Atmadharma magazine - Ank 130
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १९२: आत्मधर्म–१३० : श्रावण: २०१०:
भगवंतो जगतमां मोटा छे, तेमने तारा आंगणे पधरावी ने तेमनो आदर कर; तेमने ओळखीने तेनुं
स्वागत–बहुमान कर, ने ए सिवाय बीजानो आदर छोड.
आ शरीरादिक तो क्षणभंगुर छे ने चैतन्यतत्त्व अविनाशी छे; आ शरीर दुःखनुं निमित्त छे ने
चैतन्यतत्त्व तो आनंदथी भरपूर छे; आ शरीर तो अशुचिरूप छे ने चैतन्यतत्त्व तो जगतमां उत्तम छे;
शरीर तो अशरण छे ने चैतन्यतत्त्व शरणरूप छे. आवा चैतन्यतत्त्वने ओळखीने तेनुं सन्मान–रुचि–
प्रतीत करवा जेवा छे. भाई! तुं विचार के तारा आत्मानुं लक्षण शुं छे? आ देह ते तारी चीज नथी,
पण ज्ञान ने आनंद ते तारुं लक्षण छे; तारुं स्वरूप ज ज्ञान ने आनंद छे; संयोगो अनादिथी नवा नवा
बदलता आवे छे पण भगवान आत्मा तो सदा एकरूप चैतन्यस्वरूप छे; बधा संयोगोमां रह्यो छतां ते
बधा संयोगोथी जुदो छे. ‘ज्ञान ते हुं’ एम ज्ञानलक्षण द्वारा आत्मा समस्त पर द्रव्योथी जुदो ओळखाय
छे. अहीं शास्त्रकार कहे छे के हुं आवा शुद्ध चिद्रूप आत्मानो अर्थी छुं तेथी तेनी प्राप्तिने माटे हुं तेनुं
वर्णन करुं छुं. जगतमां मान–आबरू केम मळे के पुण्य केम बंधाय तेनो हुं अर्थी नथी, पण हुं तो
आत्मानो अर्थी छुं; आत्मार्थीने प्राप्त करवा योग्य कंई होय तो पोतानो शुद्ध आत्मा ज प्राप्त करवा
योग्य छे.
जेणे पोते शुद्धआत्मानुं यथार्थ ज्ञान अने अनुभव कर्यो होय ते ज तेनी यथार्थ देशना आपी शके.
शुद्धआत्माना अर्थीए शुद्ध आत्मानुं वास्तविक स्वरूप बतावनारा देव–गुरु–शस्त्र कोण छे ते ओळखवुं
जोईए. जेम अफीणनी दुकानवाळाने त्यां अफीणनो मावो मळे पण त्यां दूधनो मावो न मळे, दूधनो
मावो कंदोईनी दुकाने मळे. तेम चैतन्यतत्त्वनो मावो ज्ञानी पासेथी मळे; जेणे चैतन्य तत्त्वने अनुभव्युं
होय ते ज तेनी वात यथार्थपणे समजावी शके. जेओ पुण्यथी ने रागथी धर्म मनावता होय, निमित्तना
आश्रयथी धर्म मनावता होय तेओ तो अफीणनी दुकान जेवा छे, तेमनी पासे शुद्धआत्मानो यथार्थ
उपदेश मळी शके नहि.
अहो, चैतन्य वस्तु शुं छे तेनी ओळखाण करवी ते अपूर्व छे. जेणे चैतन्यनी समजण करीने
मोहनो नाश कर्यो तेने फरीने अवतार थतो नथी. जेम डुंगर उपर वीजळी पडे ने बे कटका थाय, पछी ते
रेणथी संधाय नहि, तेम चैतन्यना अपूर्व भान वडे अनंत संसारनो नाश थई गयो तेने फरीने संसार
थाय नहि. जेम चणो शेकाईने तेनी कचाश बळी गई पछी फरीने ते ऊगतो नथी; तेम चैतन्यतत्त्वनी
श्रद्धा करीने तेमां एकाग्रता वडे मोहनो नाश कर्यो तेने फरीने संसारमां अवतार थतो नथी. पण पहेलांं
आ वात अंतरमां बेसवी जोईए के जगतमां सौथी उत्तम तत्त्व मारो आत्मा छे, मारा चैतन्यनी प्रतीति
करवा माटे बीजा कोईनुं मने अवलंबन नथी. अनादिकाळथी कदी नहि पामेला एवा चैतन्यतत्त्वनी
प्राप्ति माटे पहेलांं तेनी ओळखाण करो एवो अहीं उपदेश छे. जुओ, स्वर्गनी प्राप्ति माटे के पैसानी
प्राप्ति माटे के दीकरा वगेरेनी प्राप्ति माटे आ उपदेश नथी पण अपूर्व सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे शुद्ध
चैतन्य तत्त्वनी प्राप्ति माटे आ उपदेश छे. भाई! तारा आत्मानो आनंद तने केम प्राप्त थाय अने तारा
जन्म–मरण केम टळे तेनी आ वात छे; बाकी संसारमां रखडवुं पडे ने जन्म–मरण करवा पडे एवी वात
अहीं नथी. जेने पुण्यनी ने संयोगनी रुचि छे तेने आ वात अंतरमां नहि बेसे. अनादिना जन्म–
मरणनो नाश करीने जे जीव मोक्षपदनी प्राप्ति करवा मांगतो होय एवा जीवने माटे आ वात छे. चैतन्य
स्वभावनी अपूर्व द्रष्टि प्रगटी होय, आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थयो होय एवा ज्ञानीने
बहारमां गमे तेवा संयोग वर्तता होय पण तेने अंतरमां भान छे के आ मारी चीज नथी, हुं तो चैतन्य
छुं, मारा चैतन्यस्वरूपमां परनो प्रवेश नथी. जेम वेश्या बहारथी प्रेम करे छे पण अंतरथी तेने कोई
प्रत्ये साचो प्रेम होतो नथी, तेम धर्मीने बहारमां संयोगो वर्ते छे ने अमुक राग–द्वेष पण थाय छे, परंतु
तेना अंतरमां चैतन्यतत्त्व सिवाय कोई संयोगो उपर प्रीति होती नथी. आत्मानो प्रेम धर्मीना
अंतरमांथी कदी खसतो नथी. चैतन्य स्वरूप आत्माने ओळखीने तेनी प्रीति करे तो परनी प्रीति छूटी
जाय, अने स्वसन्मुख एकाग्रता वडे अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव प्रगटे. माटे अंतरमां चैतन्यस्वरूप
आत्माने ओळखीने तेनी प्रीति करो एवो संतोनो उपदेश छे.