
सुगंधनो विश्वास आवतो नथी एटले बहारमांथी सुगंध आवे छे–एम मानीने ते बहार भटके
छे; तेम आनंद तो आत्माना स्वभावमां ज भर्यो छे; सिद्ध भगवंतोने जे आनंदनो अनुभव
छे ते आनंद आत्मामांथी ज प्रगट्यो छे, अने आ आत्माना स्वभावमां पण तेवो आनंद
भर्यो छे, पण अनादिथी जीवने पोताना स्वभावनो विश्वास आवतो नथी तेथी बहारमां ने
रागमां आनंद मानीने भववनमां भटके छे. तेने ज्ञानी समजावे छे के अरे भाई! तुं शांत था!
शांत था! तुं कोण छो तेनी ओळखाण कर. जेवा सिद्धभगवान छे तेवी ज तारा आत्मानी जात
छे, तारो आत्मा पोते ज आनंदथी भरेलो छे. आ शरीर तो जड–पुद्गलनुं ढींगलुं छे तेमां
क्यांय तारो आनंद नथी. ने रागमां आकुळता छे, तेमां पण तारो आनंद नथी.तारो अविकारी
चिदानंद आत्मा ज आनंदस्वरूप छे, माटे तेमां ज तारा आनंदने शोध. पहेलांं आवा आत्मानी
सन्मुख थईने तेनी सम्यक् प्रतीति करतां निर्विकल्प आनंदनो अंश अनुभवमां आवे छे. आवी
प्रतीति पूर्णानंदरूप मोक्षदशानी प्राप्तिनुं पहेलुं सोपान छे.
पण जेणे अंतरनी चैतन्यकळा जाणी ते जीव मोक्षना पंथे छे; अने जेणे अंतरनी चैतन्यकळा न
जाणी, ते भले बीजी गमे तेटली कळा जाणतो होय तोपण ते मोक्षना पंथे नथी. जुओ, घणां
शास्त्रो वांचे ने घणुं भणे पछी ज आ वात समजाय एम नथी, अंतरमां पात्र थईने प्रयत्न
करता आठ–आठ वर्षनां बाळको पण आ वात समजी जाय छे ने अपूर्व आत्मकल्याण पामी
जाय छे. महाविदेहमां अत्यारे भगवान सीमंधर परमात्मा अरिहंतपणे बिराजे छे, त्यां
भगवाननी धर्मसभामां आठ आठ वर्षनी राजकुंवरीओ पण आ वात समजे छे; भगवाननी
वाणी सांभळतां ज अंदर ऊतरी जाय छे के : अहो! अमे तो आत्मा छीए, आ देह अमे नथी,
अमे देहथी भिन्न चिदानंद स्वरूप छीए. आम अंतरमां ऊतरीने आत्मानो अनुभव करतां
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननी अपूर्व कळा प्रगटे छे. ज्यां आवुं अपूर्व आत्मभान थयुं त्यां
धर्मी जीव बहारना संयोगना ठाठथी पोताना चैतन्यनी शोभा मानता नथी; शरीरनी शोभा ते
अमारी शोभा नथी, अमारी शोभा तो अमारा स्वभावथी छे; जेम मृतक कलेवरने चंदननी
शैया उपर सूवाडो ने सुगंधी फूलना हार पहेरावो पण तेमां क्यांय ते शोभा मानतुं नथी, तेम
जेना अंतरमांथी मोहनो नाश थई गयो छे एवा धर्मात्मा शरीरथी के रागथी पोतानी शोभा
मानता नथी, पोताना चैतन्यस्वभावनी शोभा पासे बीजे बधेयथी तेनी द्रष्टि ऊडी गई छे.
अज्ञानी तो पोताना चैतन्यस्वभावनी शोभाने चूकीने परने सारां माने छे, परथी मारी शोभा
एटले के हुं नमालो एम ते पोताना आत्माने तुच्छ माने छे. पण भाई! तुं विचार तो कर के
परने तुं मोटाई आपे छे तो तारा पोतामां कांई मोटाई खरी के नहि? परने जाणतां ‘आ
सारुं’ एम तुं माने छे, पण तेने जाणनारुं तारुं ज्ञान छे ते ज्ञानमां कांई सारापणुं छे के नहि?
भगवान! तारी शोभा तो तारा ज्ञानस्वभावमां ज छे. अरिहंत अने सिद्ध भगवंतोने जे
परमात्मदशा प्रगटी ते क्यांथी आवी?