Atmadharma magazine - Ank 131
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २०१०: आत्मधर्म–१३१ : २०७ :
संसारभ्रमणनुं मूळ कारण
अने तेना छेदनो उपाय
अरे, चैतन्य आत्मा!! तें बहारना बीजा प्रयोगो कर्या,
पण सत्समागमे चैतन्यनी समजणनो यथार्थ प्रयोग पूर्वे कदी
कर्यो नथी. माटे हे भाई! हवे जागृत थईने सत्समागमे
आत्मानी समजणनो प्रयत्न कर, जेथी तारा अनादिना
भवभ्रमणनो अंत आवे.
जेतपुर शहेरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन: वीर सं. २४८०, महा सुद ८
सर्वज्ञ भगवाने देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा जेवो जाण्यो अने कह्यो तेनी ओळखाण
विना जीव अनादिथी संसारमां दुःखी छे. ते चैतन्यस्वरूप आत्मा मोही–अज्ञानी जीवोने दुर्गम्य
छे ने निर्मोही–धर्मात्माने तेनो बोध थाय छे. अज्ञानी तो देह अने रागादिने ज पोतानुं स्वरूप
माने छे एटले देहथी ने रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूप तेने दुर्गम्य छे. आ शरीर वगेरे तो
अचेतन छे, तेनाथी आत्मा जुदो छे, अने रागादिक भावोथी पण आत्मानो चैतन्यस्वभाव
जुदो छे. जेवो सिद्ध परमात्मानो स्वभाव छे तेवो ज स्वभाववाळो आत्मा आ देहमां रहेलो
छे; सिद्ध भगवानमां अने आ आत्माना स्वभावमां परमार्थे कांई फेर नथी, जेटलुं सामर्थ्य
सिद्ध भगवानना आत्मामां छे तेटलुं सामर्थ्य दरेक आत्मामां भर्युं छे. सिद्धपरमात्मा पोताना
स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत करीने तेमां लीनता वडे पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगट करीने मुक्त थई
गया; अने अज्ञानी जीव पोताना स्वभावसामर्थ्यने भूलीने. रागादिमां ज पोतापणुं मानीने
संसारमां रखडे छे.
अज्ञानी जीव जगतथी भिन्न पोताना चैतन्यस्वरूपने चूकीने देशनुं परनुं–घरनुं अने
शरीर वगेरेनुं काम करवाना अभिमानमां अटके छे, बहु तो धर्मना नामे आगळ चाले तो
दया–व्रत वगेरेना शुभरागमां धर्म मानीने त्यां अटकी जाय छे; पण शरीरादिनी क्रियाथी भिन्न
ने शुभरागथी पण पार एवा पोताना ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं लक्ष करतो नथी, तेथी तेना
जन्म–मरणना दुःखनो अंत आवतो नथी. अनादिकाळमां पुण्य कर्या तोपण जीव संसारमां ज
रखड्यो छे, तो ते संसारनुं मूळ कारण शुं छे ते जाणीने तेने टाळवानो उपाय करवो जोईए.
अनंतवार पुण्य करवा छतां जीवनुं संसारभ्रमण न अटक्युं माटे नक्की करवुं जोईए के पुण्य ते
संसार भ्रमणथी छूटवानो उपाय नथी. वीतरागी चैतन्य स्वभावने भूलीने, परथी के पुण्यथी
आत्माने किंचित् पण धर्मनो लाभ थाय एवी मिथ्या मान्यता ज संसारभ्रमणनुं मूळ कारण
छे, चैतन्यस्वभावनी ओळखाण करीने ए मूळ कारणने छेदया विना बीजा जे कांई उपाय जीव
करे ते बधाय संसारनुं कारण थाय छे.
अंतरना चिदानंदस्वभावने ओळखीने तेमां एकाग्रताथी राग टाळीने जेमणे सर्वज्ञता
प्रगट करी ते सर्वज्ञपरमात्माना दिव्यध्वनिमां एवो उपदेश आव्यो के : अरे आत्मा! तें तारा
असली स्वभाव तरफ कदी वलण कर्युं नथी; तारो आत्मा एक समयमां परिपूर्ण ज्ञान ने