: भाद्रपद : २०१०: आत्मधर्म–१३१ : २१३ :
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
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श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
[अंक ११३थी चालु]
* जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के : ‘प्रभो! आत्मा कोण छे ने कई रीते
प्राप्त कराय छे? ’
* श्री आचार्यदेव उत्तर आपे छे के : ‘आत्मा अनंतधर्मोवाळुं
एक द्रव्य छे अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे
ते जणाय छे.’
* ते आत्मद्रव्यनुं ४७ नयोथी वर्णन कर्युं छे; तेमांथी नीचे मुजब
२७ नयो उपरनां प्रवचनो आत्मधर्म अंक ११३ सुधीमां आवी गया छे.
(१–२) द्रव्यनय, पर्यायनय (३थी९) अस्तित्वनय, नास्तित्वनय ईत्यादि सप्तभंग
(१०–११) विकल्पनय, अविकल्पनय (१२थी१५) नामनय, स्थापनानय, द्रव्यनय,
भावनय(१६–१७) सामान्यनय, विशेषनय (१८–१९) नित्यनय, अनित्यनय (२०–११)
सर्वगतनय, असर्वगतनय (२२–२३) शून्यनय, अशून्यनय (२४–२५) ज्ञानज्ञेयअद्वैतनय,
ज्ञानज्ञेयद्वैतनय (२६–२७) नियतिनय, अनियतिनय;
हवे नीचे मुजब २० नयो उपरनां प्रवचनो बाकी छे–
(२८–२९) स्वभावनय, अस्वभावनय (३०–३१) काळनय, अकाळनय (३२–३३)
पुरुषकारनय, दैवनय (३४–३५) ईश्वरनय, अनीश्वरनय (३६–३७) गुणीनय, अगुणीनय
(३८–३९) कर्तृनय अकर्तृनय (४०–४१) भोकतृनय, अभोकतृनय (४२–४३) क्रियानय,
ज्ञाननय (४४–४५) व्यवहारनय, निश्चयनय, (४६–४७) अशुद्धनय अने शुद्धनय.
आ प्रमाणे ४७ नयोथी आत्मानुं वर्णन करीने छेवटे आचार्य भगवान तेनुं तात्पर्य
जणावतां कहेशे के– ‘आ रीते स्यात्कारश्रीना वसवाटने वश वर्तता नय समूहो वडे जुए
तोपण अने प्रमाण वडे जुए तोपण स्पष्ट अनंत धर्मोवाळा निज आत्मद्रव्यने अंदरमां शुद्ध
चैतन्यमात्र देखे छे ज.’ शुद्ध चैतन्यद्रव्य उपर द्रष्टि जाय ते ज आ बधा नयोनुं परमार्थ
तात्पर्य छे, केमके आत्माना जेटला धर्मो छे ते बधाय शुद्ध चैतन्यद्रव्यना आश्रये ज अभेदपणे
रहेला छे. माटे बधा नयोना वर्णनमां आ वात लक्षमां राखवी.
[२८] स्वभावनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य स्वभावनये संस्कारने निरर्थक करनारुं छे; जेम तीक्ष्ण कांटो स्वभावथी ज
अणीवाळो छे, तेने कोईथी अणी काढवामां