
सम्यग्ज्ञान न थई के एम नथी, पण सवळी रुचिना संस्कार वडे अनादिनुं अज्ञान टळीने एक
क्षणमां सम्यग्ज्ञान थई शके छे. अनादिकाळना ऊंधा भावोना संस्कार टाळीने वर्तमान
पर्यायमां सवळा भाव थई शके छे, ए रीते आत्मा संस्कारने सार्थक करनार छे.
ज्ञान वडे तारी पर्यायमां एक क्षणमां परमात्मपणाना संस्कार थई शके छे; माटे हे भाई! ‘हुं
पामर, हुं पापी’ –एवी तुच्छ मान्यताना संस्कार काढी नांख, अने मारो आत्मा ज परमात्मा
छे’ एम तारा स्वभाव सामर्थ्यनी श्रद्धा करीने स्वभावना अपूर्व संस्कार प्रगट कर. जुओ,
आ आत्माना संस्कार! लोको कहे छे के सारा संस्कार पाडवा. तो आत्मामां सारा संस्कार केम
पडे तेनी आ वात छे. भाई! परना संस्कार तारामां नथी, ‘हुं रागी, हुं जडनो कर्ता’ एवा जे
कुसंस्कार छे ते काढी नांख, अने ‘हुं तो रागरहित चिदानंद स्वभाव छुं’ एम अंतर–सन्मुख
थईने तारी पर्यायमां स्वभावना संस्कार पाड, ते ज खरा सुसंस्कार छे. जेम तीरमां नवी अणी
कढाय छे तेम आत्मानी पर्यायमां नवा संस्कार पडे छे. माटे हे जीव! तुं मूंझा नहि, घणा
काळना ऊंधा संस्कार ते हवे माराथी केम टळशे? एम हताश न था, पण हुं मारा स्वभावनी
जागृति वडे अनादिना ऊंधा संस्कारने एक क्षणमां दूर करीने अपूर्व संस्कार प्रगट करी शकुं छुं
एवुं मारामां सामर्थ्य छे, एम स्वसामर्थ्यनी प्रतीत करीने तुं प्रसन्न था.
पोते ज पोतानो लुहार छे एटले के पोतानी पर्यायनुं घडतर करीने पोते ज तेमां संस्कार
पाडनार छे, कोई बीजो आत्मानी पर्यायने घडनार नथी, एम समजवुं. ‘हुं पामर छुं, मारे
परचीज वगर एक क्षण पण न चाले?’ एवा ऊंधा संस्कार छे, तेने बदले ‘हुं पोते चिदानंद
भगवान छुं, मारे त्रणेकाळ परचीज विना ज चाले छे, पण मारी परमात्म–शक्ति वगर मारे
एक क्षण पण न चाले’ एम स्वसन्मुख थईने आत्मा पोते पोतानी पर्यायमां सवळा संस्कार
पाडी शके छे. आत्मा सवळो थाय तो अनंतकाळना पाप एक क्षणमां पलटी जाय छे ने धर्मना
अपूर्व संस्कार प्रगटे छे, माटे अवस्थामां आत्मा संस्कारने सार्थक करनारो छे.
नथी; पण अस्वभावनयथी जोतां आत्मानी अवस्थामां क्षणे क्षणे नवा संस्कार थाय छे.
पर्यायमां अनादिना ऊंधा संस्कार छे तेने फेरवीने स्वभावनी रुचि करतां सम्यग्दर्शन वगेरेना
नवा संस्कार पडे छे, एटले पर्यायमां पुरुषार्थ सार्थक थई शके छे. द्रव्य–स्वभावमां तो कांई
फेरफार थतो नथी, पण पर्यायमां पुरुषार्थ वडे ऊंडा संस्कार पलटीने सवळा संस्कार थई शके
छे. ‘चेतनरूप अनूप अमूरत सिद्ध समान सदा पद मेरो’ एवा स्वीकार वडे पर्यायमां शुद्ध
संस्कार पडे छे. एक समयनी पर्यायनुं पाप त्रिकाळी स्वभावमां तो नथी, तेमज