Atmadharma magazine - Ank 130
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण: २०१०: आत्मधर्म–१३० : २०१:
भले आठ वर्षनी बाळकी होय, हजी शुभ–अशुभ भावो थता होय, छतां ते क्षणे आत्मामां
अंशे अतीन्द्रिय शांति वर्ते छे, तेटलुं कृतकृत्यपणुं वर्ते छे. अने चैतन्यस्वभावना निर्णय वगर
भले शुभराग करे ने लाखो रूपिया दानमां खर्चे, लोको तेने मोटा मोटा बिरूद आपे, पण तेमां
तेना आत्माने जराय कृतकृत्यपणुं नथी. बहारनां कार्यो तो तेना थवा काळे थया ज करे छे, ते
कांई जीवनुं कर्तव्य नथी; अने राग थाय त्यां ‘आ राग मारुं कार्य ने हुं तेनो कर्ता’ एम
मानीने जे रोकाय छे ते पण अधर्मी छे, आत्मानी शांतिनी तेने खबर नथी. मारी शांति मारा
आत्मामां ज छे, बहारमां के रागमां मारी शांति नथी, मारो आत्मा चैतन्यचिंतामणिरत्न जेवो
छे, तेमांथी जे चिंतवुं ते मळे एटले के मारा आत्माने लक्षमां लईने चिंतवतां अतीन्द्रिय ज्ञान
अने आनंदनी प्राप्ति थाय छे आम जेणे पोताना ज्ञानानंद स्वभावनी सन्मुख थईने तेनी
सम्यक्प्रतीति करी, ज्ञान कर्युं ने तेमां एकाग्रता करी तेणे करवा योग्य अपूर्व कार्य कर्युं, तेथी ते
कृतकृत्य थयो. भाई! आत्माना स्वभावनी प्रतीत करीने तेमां ठर–ते ज तारुं खरुं कार्य छे, आ
सिवाय परनां कार्यो तारा नथी, ने राग थाय ते पण खरेखर तारुं कर्तव्य नथी. माटे हे भाई!
एकवार तो अंर्तमुख थईने स्वभावनो निर्णय कर अने अनंतकाळमां नहि करेल एवुं अपूर्व
कार्य प्रगट कर.
***
(अनुसंधान पाना नं. १८८ थी चालु)
आत्मानी प्रभुता नथी, पण चिदानंद स्वभावमां तारी प्रभुता छे; तेने ध्येय बनावीने तेनी प्रतीत–
ज्ञान ने एकाग्रता करवा ते धर्म छे. पोताना चैतन्यनी प्रभुताने चूकीने, परने ध्येय बनावीने जीव अनादिथी
संसारमां रखडयो छे. अंतरना चिदानंद स्वभावनी प्रभुताने ओळखीने तेने ध्येय बनाववो ते भवना नाशनो
उपाय छे.
जुओ, आ चैतन्यना स्वावलंबी पडखां अंतरमां आत्माना अवलंबनथी समजाय तेवा छे, पण ते माटे
घणी पात्रताथी वारंवार सत्समागम जोईए, वारंवार तेनो परिचय जोईए. आ सिवाय बीजो तो कोई
हितनो उपाय छे नहि. माटे जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे अंतरमां आ समजणनो प्रयास करवो जोईए.
अंतरमां चैतन्यना अवलंबन सिवाय बहारनो बीजो कोई उपाय छे ज नहि. सम्यग्दर्शन पण चैतन्यनुं ध्यान
छे, सम्यग्ज्ञान ते पण चैतन्यनुं ध्यान छे ने सम्यक्चरित्र ते पण चैतन्यनुं ध्यान छे; चैतन्यस्वभावना ध्यानथी
ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे, ए सिवाय कोईपण बीजाना ध्यानथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थता
नथी. परना अवलंबनथी लाभ मानवो ते तो मिथ्यात्व छे, ने चैतन्यस्वभावनुं अवलंबन लईने एकाग्र थवुं
ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो उपाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग छे तेमां ध्येयरूप एक शुद्ध
आत्मा ज छे.
चैतन्यस्वरूप आत्मा शुं चीज छे तेनी समजण पूर्वे कदी जीवे करी नथी. अनंतकाळमां जे वात नथी
समज्यो ते समजवा माटे अवकाश लईने महेनत करवी जोईए. जगतना लौकिक भणतर माटे केटलो काळ
गाळे छे? ने केटली महेनत करे छे? तो जेने आत्मानी दरकार होय तेणे आत्मानी समजण माटे वखत लईने
श्रवण–मननथी अभ्यास करवो जोईए. परमां तो आत्मानी महेनत काम आवती नथी, आत्माना डहापणने
लीधे बहारनां काम सुधरी जाय के लक्ष्मी वगेरे मळी जाय एम बनतुं नथी. लक्ष्मी वगेरेनुं मळवुं के टळवुं ते तो
पूर्वना पुण्य पाप प्रमाणे बने छे. अने चैतन्यतत्त्वनी समजण तो वर्तमान अपूर्व प्रयत्नथी थाय छे. मारो
आत्मा चैतन्यतत्त्व छे ते आनंदनुं धाम छे, ते ज जगतमां उत्कृष्ट छे अने ते ज मारुं ध्येय छे, एम
चैतन्यतत्त्वने ध्येय बनावीने तेनी प्रतीत करवी ते सम्यग्दर्शन छे, बीजुं कोई