Atmadharma magazine - Ank 130
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १९६: आत्मधर्म–१३० : श्रावण: २०१०:
जेम मोरनां ईंडांमां साडात्रण हाथनो मोर थवानी ताकात पडी छे, तेमांथी ज मोर पाके
छे. मोरना ईंडांमां मोर थवानी ताकात छे ते खखडावो तो न जणाय, ईन्द्रियो वडे न देखाय.
पण तेनो स्वभाव नक्की करवो जोईए के आ ईंडुं कूकडीनुं नथी पण मोरनुं छे. माटे तेमांथी
रंगबेरंगी मोरलो पाकशे. तेम आत्मामां सिद्ध भगवान जेवी पूर्णानंद दशा प्रगटवानी ताकात
छे, अल्पज्ञदशा अने रागद्वेष वर्तता होवा छतां आत्मामां पूर्ण ज्ञानानंद प्रगटवानी ताकात
पडी छे, ते केम जणाय? ईन्द्रियो वडे न जणाय, राग वडे न जणाय, पण ज्ञानने अंतर्मुख
करीने स्वभावनो निर्णय करे तो आत्मानुं स्वरूप जणाय; आत्माना स्वरूपनो निर्णय करीने
तेनुं अवलंबन लेतां परमात्मदशा प्रगटी जाय छे. आ सिवाय बीजुं जे करे ते तो बधुं थोथा
छे. अरे भाई! अनंतकाळे आवो मनुष्य अवतार मळ्‌यो, तेमां जो आत्मानो निर्णय न कर्यो
तो कीडीना अवतारमां ने तारा अवतारमां शुं फेर? आ मनुष्यदेहनी एक आंख फूटी जाय,
पछी करोडो रूपिया खर्चे पण तेवी आंख पाछी न थाय; एटले करोडो रूपिया खरचतां जेनी
एक आंख पण न मळे एवो आ मनुष्य अवतार मळ्‌यो छे, तेमां आत्मानुं अपूर्व भान करीने
भवनो अंत आवे एवुं कंईक करे तो मनुष्य अवतारनी सफळता छे अने जो एवुं अपूर्व भान
न कर्युं तो कीडीने कीडीनुं शरीर मळ्‌युं अने तने मनुष्यनुं शरीर मळ्‌युं तेमां फेर शुं पड्यो?
भेदविज्ञान वगर कोई जीवने धर्म के मुक्ति थाय एम कदी बनतुं नथी. शरीर मारुं, शरीरनी
क्रिया मारी, एम पर साथे एकत्वबुद्धि राखीने कदी कोई जीवो सिद्ध थया होय एम बनतुं
नथी. भेदविज्ञानथी ज सिद्धपणुं थाय छे.
आ जगतमां अनंतानंत जीवो छे, तेमांथी अनंता जीवो अत्यार सुधीमां भेदज्ञान करीने
मुक्ति पाम्या छे, अने भविष्यमां पण जे जीवो मुक्ति पामशे तेओ पण भेदविज्ञानथी ज
पामशे; भेदविज्ञान वगर कोई पण जीवनी मुक्ति थाय–एम कदी बनतुं नथी. जेने भेदज्ञान छे
ते ज जीवो मुक्ति पामे छे, ने जेने भेदज्ञान नथी ते जीवो संसारनी चार गतिमां परिभ्रमण
करे छे. आ रीते भेदविज्ञान ते मुक्तिनो उपाय छे; माटे आ मनुष्यपणुं पामीने सत्समागमे
भेदविज्ञान प्रगट करवानो प्रयत्न करवो जोईए.
दुःखनुं कारण
आत्मा त्रणे काळे परवस्तुओथी जुदो
छे एटले बहारना कोई पण साधनो
आत्माने सुख–दुःखना कारण नथी; पण
अज्ञानी पर संयोगोमां आ मने अनुकूळ
ने आ मने प्रतिकूळ एम मानीने तेमां
मोहथी रागद्वेष करे छे ते ज संसार
परिभ्रमणना दुःखनुं कारण छे.