वर्णन कर्यु छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
अनंतनयात्मक श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे ते जणाय छे.’ आवा आत्मद्रव्यनुं
आ वर्णन चाले छे.
एवो काळनयथी आत्मानो एक धर्म छे, जे काळे मुक्ति थाय छे ते काळे पण ते पुरुषार्थपूर्वक ज
थाय छे, परंतु पुरुषार्थथी कथन न करतां ‘स्वकाळथी मुक्ति थई’ एम काळनयथी कहेवामां आवे
छे. स्वकाळथी मुक्ति थई माटे पुरुषार्थ ऊडी जाय छे–एम नथी. स्वकाळे मुक्ति थई तेमां पण
पुरुषार्थ तो भेगो ज छे.
आधारभूत द्रव्य उपर तेनी द्रष्टि जाय छे. ‘जे काळे मुक्ति थवानी होय ते काळे थाय’–आवो
धर्म तो आत्मद्रव्यनो छे एटले आत्मद्रव्य उपर जेनी द्रष्टि छे ते ज आ धर्मनो निर्णय करी शके
छे; एटले आ निर्णयमां मुक्तिनो पुरुषार्थ आवी ज जाय छे. पोतानी मुक्तपर्यायना काळने
जोनार खरेखर द्रव्यनी सामे जुए छे, केमके ‘जेनी सिद्धि समय पर आधार राखे’ एवो धर्म
द्रव्यनो छे; द्रव्यनी सामुं जोयुं ते ज अपूर्व पुरुषार्थ छे. द्रव्यनी सामे जोनारे निमित्त विकार के
पर्याय उपरथी द्रष्टि ऊठावी लीधी छे, तेमज एकेक गुणना भेद उपर पण तेनी द्रष्टि नथी; आवी
द्रव्यद्रष्टिमां ज क्रमबद्ध पर्यायनो निर्णय, स्वकाळनो निर्णय, भेदज्ञान, मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ,
केवळीनो निर्णय वगेरे बधुं आवी जाय छे. काळनयनुं परमार्थ तात्पर्य पण ए ज छे के
स्वद्रव्यनी द्रष्टि करवी. आ धर्म कांई काळना आधारे नथी पण आत्माना आधारे छे, एटले
मुक्तिना काळनो निर्णय कर–