पण हुं परने छोडुं एम जे माने छे ते पोताना स्वभावधर्मने छोडे छे.
श्रवण पण नथी कर्युं. खरेखर श्रवण कर्युं तो त्यारे कहेवाय के जेवो तेनो भाव छे तेवो अंतरमां लक्षगत करीने
समजे. समजण वगरनुं श्रवण ते खरुं श्रवण कहेवाय नहि.
ए वात ज खोटी छे. साची समजण करवी ए ज धर्मनुं पहेलुं कार्य छे. जे खरेखर समजे तेने कार्यनी शंका रहे नहि,
अने जेने शंका रहे तेने खरेखर समजायुं ज नथी. समजाय छे पण कार्य नथी थतुं एम कहेनारने खरेखर समजण
साची थई नथी. हुं समजुं छुं, एम ते भ्रमणाथी माने छे; जो खरेखर समजे तो कार्य थवानी शंका रहे ज नहि.
अने जेने रागनी रुचि छे तेने आत्मानी रुचि होती नथी. आ मंदराग करतां करतां ते रागना अवलंबने
अंर्तस्वभावमां जवाशे–एवी जेनी बुद्धि छे तेने रागनी रुचि छे ने चैतन्यस्वभावनी अरुचि छे, ते अनंतानुबंधी
क्रोध छे. रागथी चैतन्यस्वभाव पमाय एम मान्युं तेणे चैतन्यस्वभावना आधारे आत्मा नथी मान्यो पण रागना ज
आधारे आत्मा मान्यो छे, एटले रागनुं सन्मान करीने चैतन्य स्वभावनुं अपमान कर्युं, रागनो आदर करीने
आत्मस्वभावनो तिरस्कार कर्यो, ते मोटुं पाप छे, ने ते ज मोटी हिंसा छे; तेणे हाथमां तलवार लीधी नथी, बहारमां
कोई जीवने मार्यो नथी छतां पण ते अनंत हिंसा करनार छे, केमके रागथी लाभ मानीने अंतरना चिदानंदस्वभावने
तेणे हणी नाख्यो छे. अने जेने चिदानंदस्वभावनुं भान छे, चैतन्य अने विकारनुं भेदज्ञान वर्ते छे एवा समकिती
धर्मात्मा चोथा गुणस्थाने होय ने हाथमां तलवार लईने लडाई करता होय ते जातनो पापभाव पण थतो होय, छतां ते
ज वखते अंतरमां चिदानंदस्वभावनी द्रष्टिमां तेने क्रोधादिनो अभाव छे, चैतन्यना उपयोगमां क्रोधादिने जरापण
करता नथी, एटले अनंतानुबंधी कषाय तो तेने थतो ज नथी; राग वखते पण चैतन्यस्वभावनो आदर छोडीने
रागनो आदर तेने कदी थतो ज नथी. जुओ, आ द्रष्टिनो खरो महिमा छे. रागथी भिन्न चैतन्यतत्त्व शुं छे तेने
वैराग्य छे. उपयोगमां मारो आत्मा छे ने रागमां मारो आत्मा नथी एम जाण्युं एटले रागथी विरक्त थईने ज्ञान
पोताना स्वभावमां वळ्युं ते ज साचो वैराग्य छे. आ सिवाय जे जीव रागथी आत्माने लाभ माने छे ते तो महारागी
छे–मिथ्याद्रष्टि छे. जेने रागनी प्रीति छे अने रागथी चैतन्यनी भिन्नतानुं भान नथी तेनो साचो वैराग्य क्यांथी होय?
भेदज्ञान वगर साचो वैराग्य होय ज नहि. अज्ञानी जीव बहारमां त्यागी थईने भले रागनी मदंता करे तोपण तेने
साचो वैराग्य कहेवातो नथी; राग उपर ज जेनी द्रष्टि पडी छे तेने वैराग्य केवो? रागमां मारो उपयोग नथी ने मारा
आवती, पण अंतरमां ध्रुव चिदानंदस्वरूप आत्माना अवलंबनथी ज ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
वीतरागीदशा प्रगटे छे. आत्माने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां पोताना आत्मा सिवाय बीजा कोईनुं अवलंबन
नथी, एटले आत्माना स्वभावने ओळखीने तेनुं अवलंबन करवुं ते ज धर्मनो उपाय छे, आ सिवाय बीजो
कोई धर्मनो उपाय नथी. आ सिवाय बीजा कोई पण विपरीत उपायथी धर्म मानीने जे जीव रागनो आदर करे
छे ते जीव पोताना चिदानंद स्वभावनी सामे कुटिलता करे छे. लाभनुं कारण अंतरमां पोताना चैतन्यस्वभावनुं
अवलंबन करवुं ते ज छे एम न मानतां, बहारना निमित्तोथी मने लाभ थाय अथवा शुभराग होय तो धर्म
लोभ पड्या छे, ते मोटो अधर्म छे. अने मारो चिदानंदस्वभाव रागना अवलंबनथी पार छे–एम जाणीने
स्वभावनुं अवलंबन करतां जे सम्यग्दर्शनादि वीतरागीभाव प्रगटे ते अपूर्व धर्म छे, ने ते ज मोक्षनो मार्ग छे.