पुनि त्याग–विराग अथाग लह्यो,
वनवास रह्यो मुख मौन रह्यो
द्रढ आसन पद्म लगाय दीयो.
तदपि कछू हाथ हजु न पर्यो,
अब कयों न विचारत है मनमें
कछू ओर रहा उन साधन सें.
तेनाथी भवभ्रमणनो आरो आव्यो नहि. माटे हे जीव! अनादिथी तारी भ्रमणा छोड अने हवे चैतन्यतत्त्वनी रुचि
करीने सत्समागमे तेने समजवानी दरकार कर. जेम रूपिया कमाववानी जेने दरकार छे तेने तेनी वात सांभळतां पण
केवी होंश आवे छे? तेम जेने चैतन्यतत्त्वनी दरकार होय तेने सत्समागमे श्रवण–मनन करीने ते समजवा माटे
उत्साह अने होंश होवा जोईए. घरमां कांईक नवीन चीजवस्तु आवे त्यां केवी होंशथी ते जुए छे! तो अनादिकाळमां
नहि प्राप्त एवी अपूर्व चैतन्य वस्तुने प्राप्त करवा माटे तेनी रुचि–होंश अने उद्यम जोईए. अनादिथी बहारनुं
जाणवामां रोकाय छे पण अंदरनी चैतन्यवस्तुने कदी जाणी नथी तेने जाणवानो प्रयत्न करतो नथी. जेणे आत्मानुं
अपूर्व कल्याण करवुं होय तेणे ज्ञानने अंतर्मुख करीने आत्माना स्वभावने जाणवो; ते सिवाय बीजा बधा उपायो
निष्फळ छे. अज्ञानीने बहारनी वस्तुनी होंश आवे छे पण अंतरमां पोते मोटो चिदानंद भगवान बिराजे छे तेनो
महिमा के ओळखाण करतो नथी. आत्माना चैतन्यस्वभावमां परम शांत अतीन्द्रिय आनंद भरेलो छे, पण अज्ञानीने
तेनी प्रतीत नहि होवाथी तेनो स्वाद आवतो नथी. तावडामां मावो चोंट्यों होय तेनो स्वाद अज्ञानीने भासे छे, पण
ते तो जड छे, तेनो स्वाद कांई आत्मामां आवतो नथी; विषयोथी पार आत्माना आनंदनो स्वाद केवो हशे ते
अज्ञानीना ख्यालमां पण आवतुं नथी; अंदरना चैतन्यस्वभावमां आनंदनी मीठाश भरी छे, जेवो सिद्धभगवंतोनो
आनंद छे तेवो ज आनंद आ आत्माना स्वभावमां पण भर्यो ज छे, तेनी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रता करे तो
तेनो अनुभव थाय. चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो अलौकिक स्वाद अनुभवमां आव्यो त्यां ज्ञानीने बहारना बधा
विषयो तुच्छ भासे छे–तेमां क्यांय स्वप्ने पण सुख भासतुं नथी, तेनी अंर्तदशा फरी जाय छे.
धर्मीने आवतुं नथी. जगतना मूढ जीवो तो पैसा वगेरे जडनी प्रीतिमां आत्मानी चैतन्यलक्ष्मीना महिमाने भूली
जाय छे एवा जीवोने अहीं समजावे छे के अरे भाई! जगतमां ऊंचामां ऊंचुं तो तारुं चैतन्यतत्त्व छे, आनंद होय
आनंद नथी. पोताना अंतरस्वभावना अवलंबन सिवाय बहारथी कांई मळे तेम नथी, भगवान पण आ आत्माने
कांई आपी दे तेम नथी. जगतमां अनंता तीर्थंकर भगवंतो सर्वज्ञ परमात्मा थया, अत्यारे महाविदेहमां सीमंधरादि
तीर्थंकरो बिराजे छे, परंतु बीजा जीवोनुं तेओ कांई करी दे एम बनतुं नथी. सर्वज्ञ परमात्मा पण एम फरमावे छे के
हे जीवो! जगतमां तमारे माटे तमारुं चैतन्यतत्त्व उत्तम छे, तेने तमे समजो. अमारा आत्मामां जेटली ताकात छे
तेटली ज ताकात तमारा आत्मामां पण भरी छे. अनंत अवतारमां जीवे पोताना उत्तम चैतन्यतत्त्वनी समजण कदी
करी नथी. सर्वज्ञ थवानी ताकात पोताना आत्मामां छे तेने ओळखे तो मुक्तिना राह खूले.
एवा पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार कर्या छे. जेम घरना आंगणे कोई मोटा संत के महापुरुष आवे त्यां
तेमनुं स्वागत बहुमान करे छे; तेम अहीं कहे छे हे भाई! जगतमां मोटामां मोटो एवो तारो आनंदस्वरूप
आत्मा तारां अंतरमां बिराजे छे अने निमित्त तरीके पंचपरमेष्ठी