रुचि करवी ते मुक्तिनो पायो छे, अने तेनाथी विपरीत एवा विकारनी रुचि करवी ते संसारनो पायो छे. पुण्य
जुदी चीज छे ने धर्म जुदी चीज छे, पुण्य तो परना अवलंबने थाय छे ने धर्म तो चैतन्यस्वरूपना अवलंबने
थाय छे; पुण्य तो आस्रव–बंधनुं कारण छे एटले संसारनुं कारण छे, अने धर्म तो संवर–निर्जरा–मोक्षनुं कारण
छे; तेने बदले अज्ञानी लोको पुण्य अने धर्म बंनेने एक ज चीज मानीने, रागने धर्म माने छे, ते ऊंधी
मान्यतामां रागनो आदर छे ने आत्माना चिदानंदस्वभावनो अनादर छे, ते ज संसारनुं मूळ कारण छे. हुं शुद्ध
चैतन्यस्वरूप छुं ने रागादि भावो मारा स्वरूपथी विपरीत छे–जुदा छे, ए प्रमाणे रागरहित चिदानंदस्वरूपने
ओळखीने तेनो आदर करवो ते मोक्षनुं कारण छे.
थाय ने परमानंदमय मुक्तदशा पामे. माटे पोतानो शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मा ज आ आत्माने ध्येयरूप छे; तेनी श्रद्धा, ज्ञान अने एकाग्रतारूप
क्रिया ते मोक्षनुं कारण छे.
केम थाय? मारो आत्मा अनादिथी आ संसारमां रखडे छे तो हवे एवो
शुं उपाय करुं के जेथी संसारभ्रमणनो अंत आवे ने आत्मानी मुक्ति
थाय? हुं शरीरथी भिन्न चैतन्यस्वरूप छुं एम पोताना स्वरूपनी
ओळखाण करवी ते ज आ मनुष्यपणामां करवा जेवुं ध्येय छे, अने ते
ज धर्म छे.
एवो ने एवो अनादि अनंत छे पण जीवे कदी पोताना स्वरूपनी
संभाळ करी नथी तेथी ज ते संसारमां रखडे छे. एक क्षण पण पोताना
वास्तविक स्वरूपनी संभाळ करे तो मुक्ति थया विना रहे नहि.