गई छे. अंतरथी झंखना जागवी जोईए के अरेरे! अनंत अनंत काळथी
मारो आत्मा आ जन्म–मरणना फेरामां रखडी रह्यो छे, तो हवे तेनो आरो
केम आवे? जेने आवी जिज्ञासा जागे ते धर्मनो उपाय शोधे.
आत्मा! अनंतकाळमां एक सेकंड पण तें परथी जुदा आत्मानुं भान कर्युं नथी. मारो आत्मा
ज्ञानस्वरूप छे, ते शरीरादि जडनी क्रियानो करनार नथी, एवुं भान कदी कर्युं नथी, अने हुं
जडनी क्रियानो कर्ता, जडनी क्रिया मारी एम अज्ञानी अनादिथी माने छे पण जीवनी ईच्छा
प्रमाणे देहादिनी क्रिया थती नथी, ईच्छा न होवा छतां रोग थाय छे, रोग थाय तेने मटाडवानी
ईच्छा करे छतां रोग मटतो नथी. भगवान! एकवार नक्की तो कर के जडनी क्रिया तारी नथी,
तुं तो ज्ञान छे. अरे! अंदर पुण्य–पापनां भाव थाय ते पण तारुं खरुं स्वरूप नथी. दया–पूजा–
भक्ति वगेरेनो भाव थाय ते पुण्यभाव छे, ने हिंसा जुठ्ठु वगेरेना भाव थाय ते पापभाव छे,
ए पुण्य ने पाप बंने विकारभावो छे, तेनाथी तारुं ज्ञानानंदस्वरूप जुदुं छे ए वात कदी
सांभळवामां आवी नथी, क्यारेक सांभळवा मळी त्यारे अंदरथी नकार कर्यो एटले
वास्तविकपणे कदी सांभळ्युं नथी. एकवार पण सत्समागमे श्रवण–मनन करीने, परथी ने
विकारथी भिन्न चैतन्यस्वरूपने ओळखे ने प्रतीत करे तो धर्मनी शरूआत थाय. आ अपूर्व
वस्तु छे. अनंत–अनंत भवो कर्या छतां क्यांय आरो न आव्यो, तो कांईक अपूर्व समजण
बाकी रही गई छे. अंतरथी झंखना जागवी जोईए के अरेरे! अनादि काळथी मारो आत्मा आ
जन्म–मरणना फेरामां रखडी रह्यो छे तो हवे तेनो आरो केम आवे? आवा पराधीन
अवतारथी छूटीने आत्मानी शांति केम थाय? आवी जिज्ञासा जागे तो धर्मनो उपाय शोधे.
भाई! बहारमां तारा सुखनुं साधन नथी, अंतरना चिदानंदस्वभावमां तारुं सुख छे. जे सिद्ध
परमात्मा थया ते बधाय पोताना आत्मामांथी ज सिद्धपणुं प्रगट करीने थया छे; आत्मामां
पूर्णानंदनी ताकात भरी छे तेमांथी ज ते प्रगटे छे. आवा पूर्णानंदस्वभावने लक्षमां लईने तेनी
प्रतीति करवी ते प्रथम धर्म छे. एक सेकंड पण आवो धर्म करे तो तेने जन्म मरणनो आरो
आवी जाय. आवी प्रतीति कर्या वगर बीजुं गमे तेटलुं करे तोपण जन्ममरणनो आरो न
आवे. भाई! चैतन्यना पंथ चैतन्यमां छे, अंतरनो राह बहारना उपायथी प्रगटे तेवो नथी.
बापु! आ अंतरनी वात छे, अपूर्व सम्यग्दर्शन अने आत्मशांतिनी वात अनंतकाळमां
प्रीतिपूर्वक सांभळी पण नथी. अंतरमां रुचि करीने सांभळे तो आठ वर्षनी कुमारिका पण
समजी शके तेवुं छे. अरे! आ देह अमे नहि, आ संयोगना ठाठ अमारा