: १९४: आत्मधर्म–१३० : श्रावण: २०१०:
भेद विज्ञान
सीमंधर भगवाननी वेदी प्रतिष्ठाना उत्सव प्रसंगे
उमराळा नगरीमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
वीर सं. २४८०, जेठ सुद बीज
अरे भाई! अनंतकाळे आवो मनुष्य अवतार मळ्यो. तेमां जो आत्मानो
निर्णय न कर्यो तो कीडीना अवतारमां अने तारा अवतारमां शुं फेर? करोडो
रूपिया खर्चतां जेनी एक आंख पण न मळे एवो आ मनुष्य अवतार मळ्यो छे,
तेमां आत्मानुं अपूर्व भान करीने भवनो अंत आवे एवुं कांईक करे तो मनुष्य
अवतारनी सफळता छे. अने जो एवुं अपूर्वभान न कर्युं तो कीडीने कीडीनुं शरीर
मळ्युं ने तने मनुष्यनुं शरीर मळ्युं तेमां फेर शुं पड्यो? भेदविज्ञान ते मुक्तिनो
उपाय छे; माटे आ मनुष्यपणुं पामीने सत्समागमे भेदविज्ञान प्रगट करवानो
प्रयत्न करवो जोईए.
आत्मानुं हित–कल्याण अनंतकाळथी केम थयुं नथी, अने हवे आत्मानुं हित–कल्याण केम
थाय? तेनी रीत संतो–मुनिओए आत्मामां अनुभवी, ते जगतना जीवोने समजावे छे.
भेदविज्ञान वगर जीवने अनादिथी संसार–परिभ्रमण थाय छे. समयसारमां ते संबंधी श्लोक
कह्यो छे के–
भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किलकेचन।
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किलकेचन।।
आत्मानो चिदानंद स्वभाव रागथी भिन्न शुं चीज छे तेनुं यथार्थ भेदज्ञान करीने
अनंता जीवो सिद्ध थया छे; जे कोई सिद्ध थया छे तेओ भेदविज्ञानथी ज सिद्ध थया छे, अने ते
भेदज्ञान वगर ज जीव अनादिथी संसारमां परिभ्रमण करी रह्यो छे.
अंतरमां आत्मानो स्वभाव पोते ज्ञानानंद स्वभावथी भरेलो छे; पण तेने भूलीने,
मारो आनंद बहारनी सगवडतामां छे के रागमां मारो आनंद छे एवी मिथ्या मान्यता करीने
जीव संसारमां रखडे छे. आ आत्मा देहथी तो जुदो (अनुसंधान पाना नं. १९५ उपर)
(पाना नं. १९२ थी चालु)
नहि, ने अंदरनी पुण्य–पापनी क्षणिक लागणी जेटलुं पण अमारुं स्वरूप नहि, अमे तो पूर्ण
ज्ञानानंदस्वरूपथी भरेला आत्मा छीए. आवुं अपूर्व आत्मज्ञान आठ वर्षनी राजकुंवरीओ
पण करी शके छे. आवा अपूर्व ज्ञान वगर त्यागी थाय ने शुभभाव करे तोपण तेमां आत्मानुं
हित नथी आत्मानी वास्तविक ओळखाणनो उपाय करवो ते मूळवस्तु छे, आ सिवाय पुण्य
तो अनंतवार करी चूक्यो छे ते कांई अपूर्व नथी. विभाव शुं अने स्वभाव शुं, तेनी वहेंचणी
करीने स्वभावमां एकाग्र न थाय त्यांसुधी धर्म थाय नहि.
–उमराळा नगरीमां वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे जेठ सुद त्रीजना रोज पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी.