Atmadharma magazine - Ank 131
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: २०८ : आत्मधर्म–१३१ भाद्रपद : २०१० :
आनंदस्वभावथी भरेलो छे तेने ओळखीने तेनी प्रीति कर, अंर्तआत्मामां एकाग्र थतां राग
टळी जाय छे ने सर्वज्ञता प्रगटी जाय छे, माटे राग ते तारुं खरुं स्वरूप नथी पण पूर्णज्ञान ते
तारुं स्वरूप छे. आ प्रमाणे रागथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मानो निर्णय करवो ते मुक्तिना
उपायनुं पहेलुं सोपान छे.
आत्मा त्रणे काळे पर वस्तुओथी जुदो छे एटले बहारनां कोईपण साधनो आत्माने
सुख–दुःखनां कारण नथी; पण अज्ञानी पर संयोगमां आ मने अनुकूळ ने आ मने प्रतिकूळ–
एम मानीने तेमां मोहथी राग–द्वेष करे छे ते ज संसार परिभ्रमणना दुःखनुं कारण छे.
अनादिकाळथी संसारमां रखडतां जीव पुण्य करीने स्वर्गमां पण गयो ने पाप करीने नरकमां
पण गयो, मोटो राजा पण अनंतवार थयो ने रंक भीखारी पण अनंतवार थयो, पण ‘हुं कोण
छुं–मारो ज्ञानानंद स्वभाव शुं छे’ ए वात तेणे कदी लक्षमां पण लीधी नहि. आत्मा अखंड
ज्ञानस्वरूप छे, तेनामां अनंत गुणो होवा छतां ते अभेद स्वरूप एक छे, गुणभेदना विकल्पथी
पण पार थईने एक अभेद स्वरूप आत्मानी प्रतीति करवी ते अपूर्व सम्यग्दर्शन–धर्म छे. एक
समयनुं सम्यग्दर्शन अनंत जन्म–मरणना मूळने छेदी नांखे छे. अंतरना चिदानंदस्वभावनी
ओळखाण करीने आवुं अपूर्व सम्यग्दर्शन अनादिथी एक सेकंड पण जीवे कर्युं नथी. बीजुं बधुं
करी चूक्यो–शुभभावथी व्रत तप–पूजा ने त्याग कर्यां पण ‘हुं पोते चैतन्यज्योत भगवान छुं’
एवा आत्मभान वगर एक पण भव घट्यो नहि.
सत्समागमे चैतन्यनी समजणनो यथार्थ प्रयोग पण जीवे कदी कर्यो नथी. अरे चैतन्य
आत्मा! तने अनंतकाळे आवो मनुष्य अवतार मळ्‌यो. तेमां तें बहारना बीजा प्रयोगो कर्यां
पण अंतरमां पोतानो ज्ञानानंद स्वरूप आत्मा शुं चीज छे ते समजवानो प्रयोग तें तारा
ज्ञानमां कदी एक क्षण पण न कर्यो, ने मनुष्य अवतार व्यर्थमां गुमावीने पाछो संसारमां ज
रखड्यो. माटे हे भाई! हवे जागृत थईने सत्समागमे आत्मानी समजणनो प्रयत्न कर, जेथी
तारा अनादिना भवभ्रमणनो अंत आवे.
आत्मा पोतानी ज भूलथी संसारमां रखड्यो छे ने पोतानी ज समजणथी ते तरे छे,
कोई बीजाए तेने रखडाव्यो नथी; तेमज कोई बीजुं तेने तारतुं नथी; भूल करवामां पोते
स्वतंत्र छे ने ते भूल भांगीने साची समजण करवामां पण पोते स्वतंत्र छे, भूल ते क्षणिक
विकृति छे ते टळी शके छे, ने भूल वगरनो स्वभाव कायम छे; ते स्वभावमां अंतर्लक्ष करतां
अनादिनी भूल टळीने अपूर्व ज्ञानदशा प्रगटे छे. अज्ञानभाव तेमज हिंसा के दयानो भाव ते
क्षणिक विकृति छे, आत्मामां ते कायम रहेनार नथी; आत्मानो कायमी चिदानंद स्वभाव तेमां
तेनो अभाव छे. जीवे अनादिथी क्षणिक विकार सामे ज जोयुं छे, पण विकारनो जेमां अभाव
छे एवा पोताना कायमी चिदानंदस्वभावनी सामे कदी जोयुं नथी. अंतर्मुख थईने स्वभावनी
समजण करवी ते अपूर्व छे. आ सिवाय पूर्वे अनंत भवमां जे कर्युं ते कांई अपूर्व नथी.
मारो आनंद मारामां ज छे–एम पोताना स्वभावनी प्रतीत जीवने आवती नथी एटले
बहारना अनुकूळ संयोगमांथी ते आनंद लेवा मांगे छे; तेथी ते पोताना उपयोगने बहारमां ने
बहारमां ज भमावे छे पण अंर्तस्वभावमां
(अनुसंधान माटे जुओ पान २२०)