Atmadharma magazine - Ank 132
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
* * * * * * * * * * (१७) * * * * * * * * * *
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्यु छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
* * * * *
*जिज्ञासु शिष्य पूछे छे केः ‘प्रभो! आत्मा कोण छे ने कई रीते प्राप्त कराय छे?’
*श्री आचार्यदेव उत्तर आपे छे केः ‘आत्मा अनंतधर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने
अनंतनयात्मक श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे ते जणाय छे.’ आवा आत्मद्रव्यनुं
आ वर्णन चाले छे.
(अंक १३१ थी चालु)
[३०] काळनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य काळनये जेनी सिद्धि समय पर आधार राखे छे एवुं छे,–उनाळाना दिवस
अनुसार पाकता आम्रफळनी माफक. आत्मानी मुक्ति जे समये थवानी छे ते समये ज थाय–
एवो काळनयथी आत्मानो एक धर्म छे, जे काळे मुक्ति थाय छे ते काळे पण ते पुरुषार्थपूर्वक ज
थाय छे, परंतु पुरुषार्थथी कथन न करतां ‘स्वकाळथी मुक्ति थई’ एम काळनयथी कहेवामां आवे
छे. स्वकाळथी मुक्ति थई माटे पुरुषार्थ ऊडी जाय छे–एम नथी. स्वकाळे मुक्ति थई तेमां पण
पुरुषार्थ तो भेगो ज छे.
जे समये मुक्ति थवानी छे ते समये थाय छे, पण ते मुक्ति क्यांथी थाय छे? के द्रव्यमांथी
थाय छे, एटले आम नक्की करनारनुं लक्ष एकली मुक्तिनी पर्याय उपर नथी रहेतुं पण पर्यायना
आधारभूत द्रव्य उपर तेनी द्रष्टि जाय छे. ‘जे काळे मुक्ति थवानी होय ते काळे थाय’–आवो
धर्म तो आत्मद्रव्यनो छे एटले आत्मद्रव्य उपर जेनी द्रष्टि छे ते ज आ धर्मनो निर्णय करी शके
छे; एटले आ निर्णयमां मुक्तिनो पुरुषार्थ आवी ज जाय छे. पोतानी मुक्तपर्यायना काळने
जोनार खरेखर द्रव्यनी सामे जुए छे, केमके ‘जेनी सिद्धि समय पर आधार राखे’ एवो धर्म
द्रव्यनो छे; द्रव्यनी सामुं जोयुं ते ज अपूर्व पुरुषार्थ छे. द्रव्यनी सामे जोनारे निमित्त विकार के
पर्याय उपरथी द्रष्टि ऊठावी लीधी छे, तेमज एकेक गुणना भेद उपर पण तेनी द्रष्टि नथी; आवी
द्रव्यद्रष्टिमां ज क्रमबद्ध पर्यायनो निर्णय, स्वकाळनो निर्णय, भेदज्ञान, मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ,
केवळीनो निर्णय वगेरे बधुं आवी जाय छे. काळनयनुं परमार्थ तात्पर्य पण ए ज छे के
स्वद्रव्यनी द्रष्टि करवी. आ धर्म कांई काळना आधारे नथी पण आत्माना आधारे छे, एटले
मुक्तिना काळनो निर्णय कर–
आश्विनः २४८० ः २३४ः