमां जिनप्रतिष्ठा करावो... निज प्रतिष्ठा
करावो... आप अमारा आत्मामां साची जिनप्रतिष्ठा करावो अने अमारा अनादिना भवभ्रमणनो अंत आवे
ए अमारी भावना पूरी करो. (ईत्यादि)
टकी रहे छे. केवळज्ञान पामवानी ताकात आत्मामां छे, केवळज्ञान पामवानी लायकातवाळो आत्मा पोते त्रिकाळ
मंगळरूप छे. आत्मामांथी केवळज्ञानादि दशा प्रगटी ते सादि अनंतकाळ टकी रहे छे. आत्मानी अशुद्धदशा ते
संसार छे, ते अमंगळ अने नाशवंत छे, अनादिना संसारनो अंत आवी जाय छे, पण जे निर्मळ मोक्षदशा
प्रगटी तेनो कदी अंत आवतो नथी, आ रीते आत्माना स्वभावमांथी निर्मळ दशा प्रगट करवी ते शाश्वत
मांगळिक छे. जे निर्मळदशा प्रगटी ते आत्मा साथे अभेद रहे छे तेथी ते आत्मा पण मांगळिक छे.