सेवाळ जेवा मलिन छे, जेम पाणीमां उपर जे सेवाळ थाय ते स्वच्छ पाणीनुं स्वरूप नथी,
स्वच्छ पाणी तो ते सेवाळथी जुदुं छे, तेम चिदानंद मूर्ति आत्मा अतीन्द्रिय आनंदरूपी जळथी
भरेलो छे, तेमां पुण्य–पाप ते सेवाळ जेवा छे, ते स्वच्छ आत्मानुं स्वरूप नथी, आत्मा तो
निर्मळ ज्ञानस्वरूप छे एवुं सम्यक् आत्मभान करवुं ते धर्म अने हित छे; आ बोधबीज ते
मुक्तिनुं कारण छे. जुओ, अंतरमां पात्र थईने समजवा मांगे तो कणबी अने खेडूतने पण
समजाय तेवी आ वात छे. जेम कणबी ‘बी’ राखीने ‘कण’ ने भोगवे छे, तेम जेणे धर्म करवो
होय–हित करवुं होय तेणे प्रथम भेदज्ञान रूपी बीज प्रगट करवुं जोईए.
स्वभावमां पूर्णानंद परमात्मदशा प्रगटवानी ताकात छे, तेमां अंतर्मुख थईने तेनो विश्वास
करवो ने तेनुं सम्यग्ज्ञान करवुं तेनुं नाम भेदज्ञान छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे. जुओ, बहारमां
खूब गरमी थती होय अने ठंडी हवा आवे, त्या जाणे ते हवामांथी सुख आवतुं हशे एम
अज्ञानी माने छे, पण अनादिना संसारमां चार गतिना तापमां आत्मा तपी रह्यो छे तेनी
शांति केम थाय? तेनो विचार पण करतो नथी. अंतरमां ठंडो चिदानंदस्वभाव छे तेनो आश्रय
करे तो आत्मानी शांति प्रगटे; पण ते स्वभावनो कदी विश्वास करतो नथी. बहारनो विश्वास
करे छे पण पोते पोतानो विश्वास करतो नथी तेथी संसारमां परिभ्रमण थाय छे. जेम
लींडीपीपरना एकेक दाणामां चोसठपोरी तीखाशनो स्वभाव भर्यो छे तेम आत्माना पोताना
स्वभावमां ज पूर्ण ज्ञान–आनंदनो स्वभाव भर्यो छे; पण अनादिकाळमां एक समय पण तेनी
प्रतीत करी नथी. जो स्वसन्मुख थईने एक क्षण पण स्वभावनी प्रतीत करे तो अल्पकाळमां
मुक्ति थया विना रहे नहि.
कराववानो ने भगवाननी प्रतिष्ठानो भाव आवे. जेम संसारना प्रेमीने पुत्रना लग्न वगेरे
प्रसंगे लक्ष्मी खर्चवानो उल्लास आवे छे तेम जेने धर्मनो प्रेम छे तेने धर्मना निमित्तरूप साचा
देव–गुरु–धर्म प्रत्ये भक्ति अने उल्लासनो भाव आव्या विना रहेतो नथी. जेओ आत्माना
पूर्णानंद स्वभावने साधीने परमात्मा थई गया छे अने जेओ हजी ते पूर्णानंद दशाने साधी
रह्या छे –एवा देव–गुरु प्रत्ये जेने भक्ति अने विनयनो उत्साह नथी आवतो तेने धर्मनी
प्रीति नथी. अहीं तो ए बताववुं छे के भेदज्ञान थया पछी पण धर्मीने भगवाननी प्रतिष्ठा
वगेरेनो शुभ भाव आवे छे; परंतु भेदज्ञान वगर एकला शुभरागमां रोकाई रहे तो तेने धर्म
थाय नहि, केमके भेदज्ञानथी ज धर्म थाय छे. जेम सोनुं अने पीत्तळ वच्चे सोनी भेदज्ञान करे
छे, तेम ज्ञानस्वरूप आत्मा अने रागादि विकारीभावो तेमनी वच्चे ज्ञानी भेदज्ञान करे छे.
अहो! जे सिद्धभगवंतो थया तेमने ते सिद्धदशा क्यांथी आवी? आत्मामां ताकात हती तेमांथी
ते प्रगटी छे, तेवी ज ताकात मारा स्वभावमां भरी छे तेमांथी मारी परमात्मदशा खीलशे, पण
क्यांय बहारमांथी के रागमांथी मारी परमात्मदशा नहि आवे.