Atmadharma magazine - Ank 131
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: २१२ : आत्मधर्म–१३१ भाद्रपद : २०१० :
पुण्य–पापनी रुचि करवी ते तो चोरासीना अवतारनो ऊंडो पायो छे, पोताना स्वभाव सन्मुख थईने तेनी
रुचि करवी ते मुक्तिनो पायो छे, अने तेनाथी विपरीत एवा विकारनी रुचि करवी ते संसारनो पायो छे. पुण्य
जुदी चीज छे ने धर्म जुदी चीज छे, पुण्य तो परना अवलंबने थाय छे ने धर्म तो चैतन्यस्वरूपना अवलंबने
थाय छे; पुण्य तो आस्रव–बंधनुं कारण छे एटले संसारनुं कारण छे, अने धर्म तो संवर–निर्जरा–मोक्षनुं कारण
छे; तेने बदले अज्ञानी लोको पुण्य अने धर्म बंनेने एक ज चीज मानीने, रागने धर्म माने छे, ते ऊंधी
मान्यतामां रागनो आदर छे ने आत्माना चिदानंदस्वभावनो अनादर छे, ते ज संसारनुं मूळ कारण छे. हुं शुद्ध
चैतन्यस्वरूप छुं ने रागादि भावो मारा स्वरूपथी विपरीत छे–जुदा छे, ए प्रमाणे रागरहित चिदानंदस्वरूपने
ओळखीने तेनो आदर करवो ते मोक्षनुं कारण छे.
[–वडाल गाममां पू.गुरुदेवना प्रवचनमांथी,
वीर सं. २४८०, महा सुद ९]
*
आत्मानुं ध्येय
* आत्मानुं ध्येय शुं? कर्तव्य शुं? अथवा धर्मनी क्रिया शुं? तेनी आ वात छे.
* प्रथम शरीर वगेरेनी क्रिया ते आत्मानुं ध्येय नथी केमके ते तो
जड छे–आत्माथी भिन्न वस्तु छे.
* अंदरमां पुण्य–पापना परिणाम थाय ते पण आत्मानुं ध्येय
नथी, ते तो विकार छे–दुःखनुं कारण छे.
* भगवान आत्मा आ मनुष्यदेहथी पार चैतन्यतत्त्व छे, ते
जाणनार–देखनार छे, जो ते पोते पोताने जाणे देखे तो आनंदनो अनुभव
थाय ने परमानंदमय मुक्तदशा पामे. माटे पोतानो शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मा ज आ आत्माने ध्येयरूप छे; तेनी श्रद्धा, ज्ञान अने एकाग्रतारूप
क्रिया ते मोक्षनुं कारण छे.
*
मनुष्यपणामां करवा जेवुं
जुओ भाई, आ मनुष्य देह मळवो अनंतकाळे मोंघो छे, तो
मनुष्यपणुं पामीने विचार करवो जोईए के अरे, मारा आत्मानुं हित
केम थाय? मारो आत्मा अनादिथी आ संसारमां रखडे छे तो हवे एवो
शुं उपाय करुं के जेथी संसारभ्रमणनो अंत आवे ने आत्मानी मुक्ति
थाय? हुं शरीरथी भिन्न चैतन्यस्वरूप छुं एम पोताना स्वरूपनी
ओळखाण करवी ते ज आ मनुष्यपणामां करवा जेवुं ध्येय छे, अने ते
ज धर्म छे.
आत्मानी संभाळ करीने तेने ज्ञाननुं ध्येय बनावे तो आत्मामां
तत्त्वज्ञानना अपूर्व तरंग ऊछळे, ते मोक्षनुं कारण छे. ज्ञान स्वभाव तो
एवो ने एवो अनादि अनंत छे पण जीवे कदी पोताना स्वरूपनी
संभाळ करी नथी तेथी ज ते संसारमां रखडे छे. एक क्षण पण पोताना
वास्तविक स्वरूपनी संभाळ करे तो मुक्ति थया विना रहे नहि.